Shraddha Paksha 2024: तर्पण क्या है और इसका हिंदू धर्म में क्या महत्व है, इसे समझना बहुत जरूरी है. तर्पण एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति और शांति के लिए जल अर्पित करता है. आचार्य मदन मोहन के अनुसार हिंदू धर्म में माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने परिवार पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं.


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पितृपक्ष क्या है?
आचार्य मदन मोहन के अनुसार पितृपक्ष हिंदू धर्म में एक विशेष समय होता है, जिसमें लोग अपने पितरों यानी पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति और मोक्ष के लिए विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं. यह पवित्र समय भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होकर अश्विन महीने की अमावस्या तक चलता है. इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. इस दौरान हर दिन किसी न किसी पूर्वज के नाम श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण किया जाता है, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके.


तर्पण और पिंडदान का महत्व
आचार्य के अनुसार तर्पण और पिंडदान पितरों की आत्मा को तृप्त करने के मुख्य अनुष्ठान माने जाते हैं. तर्पण का अर्थ है जल अर्पित करना. इसमें जल, चावल, दूध और काले तिल का उपयोग किया जाता है, जो पितरों की आत्मा को समर्पित होता है. पिंडदान में चावल और तिल से बने पिंड (गेंद) को पूर्वजों को अर्पित किया जाता है, जिससे उनकी आत्मा को भोजन प्राप्त होता है. इन अनुष्ठानों के बाद ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है, जिसे पितरों का भोज माना जाता है. यह माना जाता है कि इन कर्मों से पितर संतुष्ट होकर परिवार को आशीर्वाद देते हैं और उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है.


श्राद्ध करने के नियम
उन्होंने कहा कि पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध का आयोजन परिवार के सबसे बड़े पुरुष सदस्य द्वारा किया जाता है, हालांकि महिलाएं भी इस अनुष्ठान को कर सकती हैं. श्राद्ध उस तिथि पर किया जाता है, जिस दिन संबंधित पूर्वज की मृत्यु हुई हो. अगर उस दिन श्राद्ध नहीं हो पाए, तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना आवश्यक माना जाता है। इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है.


पितृपक्ष के दौरान सावधानियां
साथ ही पितृपक्ष के दौरान कई धार्मिक नियमों का पालन करना जरूरी होता है. इस समय शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, या नए व्यापार की शुरुआत नहीं की जाती इसे अशुभ माना जाता है. साथ ही, इस अवधि में मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से बचना चाहिए. साधारण और सात्विक भोजन का सेवन किया जाता है, जिसमें फल, दूध और अन्न का प्रमुख रूप से प्रयोग होता है.


पितृपक्ष का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
पितृपक्ष केवल धार्मिक कर्मकांड का समय नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और पारिवारिक एकजुटता का भी प्रतीक है. इस दौरान परिवार के सभी सदस्य मिलकर पितरों की याद में कर्मकांड करते हैं. यह एक ऐसा समय होता है जब व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है. पितृपक्ष के दौरान किए गए अनुष्ठान आत्मविश्लेषण और समर्पण का भी प्रतीक होते हैं. यह समय व्यक्ति को यह सिखाता है कि वह अपने पूर्वजों के आशीर्वाद से ही आज इस धरती पर है और उसे उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए.


तर्पण के लाभ
आचार्य के अनुसार श्रद्धा और समर्पण से किए गए तर्पण और श्राद्ध कर्म न केवल पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं, बल्कि परिवार में भी सुख-समृद्धि लाते हैं. तर्पण से पितर संतुष्ट होते हैं और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है. इसलिए, पितृपक्ष का यह पवित्र समय न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह परिवार को आध्यात्मिक रूप से भी जोड़ता है. तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से मन को शांति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद हमेशा के लिए परिवार के साथ बना रहता है.


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