Bihar Theater: बिहार में 1929 को हुई थी पहले थियेटर की शुरुआत, जानें किसने रखी थी नींव और अब कैसी है स्थिति

Bihar Theater: जब सिनेमा नहीं था तो लोगों के मनोरंजन का एक बड़ा साधन थिएटर हुआ करता था. पटना का थिएटर (रंगमंच) से गहरा रिश्ता है. आजादी से पहले से ही पटना में कई नाट्य मंडलियां काम कर रही थीं. आज हम बिहार के सबसे पुराने थिएटर की कहानी जानेंगे, जिसका संबंध कपूर खानदान से भी रहा है.

जी बिहार-झारखंड वेब टीम Sun, 08 Sep 2024-4:05 pm,
1/6

थिएटर में जब आ गया था भूत!

सुमन ने बताया कि थिएटर की शुरुआत में तकनीकी समस्याएं काफी थीं, खासकर लाइट को लेकर. उस समय सिर्फ साधारण लैंप का इस्तेमाल होता था. एक नाटक के दौरान, जब एक किरदार स्टेज पर आया, तो लोग डर गए, क्योंकि उन्हें लगा कि कोई भूत है. अंधेरे में स्टेज पर चलते व्यक्ति को देखकर लोगों को ऐसा लगा कि थिएटर में भूत आ गया है.

 

2/6

प्रथम राष्ट्रपति ने देखा था नाटक

भारत के पहले राष्ट्रपति, राजेंद्र प्रसाद, भी इस थिएटर में नाटक देखने आए थे. सुमन ने बताया कि उनके दादाजी, कैलाश सिन्हा, और राजेंद्र प्रसाद की अच्छी दोस्ती थी. राष्ट्रपति बनने के बाद, जब वे पटना आए, तो उन्होंने कहा, "कैलाश बाबू, आपने कुछ खास बनाया है, हमें भी दिखाइए. इसके बाद वे गवर्नर हाउस से थिएटर आए और वहां बैठकर नाटक देखा.

 

3/6

1929 में हुई थी शुरुआत

बिहार के पहले थिएटर, रीजेंट्स थिएटर, की शुरुआत 1929 में पटना के गांधी मैदान में हुई थी. उस समय साइलेंट मूवी का दौर था, लेकिन थिएटर में स्टेज, ग्रीन रूम, प्रोजेक्टर और लाइट जैसी सुविधाएं मौजूद थीं. जब यहां नाटक, स्टेज प्रोग्राम या सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, तो पर्दा हटा दिया जाता था. और जब फिल्में दिखानी होती थीं, तब पर्दा फिर से लगाया जाता था.

 

4/6

पैलेस ऑफ वैरायटी था नाम

रीजेंट्स थिएटर को अब तक चार पीढ़ियों ने संभाला है. इसकी शुरुआत कैलाश बिहारी सिन्हा ने की थी, और अब उनके परपोते इसे चला रहे हैं. उनके पोते सुमन सिन्हा बताते हैं कि जब यह थिएटर शुरू हुआ था, तब इसका नाम 'पैलेस ऑफ वैरायटी' रखा गया था, क्योंकि यहां अलग-अलग प्रकार की गतिविधियां होती थीं. 

5/6

1949 में बदला नाम

इस थिएटर को 8 मई 1928 को लाइसेंस मिला था, जो कलेक्टर द्वारा दिया गया था. पहले इसका नाम 'पैलेस ऑफ वैरायटी' था, जिसे 1949 में बदलकर 'रीजेंट्स थिएटर' कर दिया गया, जब साउंड सिस्टम आया और फिल्में बनने लगीं. उस समय टिकट के दाम एक आना या दो आना हुआ करते थे.

6/6

कपूर खानदान से है रिश्ता

सुमन ने बताया कि कपूर खानदान का इस थिएटर से पुराना रिश्ता है. पृथ्वीराज कपूर रामवृक्ष बेनीपुरी की कहानी "आम्रपाली" के मंचन के लिए यहां आए थे. नाटक के लिए सही हीरोइन न मिलने पर बेनीपुरी ने उन्हें पटना की नीरा वर्मा से मिलवाया, जो बाद में इस नाटक की हीरोइन बनीं. इसके बाद नाटक का सफल मंचन हुआ.

ZEENEWS TRENDING STORIES

By continuing to use the site, you agree to the use of cookies. You can find out more by Tapping this link