पटनाः बिहार की मिट्टी ने एक से एक प्रतिभाओं को जन्म दिया है. इसी मिट्टी में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भी जन्मे हैं. शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को आज देश याद कर रहा है. 21 अगस्त की तारीख भारत रत्न महान फनकार बिस्मिल्लाह खां की रुखसती के तौर पर दर्ज है. संगीत साधना की बदौलत उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने शहनाई को नई ऊंचाई दी. भारत रत्न से सम्मानित मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां का जन्म बिहार में बक्सर के डुमरांव गांव में हुआ था. 


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6 साल में शहनाई से जुड़े 
बिस्मिल्लाह खां का असली नाम कमरुद्दीन था. कमरुद्दीन के दादा प्यार से बिस्मिल्ला कहते थे इसलिए उनका नाम बिस्मिल्लाह पड़ गया. बिस्मिल्लाह खां एक संगीत घराने से ताल्लुक रखते थे. चाचा, अली बक्श, काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाया करते थे. बिस्मिल्ला खां जब करीब 6 साल के थे. उन्हें शहनाई से प्यार हो गया. उन्होंने ठान लिया कि वह अपने चाचा की तरह शहनाई बजाएंगे. जिसके बाद बिस्मिल्लाह खां ने अपने चाचा को अपना गुरु बना लिया. 


मां सरस्वती के साधक थे बिस्मिल्लाह खां
बिस्मिल्लाह खां मुस्लिम थे, लेकिन वो मां सरस्वती को पूजते। संगीत साधना से पहले मां सरस्वती से अपनी कला को और बेहतर बनाने की दुआ मांगते। बिस्मिल्लाह खां ने कभी किसी धर्म में भेद नहीं किया. मां सरस्वती की कृपा बिस्मिल्ला खां पर हमेशा रही. 


बनारस के घाट पर शहनाई बजाना सीखा 
बिस्मिल्ला खां अपने चाचा अली बख्श के साथ बनारस चले आए. यहीं पर गंगा किनारे बैठकर शहनाई बजाना सीखते थे. बिस्मिल्लाह खां काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाते थे. कुछ ही दिनों बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ्रेंस कलकत्ता में संगीत के महारथियों के सामने शहनाई बजाने का मौका मिल गया.


आजादी के जश्न में शहनाई सम्राट की तान 
उस्ताद बिस्मिल्ला खां की शहनाई का पूरा देश कायल था. 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ. जश्न-ए-आजादी में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को बुलावा भेजा. उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जादुई शहनाई से जश्न-ए-आजादी की रौनक ही बढ़ गई.


2006 में 21 अगस्त को हुआ निधन 
बिस्मिल्लाह खां संगीत की दुनिया में शहनाई सम्राट के नाम से अमर हैं. उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और पद्मश्री जैसे सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित बिहार के अमर विभूति हैं. आज के ही दिन 2006 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां दुनिया को अलविदा कह गए.


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