Bihar Politics: कहते हैं राजनीति में 'साम, दाम, दंड, भेद' सब जायज है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन चारों गुणों के महारथी माने जाते हैं. इन दिनों उनकी निगाहें इन दिनों दिल्ली की गद्दी पर टिकी हुई हैं. 'मिशन मोदी हटाओ' के लिए वह दिन-रात एक किए हुए हैं. 'दिल्ली दौड़' में उन्हें जहां भी जिससे फायदा नजर आ रहा है, उससे लिफ्ट मांगने की कोशिश कर रहे हैं. 


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इसी कड़ी में उन्होंने डीएम जी कृष्णैया के हत्यारे आनंद मोहन को भी रिहा कर दिया. बाहुबली को रिहा करने के लिए सुशासन बाबू ने नियमों तक में बदलाव कर डाला. इसमें भी उनका सियासी मतलब छिपा है. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राजपूतों का वोट पाने के लिए नीतीश कुमार ने ये खेला किया है. मोदी हराने के लिए नीतीश को एक-एक वोट की कीमत पता है, यही कारण है कि 6 फीसदी वोटबैंक को वह छोड़ नहीं सकते. 


बिहार में राजपूतों की ताकत


बिहार में राजपूत समाज की 6 फीसदी से ज्यादा आबादी है. इस समाज के लोग कई सीटों पर हार-जीत का फैसला करते हैं.  2020 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे भी यही संकेत देते हैं. उस वक्त जेडीयू कोटे से खड़े 2 और आरजेडी के 6 राजपूत उम्मीदवार ही चुनाव में जीत पाए थे. वहीं बीजेपी के 15 राजपूत उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी. आनंद मोहन को रिहा करके राजपूतों समाज को मैसेज देने का काम किया जा रहा है कि हम ही उनके शुभचिंतक हैं.


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6 फीसदी के लिए 18% दांव पर लगाया


राजनीतिक मजबूरी के चलते बिहार में भले ही किसी भी दल ने इस फैसले का विरोध नहीं किया हो, लेकिन यूपी में इसके खिलाफ बिगुल फूंक दिया गया है. यूपी में बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस फैसले की कड़ी निंदा की है. उन्होंने इसे दलित विरोधी बताया है. बिहार में इस फैसले का क्या असर होगा, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन यदि ये दांव उल्टा पड़ा तो नीतीश कुमार को काफी भारी पड़ जाएगा क्योंकि प्रदेश में दलित और महादलित की आबादी 18 फीसदी के करीब है. 


उल्टा तो नहीं पड़ जाएगा दांव?


राज्य के हर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 40 से 50 हजार दलित मतदाता हैं. 13 लोकसभा सीटों पर तो यह वोटर ही जीत हार में निर्णयक भूमिका निभाते हैं. चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और पशुपति पारस की राजनीति भी अपने-अपने समाज के दलित वोटरों के सहारे ही चल रही है. सुशासन बाबू में गुंडाराज खत्म होने से दलितों का एक बड़ा तबका उन्हें वोट करने लगा था, लेकिन इस फैसले से वो खिसक सकता है. पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने ही काफी वोट काट दिया था.