Mission 2024: देश में अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी एक बार फिर से पीएम मोदी के नेतृत्व में सत्ता की हैट्रिक लगाने की कोशिश कर रही है. तो वहीं विपक्ष की ओर से नीतीश कुमार एक बड़े दावेदार बनकर सामने आए हैं. नीतीश इस समय विपक्ष को एकजुट करने में जुटे हैं, वहीं मोदी को फिर से पीएम बनाने के लिए अमित शाह ने जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखी है.


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अमित शाह ने 2024 में बिहार की सभी 40 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है. मतलब वह नीतीश कुमार को उनके ही घर में मात देने की योजना पर काम कर रहे हैं. इसके लिए वह अब एनडीए को नए सिरे तैयार करने में जुटे हैं. शाह की नजर बिहार के छोटे-छोटे दलों पर हैं. उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे कई नेता अमित शाह के संपर्क में हैं. यदि ये नेता एनडीए में आते हैं तो इनकी परफार्मेंस के अनुसार ही इनको सियासी इनाम दिया जाएगा.


शाह के चक्रव्यूह में फंस गए नीतीश?


शाह की रणनीति है कि नीतीश को इतना कमजोर कर दो कि उनका नाम लेने वाला कोई नहीं बचे. इसकी पहली झलक आरसीपी सिंह के रूप में दिखाई दे गई थी. बीजेपी ने नीतीश के अत्यंत भरोसेमंद साथी आरसीपी सिंह को उनसे अलग कर दिया है. चर्चा तो ये भी है कि 2024 से पहले जेडीयू के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह भी नीतीश का साथ छोड़ देंगे. 


लव-कुश समीकरण में फूट


जेडीयू में नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा की जोड़ी को लव-कुश कहा जाता था. अब लव-कुश अलग-अलग हो चुके हैं. उपेंद्र अपने साथ कुशवाहा समाज का बड़ा वोट बैंक भी लेकर आ गए हैं. उपेंद्र कुशवाहा पहले बीजेपी के साथ ही थे. 2014 का चुनाव उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था और केंद्र सरकार में मंत्री भी बने थे. लेकिन 2019 में उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था. फिर अपनी पार्टी रालोसपा का विलय जेडीयू में कर दिया था. अब फिर से आरएलजेडी का गठन करके नीतीश पर हमलावर हैं. 


आरसीपी सिंह से मिलेगा फायदा?


नीतीश कुमार कुर्मी समाज से आते हैं, इसलिए उनका आधार वोट कुर्मी-कुशवाहा जातियां ही हैं. वहीं आरसीपी सिंह भी कुर्मी समाज से हैं और नीतीश के गृह जिले से ही ताल्लुक रखते हैं. वह जेडीयू के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. अब वह नीतीश से अलग होकर बीजेपी की मदद कर रहे हैं.  


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दलितों को साधने का उपाय


बिहार में दलित समाज के बड़े नेताओं में चिराग पासवान, पशुपति पारस और जीतन राम मांझी का नाम आता है. इन नेताओं के जरिए बीजेपी अपने साथ दलितों को भी जोड़ना चाहती है. हालांकि इन नेताओं को भी दिखाना होगा कि वह अपने समाज का कितना वोटबैंक खींच पाते हैं.