पटना: नीतीश कुमार ने कहा है कि तेजस्वी यादव को उन्होंने आगे बढ़ाया है. भविष्य में और आगे  बढ़ाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि आगे तेजस्वी पूरा काम देखेंगे. इस बयान के दो मायने हो सकते हैं. तेजस्वी का नीतीश पर बयान अहम है क्योंकि कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद बिहार महागठबंधन में किचकिच शुरू हो गई. 


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कुढ़नी में हार से महागठबंधन में दरार!
किसी ने सीधे नीतीश पर वार किया तो किसी ने इशारों में हमला बोला. कुढ़नी सीट पर पहले आरजेडी से विधायक अनिल सहनी थे. लेकिन अयोग्य घोषित होने के बाद यहां उपचुनाव हुआ. इस बार महागठबंधन प्रत्याशी मनोज कुशवाहा बीजेपी से हार गए. मनोज कुशवाहा जेडीयू से मैदान में उतरे थे. इस हार के बाद महागठबंधन में दरारें उभरने लगीं. अनिल सहनी ने तो सीधे नीतीश कुमार का इस्तीफा मांग लिया. 


नीतीश को आश्रम जाने की सलाह
आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा है कि नया गठबंधन जमीन पर कार्यकर्ताओं के बीच उतना मजबूत नहीं हुआ जितनी जरूरत थी. जब घर वाले हमले कर रहे थे तो विपक्षी कहां चुप बैठते. बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कह दिया कि इस हार की नैतिक जिम्मेदारी नीतीश कुमार को लेनी चाहिए और शिवानंद के आश्रम चले जाना चाहिए. 


नीतीश के नए दांव के क्या मायने?
ऐसे में तेजस्वी पर बयान देकर हो सकता है कि नीतीश ने महागठबंधन में लगी आग को खुद बुझाने की कोशिश की है. क्योंकि तेजस्वी को आगे बढ़ाएंगे, ये कहने के साथ ही नीतीश ने ये भी सलाह दी है कि कुछ लोग झगड़ा करवाना चाहेंगे, लेकिन ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए.


दूसरा मैसेज ये हो सकता है कि नीतीश अब वाकई में राष्ट्रीय राजनीति में दम लगाने का प्लान बना चुके हैं. इससे पहले भी उन्होंने कहा है कि वो राज्य में तेजस्वी को आगे बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो रिटायर हो रहे हैं. उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं, ये जगजाहिर है. कई मौकों पर ये बात सामने आई है. वो पटना में केसीआर से मिले. फिर दिल्ली जाकर कांग्रेस के नेताओं से मिले. उन्होंने कई मंचों से खुले तौर पर 2024 के लिए विपक्षी एकता की अपील की है. तो हो सकता है कि नीतीश की रणनीति ये हो कि अब वो राष्ट्रीय राजनीति पर पूरा फोकस करें और बिहार तेजस्वी देखें. 


महागठबंधन की सेहत और देश की सियासत दोनों के लिहाज से नीतीश का बयान अहम है. वैसे बिहार में महागठबंधन के नेताओं के लिए सेहतमंद ये रहेगा कि एक उपचुनाव में हार को आपस में फूट का कारण न बनने दें. नीतीश बिहार में रहें या राष्ट्रीय राजनीति में जाएं जब तक राज्य में इन सियासी साथियों में सुलह रहेगी तभी राज्य या देश में दूसरों को मात दे पाएंगे. कुढ़नी जैसी कई परीक्षाएं आएंगी. हार को नाकामी नहीं सीख मानकर आगे बढ़ना होगा, मेहनत करनी होगी.