Anant Chaturdashi 2024: पापों को नष्ट और इच्छाओं को पूरा करने वाला माना जाता है अनंत चतुर्दशी व्रत, जानें इसकी महत्ता
Anant Chaturdashi 2024: अनंत चतुर्दशी एक ऐसा व्रत है जो सभी पापों को खत्म करने वाला, शुभ फल देने वाला और सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला माना जाता है. यह व्रत भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है.
Anant Chaturdashi 2024: अनंत चतुर्दशी का पर्व हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है. इसका उल्लेख भविष्य पुराण के उत्तर पर्व के अध्याय 94 में मिलता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को अनंत व्रत की महिमा बताई थी. यह व्रत पापों को नष्ट करने वाला, कल्याणकारी और सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला माना जाता है. यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है.
आचार्य मदन मोहन के अनुसार 'अनंत' भगवान विष्णु का ही एक नाम है. इस व्रत से जुड़ी एक प्राचीन कथा भी है. कृतयुग में सुमंतु नामक ब्राह्मण थे, जिनकी बेटी का नाम शीला था. शीला की मां दीक्षा का देहांत हो गया और सुमंतु ने दूसरी शादी कर्कशा नाम की स्त्री से की. शीला अपने पिता के घर में रहते हुए विष्णु भगवान की पूजा करती और घर के स्तम्भों पर विष्णु के चिह्न बनाती. जब शीला बड़ी हुई, तो सुमंतु ने उसका विवाह कौंडिन्य मुनि से कर दिया. शादी के बाद दोनों बैलगाड़ी से अपने घर की ओर जा रहे थे, तभी शीला ने देखा कि कुछ महिलाएं नदी किनारे भगवान जनार्दन की पूजा कर रही हैं. जब शीला ने उनसे इस पूजा के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि यह 'अनंत चतुर्दशी' व्रत है.
साथ ही इस व्रत के बारे में जानकर शीला ने भी इसे करने का संकल्प लिया. महिलाएं बताती हैं कि इस व्रत में पकवान बनाकर नदी किनारे स्नान किया जाता है. फिर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और नैवेद्य अर्पित किया जाता है. इसके बाद 14 गांठों वाला एक धागा (अनंत दोरक) बनाया जाता है, जिसे पूजा के बाद पुरुष दाहिने हाथ में और स्त्री बाएं हाथ में बांधते हैं. इस धागे को बांधते समय एक विशेष मंत्र बोला जाता है, जिसमें भगवान विष्णु से संसार रूपी महासागर में डूबते हुए व्यक्ति को बचाने की प्रार्थना की जाती है.
इसके अलावा शीला ने भी इस व्रत का पालन किया और अनंत दोरक बांधा. व्रत के बाद उनका घर धन-धान्य और समृद्धि से भर गया. शीला भी सुंदर आभूषणों से सजी दिखने लगी. लेकिन एक दिन, कौंडिन्य मुनि ने क्रोध में आकर शीला के हाथ में बंधे हुए अनंत दोरक को तोड़ दिया. इसके बाद उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और घर में दरिद्रता आ गई. दुखी होकर कौंडिन्य मुनि जंगल में चले गए और भगवान अनंत से प्रार्थना करने लगे. अंततः भगवान अनंत एक वृद्ध ब्राह्मण के रूप में उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें अपने दिव्य रूप के दर्शन कराए. भगवान ने उन्हें निर्देश दिया कि वे पुनः अनंत व्रत करें, जिससे उनका जीवन सुखमय हो जाएगा और अंत में उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी.
कौंडिन्य ने घर आकर पुनः अनंत व्रत किया और शीला के साथ सुखपूर्वक जीवन बिताया. अंत में उन्हें स्वर्ग में प्रतिष्ठा मिली, जो भी व्यक्ति इस व्रत को करता है या इसकी कथा सुनता है, उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
ये भी पढ़िए- Gallbladder Cancer: पानी में आर्सेनिक कितना खतरनाक है, क्यों बनता है कैंसर का कारण?