Anand Mohan News: डीएम जी. कृष्णैया का हत्यारा और आईपीसी की धारा 302ए, 307 और 147 का दोषी आनंद मोहन जेल से निकलकर अब खुली हवा में सांस ले रहा है पर डीएम का परिवार अब घुटन महसूस कर रहा है. पीड़ित परिवार को अब बिहार सरकार पर भरोसा नहीं रहा इसलिए पीएम मोदी से दखल देने की मांग कर रहा है. जिसके चलते अब सवाल उठ रहा है कि क्या बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन की तरह आनंद मोहन भी फिर से जेल जा सकता है? आइए, इस बारे में कानून की बारीकियां समझते हैं. 


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क्या था मोहम्मद शहाबुद्दीन का मामला? 


सबसे पहले शहाबुद्दीन की बात करते हैं. 2016 में पटना हाई कोर्ट ने सीवान की बहुचर्चित तेजाब कांड के गवाह राजेश रौन की हत्या की साजिश रचने के मामले में बाहुबली को जमानत दे दी थी, जिसके बाद शहाबुद्दीन बड़े काफिले के साथ भागलपुर जेल से सीवान आया था. उसके बाद बिहार में इस पर सवाल उठे और बवाल मचने लगा. तब भी बिहार में नीतीश और तेजस्वी की सरकार थी. सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की सोची और उधर, तेजाब कांड के पीड़ित चंदा बाबू ने भी सुप्रीम कोर्ट से न्याय की गुहार लगाई थी. 


चंदा बाबू ने अपनी ओर से कहा था कि जिस शहाबुद्दीन की वजह से उन्होंने तीन बेटों को खो दिया, अब उसके बाहर रहने से केस पर असर पड़ेगा. चंदा बाबू के साथ पत्रकार रहे राजदेव रंजन की पत्नी ने भी याचिका दाखिल कर दी. सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद शहाबुद्दीन की जमानत रद्द कर दी थी. यही नहीं, मोहम्मद शहाबुद्दीन बिहार से सीधे दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया गया था, जहां कोरोना काल में उसकी मौत हो गई थी. 


क्या था आनंद मोहन का केस? 


अब आनंद मोहन की बात करते हैं. 1994 में मुजफ्फरपुर के खबरा गांव में हाईवे 28 पर तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया को मार दिया गया, जिसमें आनंद मोहन, लवली आनंद और मुन्ना शुक्ला सहित कई आरोपी बनाए गए. 2007 में निचली अदालत ने आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे पटना हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया था. 


उसके बाद नीतीश सरकार ने 2012 में जेल मैन्युअल में संशोधन किया, जिसमें प्रावधान किया गया कि आतंकवाद, डकैती के साथ हत्या, रेप के साथ हत्या, एक से अधिक हत्या और सरकारी कर्मचारियों की हत्या के दोषी को जेल से छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसमें कहा गया था कि उम्रकैद की सजा पाए अपराधी की सजा पर 20 साल से पहले छूट नहीं दी जा सकती. अब बिहार सरकार ने हाल ही में नियमावली फिर से चेंज कर दी. इसके तहत सरकारी कर्मचारी की हत्या को सामान्य श्रेणी की हत्या में डाल दिया गया और आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ हो गया. आनंद मोहन के साथ 26 अन्य अपराधियों को भी जेल से बाहर कर दिया गया है. 


शहाबुद्दीन और आनंद मोहन के केस में कितना अंतर? 


पटना हाई कोर्ट ने शहाबुद्दीन को एक केस में नियमित जमानत दी थी और उस समय तक केस में सजा नहीं सुनाई गई थी. वहीं आनंद मोहन दोषी करार दिया जा चुका है और 16 साल की सजा भी पूरी कर चुका है. जमानत पर बाहर आने के बाद भी शहाबुद्दीन कई केसों में आरोपी था, जिनका ट्रायल चल रहा था. इसमें पत्रकार राजदेव रंजन हत्याकांड का भी आरोप थ. आनंद मोहन के केस में ऐसा नहीं है और उसके खिलाफ सभी केस खत्म हो चुके हैं. आनंद मोहन के खिलाफ किसी केस में ट्रायल बाकी नहीं है. 


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क्या आनंद मोहन फिर जेल जाएंगे? 


कानून के जानकार कहते हैं कि पटना हाई कोर्ट में जेल मैन्युअल में बदलाव के खिलाफ याचिका दायर की गई है, जिसके खिलाफ हाई कोर्ट सुनवाई करने वाला है. इन याचिकाओं में कहा गया है कि बिहार सरकार ने शक्ति का दुरुपयोग करते हुए स्वार्थवश नियमों में बदलाव किया है और इसे रद्द किया जाना चाहिए. याचिका में कहा गया है कि इससे कानून व्यवस्था पर विपरीत असर पड़ने वाला है और इस संशोधन से सरकारी कर्मचारियों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ने वाला है. कानून के जानकारों का कहना है कि अगर हाई कोर्ट जेल मैन्युअल में संशोधन पर स्टे दे देता है तो आनंद मोहन की रिहाई कैंसिल हो सकती है और फिर जेल जाना पड़ सकता है. 


जानकार यह भी कहते हैं कि जेल मैन्युअल बनाने या उसमें संशोधन का अधिकार राज्यों को दिया गया है लेकिन वे स्वार्थवश इसमें बदलाव नहीं कर सकते. जानकारों का यह भी कहना है कि नियम के मुताबिक आनंद मोहन को 20 साल से पहले राहत नहीं मिल सकती थी, अगर जेल मैन्युअल में संशोधन नहीं किया गया होता. जानकार यह भी कहते हैं कि सीएम नीतीश कुमार ने एक जनसभा में आनंद मोहन की रिहाई के लिए सरकार के प्रयास का जिक्र कर चुके हैं, जो याचिकाकर्ताओं के लिए मजबूत प्वाइंट हो सकता है.