5 ऐसे संकेत जो बता रहे हैं नीतीश कुमार के मन में कुछ तो चल रहा है...
बिहार की सत्ता पर 18 साल से नीतीश कुमार सीएम के तौर पर काबिज हैं. आपको बता दें कि इसमें से कुछ समय नीतीश सीएम की कुर्सी से बाहर रहे तो भी पर्दे से पीछे वह जीतन राम मांझी की सरकार चलाते रहे.
Patna: बिहार की सत्ता पर 18 साल से नीतीश कुमार सीएम के तौर पर काबिज हैं. आपको बता दें कि इसमें से कुछ समय नीतीश सीएम की कुर्सी से बाहर रहे तो भी पर्दे से पीछे वह जीतन राम मांझी की सरकार चलाते रहे. आपको बता दें कि इन 18 सालों में नीतीश कुमार ने राजद, भाजपा दोनों के साथ गठबंधन में सरकार चलाई और मजे की बात यह है कि हर बार गठबंधन बदला, सरकार बदली, मंत्री बदले, उपमुख्यमंत्री बदले लेकिन सीएम नीतीश कुमार ही रहे. नीतीश को ऐसे में बिहार की राजनीति का चाणक्य कहा जाए तो गलत नहीं होगा. हालांकि बिहार में सक्रिय राजनीतिक पार्टी के लोग यह हमेशा मानते रहे हैं कि नीतीश कुमार कभी भी पलटी मार सकते हैं.
2020 के चुनाव में भाजपा और जदयू के गठबंधन ने जीत हासिल कर सत्ता में आने के बाद सीएम की कुर्सी फिर एक बार नीतीश को सौंप दी. जबकि विधानसभा में जदयू से ज्यादा विधायक भाजपा के पास थे. नीतीश ने सरकार का गठन किया और फिर बीच मझधार में वह NDA की नौका से उतरकर महागठबंधन की नाव में सवार हो गए. अब नीतीश सीएम हैं और राजद की तरफ से उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव मजे की बात यह है कि राजद के पास भी विधानसभा में जदयू से ज्यादा विधायक हैं.
अब नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं तो उनकी महत्वाकांक्षा 2024 में विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के तौर पर उभरने की है लेकिन तेजस्वी यादव ने जिस तरह से विधानसभा में ठोंक बजाकर कह दिया कि नीतीश कुमार ना तो पीएम बनने जा रहे हैं ना हीं सीएम तो नीतीश इससे असहज जरूर हो गए थे. वहीं आपको बता दें कि उनकी असहजता की एक बड़ी वजह यह भी है कि नीतीश कुमार जिस भ्रष्टाचार के माम ले पर तेजस्वी से अलग हुए थे वह अभी भी पीछा छोड़ने को तैयार नहीं है.
इसके साथ ही भाजपा भी यह जानती है कि बिना नीतीश कुमार के बिहार की लोकसभा सीटों पर भाजपा वह असर नहीं दिखा पाएगी जो वह दिखाना चाहती है. ऐसे में 2024 से पहले नीतीश कुमार को अपने पाले में लेने के लिए भाजपा बेताब है. आपको बता दें कि नीतीश के महागठबंधन में रहने की असहजता ने भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है.
नीतीश कुमार के जन्मदिन पर पीएम मोदी के साथ तमाम भाजपा नेताओं के द्वारा दी गई शुभकामनाएं और नीतीश का उसपर सहृदयता से दिया गया जवाब तो आपको याद हीं होगा जो यह इशारा करने लगा था कि नीतीश कुमार कभी भी पलटी मार सकते हैं. वहीं नीतीश कुमार को बिहार के राज्यपाल के बदलने की सूचना अमित शाह के द्वारा फोन पर देना और दोनों के बीच की बातचीत के बाद अमित शाह और राजनाथ सिंह द्वारा नीतश को फोन कर जन्मदिन की शुभकामना देना भी लोगों के जेहन में कई सवाल खड़े कर रहा था.
इसके ठीक बाद के घटनाक्रम में नीतीश कुमार को बिहार में गलवान के शहीद के पिता को जेल में डालने की खबर के बाद राजनाथ सिंह का फोन और तुरंत नीतीश का एक्टिव होना, इसके बाद तमिलनाडु में बिहारियों के साथ हो रही दुर्व्यवहार की खबर पर एक तरफ तेजस्वी का नकारना और दूसरी तरफ भाजपा नेताओं के मिलने पर नीतीश का तुरंत एक कमिटी गठन कर तमिलनाडु भेजना यह साफ कर गया था कि नीतीश का मन अब भाजपा के साथ चला गया है.
इसके बाद तेजस्वी और लालू परिवार के खिलाफ एजेंसी की कार्रवाई और पूछताछ पर बहुत देर तक की चुप्पी के बाद बेहद सधे अंदाज में नीतीश का जवाब देना और राहुल गांधी की संसद सदस्यता खारिज होने पर किसी तरह के बयान से बचने से यह स्पष्ट हो गया कि नीतीश अब ज्यादा समय तक महागठबंधन के साथ टिकने बाले नहीं हैं चाहे लोग कितना भी कयास लगाते रहें. आज चैती छठ महापर्व का संध्या अर्घ्य है इसके एक दिन पहले रविवार को खरना के मौके पर नीतीश कुमार भाजपा नेता संजय मयूख के घर प्रसाद पाने पहुंच गए अब राजनीति के जानकारों को पूरा भरोसा हो गया कि नीतीश अब भाजपा के साथ अपनी संभावना तलाश रहे हैं. वैसे भी संजय मयूख को अमित शाह का खास माना जाता है. अब आप सोच सकते हैं कि नीतीश कुमार के ये सभी संकेत स्पष्ट बता रहे हैं कि वह भाजपा के साथ एक बार फिर मंच साझा कर सकते हैं. हालांकि ये अभी भविष्य के गर्भ में हैं.