Bihar Caste Census: जनसंख्या विस्फोट पर निबंध लिखकर बड़े हुए, अब कहा जा रहा- जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी
Bihar Caste Census: बचपन से जनसंख्या विस्फोट के नुकसान पर निबंध लिखते थे. कई बार भाषण प्रतियोगिताओं में जनसंख्या विस्फोट पर बोल बच्चन बोले और इनाम जीता, लेकिन अब हमें बताया जा रहा है कि भागीदारी से हिस्सेदारी तय होगी और हिस्सेदारी से भागीदारी.
Bihar Caste Census: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने कभी कहा था, देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है. अब मार्केट में एक नई थ्योरी आई है: जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी. यानी जिसकी ज्यादा जनसंख्या है, देश या राज्यों के संसाधनों पर पहला हक उन्हीं का है. बिहार राज्य में जातीय जनगणना (Bihar Caste Census) कराई गई है और उसके आंकड़े जारी कर आबादी के हिसाब से संसाधनों में से हिस्सेदारी की बात कही जा रही है. ये जो दो उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत किए गए हैं, उनमें काबिलियत कही नहीं है. काबिलियत किसी में भी हो सकती है. काबिलियत के दम पर बाबासाहब भीमराव आंबेडकर संविधान के रचयिता कहलाए जाते हैं. काबिलियत के बल पर महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाई. पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रथम प्रधानमंत्री बने, लेकिन अब अगर आपको कुछ पाना है तो आपकी जाति की संख्या का बहुतायत में होना जरूरी है.
बचपन से एक खास विषय पर निबंध लिखवाया जाता रहा है: जनसंख्या विस्फोट के नुकसान. आज समझ में आ रहा है कि वह एक छलावा था. पढ़ाई लिखाई करने वालों ने जनसंख्या विस्फोट के नुकसान को कुछ ज्यादा ही आत्मसात कर लिया और आबादी कंट्रोल होती चली गई. जिन्होंने पढ़ाई लिखाई नहीं की या फिर उस निबंध को जिन्होंने गंभीरता से नहीं लिया, उन्हीं के लिए आज जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी वाले स्लोगन बोले जा रहे हैं.
इस स्लोगन को अब बिहार से इतर पूरे देश में लागू करने की बात कही जा रही है और वो भी जोर शोर से. जब हिस्सेदारी भागीदारी से तय होने लगे तो उसमें काबिलियत को जगह नहीं मिलने वाली. हिस्सेदारी और भागीदारी साहित्यिक रूप से सही शब्द है, लिहाजा इन शब्दों को कब्जेदारी कहने में भी कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने बिहार में इसे शुरू कराया पर अब कांग्रेस ने पूरे देश में इसे लागू करने की मांग कर दी है. यहां तक कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद राहुल गांधी ने यहां तक ऐलान कर दिया कि कांग्रेस शासित राज्यों में अब जातीय जनगणना कराई जाएगी.
बात अब यही तक रुकने वाली नहीं है. यह आग और भड़कने वाली है. जब किसी को संख्याबल के हिसाब से हिस्सेदारी मिलने लगेगी तो फिर किसी को काबिलियत दिखाने की क्या जरूरत है. जिसकी संख्या कम होगी, वो तो वैसे ही अल्पसंख्यक होने का रोना रोएगा और जिसकी संख्या बहुतायत में है, संसाधनों पर उसका कब्जा होगा. भारत देश के लिए राजनेता विविधता का गुणगान किए नहीं थकते. लेकिन फर्ज कीजिए, जिसकी आबादी 0.1 प्रतिशत होगी, उस जाति के लोगों का संसाधनों पर कितना हक और हकूक हासिल हो पाएगा.
फिर झारखंड के एक इलाके के वो मुसलमान कहां से गलत हो जाएंगे, जिन्होंने गांव में अपनी बहुलता के आधार पर संडे की छुट्टी को फ्राइडे यानी जुमा की छुट्टी में बदल दिया था. फिर तो वो 16 आने सच हो गए. इस तरह तो देश के कई जिले या यूं कहें कि कई राज्यों में एक खास समुदाय की आबादी सबसे अधिक हो गई है तो क्या वहां के संसाधनों पर उनका सबसे अधिक अधिकार होगा.
वोट के लिए विविध प्रयोग करने के आदी राजनेता भूल जाते हैं कि उनके कुछ फैसलों से या फिर नीतियों से कुछ समय तक वोट तो मिल जाएंगे पर इसका आम जनमानस पर क्या प्रभाव पड़ेगा. अगर जातियों के बीच संख्याबल या फिर आरक्षण का फायदा देने से वोट मिलता तो शायद वीपी सिंह देश के आजीवन प्रधानमंत्री रहते. राजनेता ऐसे भी बाज नहीं आएंगे. कुछ धर्म के नाम पर तो कुछ जाति के नाम पर जहर बोते रहेंगे और हम आम आदमी हैं न तो उसे काटते रहेंगे. तो फिर तैयार हो जाइए, जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी का मजा लेने के लिए.