UT 69 Movie Review: शाहनवाज अली द्वारा निर्देशित 'यूटी 69', मुंबई की आर्थर रोड जेल में बिताए समय के दौरान एंटरप्रेन्योर राज कुंद्रा के उथल-पुथल भरे अनुभवों पर आधारित है. फिल्म की कहानी राज कुंद्रा, विक्रम भट्टी और अली ने लिखी है और एसवीएस स्टूडियो द्वारा समर्थित है. कहानी की शुरुआत राज कुंद्रा के आर्थर रोड जेल पहुंचने से होती है, जिन्हें गलत तरीके से वहां लाया जाता है. अपराध का कोई सबूत नहीं होने के बावजूद उन्हें धमकाने जैसा अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ता है.


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फिल्म में राज कुंद्रा ने खुद को चित्रित किया है, जिसमें वहपोर्नोग्राफी केस में फंस जाते है और सलाखों के पीछे पहुंच जाते है. अपने वास्तविक जीवन के इस अनुभव को बताने के लिए उन्होंने यह फिल्म बनायी है. फिल्म की शुरुआत से ही, यह बदमाशी, अस्वच्छता, नींद की कमी और अपर्याप्त भोजन के शिकार एक निर्दोष व्यक्ति की दर्दनाक कहानी को उजागर करती है, जो किसी भी अपराध का दोषी साबित नहीं होने वाले व्यक्ति के साथ हुए अन्यायपूर्ण व्यवहार की एक स्पष्ट तस्वीर पेश करती है.


उल्लेखनीय रूप से, फिल्म के क्रिएटर्स ने जेल में बिताए गए दिनों को खूबसूरती से चित्रित किया है. वे एक ऐसी कहानी को प्रभावी ढंग से बयां करते हैं जो कई स्तरों पर चलती है. यह निर्दोषों की दुर्दशा, जेल के भीतर जीवन की क्रूर वास्तविकता, दबंगई कैदियों की उपस्थिति, बुनियादी आवश्यकताओं का न होना, खराब खाना और उदासीन अधिकारियों की संवेदनहीनता को उजागर करता है.


फिल्म के डायलॉग्स शनदार हैं. फिल्म एक ऐसे सिस्टम को उजागर करती है जो अपराध के साबित हुए बिना लोगों से अमानवीय व्यवहार करने को लेकर है. जहां पहले पार्ट में करेक्टर्स और जेल रुटीन को दिखाया जाता है. वहीं बाद के पार्ट में मानवतावादी पहलू पर भी रोशनी डाली गई है. कैदियों के बीच सौहार्द, दिनचर्या के बीच सांत्वना की तलाश और संबंधों को कहानी के दौरान कुशलता से चित्रित किया गया है. यह फिल्म न केवल कुंद्रा की कठिन परीक्षा, बल्कि जेलों की निराशाजनक स्थिति और अधिकारियों की उदासीनता का भी प्रमाण है.


जेल से निकलने से पहले कुंद्रा अपने साथी कैदियों के साथ घुलने-मिलने लगते है. शिल्पा शेट्टी का वॉयसओवर दर्शकों को कहानी से जुड़ने में मदद करता है. कुंद्रा और शेट्टी के बीच फोन पर हुई बातचीत फिल्म के बीच दिखाई गई है. 'यूटी69' कुंद्रा की सिनेमाई शुरुआत है, जिसमें उन्होंने अपने दर्दनाक अनुभवों को उजागर किया है. जिसका कोई दोष नहीं है. यह फिल्म मीडिया फ्रेन्जी, ऑनलाइन हैरेसमेंट और निर्णायक सबूत के बिना व्यक्तियों को अपराधी के रूप में समय से पहले लेबल लगाने जैसे प्रक्रिया को सामने लाती है.


'यूटी 69' ड्रामा से बहुत दूर है, यह अपनी खूबियों के आधार पर एक एक्सपेरिमेंटल फिल्म है. यह 'संजू' की तरह नहीं है, बल्कि एक झूठे जाल में फंसे व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली अंधेरी वास्तविकताओं को उजागर करने का एक अलग और साहसिक प्रयास है. यह न्याय प्रणाली की असली सच्चाई को सामने लाता है.


इनपुट- आईएएनएस के साथ 


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