पटना: नीतीश कुमार के इशारों के बाद अब उनकी पार्टी ने भी एक स्वर में नीतीश कुमार को पीएम पद का दावेदार बताया है. हाल ही में टीआरएस नेता केसीआर भी पटना पहुंचकर नीतीश कुमार की विपक्षी एकजुटता की अपील को अपनी आवाज दे चुके हैं. लेकिन 2024 की ये चुनौती इतनी आसान नहीं है. 


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3 सितंबर को जेडीयू कार्यकारिणी बैठक में जैसे ही नीतीश कुमार पहुंचे आवाज आई-देश का नेता कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो. इससे पहले जेडीयू के दफ्तर के बाहर लगे पोस्टर हम देख चुके हैं. जिन पर लिखा था-
प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा
आश्वासन नहीं, सुशासन
आगाज हुआ, बदलाव होगा
जुमला नहीं, हकीकत


देश में विपक्षी एकजुटता की बात
जाहिर है बिहार के बाद देश में भी विपक्षी एकजुटता की बात हो रही है, सीधे पीएम मोदी (PM Modi) पर हमले हो रहे हैं. खुद नीतीश कुमार खुलकर विपक्ष से कह चुके हैं कि एकजुट हुए तो 2024 के नतीजे अलग होंगे. माना जा रहा है कि जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक में भी नीतीश की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं पर बात होगी और एनडीए से यूपीए में शिफ्ट होने पर भी मुहर लगेगी. 


लेकिन अपनी पार्टी की बैठकों में ये बोलना आसान है और जमीन पर जाकर लड़ना मुश्किल. ये बात हाल फिलहाल दो बार देखने को मिला. जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं, नहीं हैं, नहीं हैं.


टीआरएस नेता केसीआर पहले विपक्षी नेता हैं जिन्होंने विपक्षी एकजुटता की नीतीश की अपील पर अच्छे से प्रतिक्रिया दी. वो खुद पटना आकर नीतीश कुमार से मिले और लालू, तेजस्वी और राबड़ी देवी से भी मुलाकात की. लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब उनसे पूछा गया कि क्या नीतीश को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वो मंजूर करेंगे तो वो बात टाल गए. सीधे जवाब न देते हुए उन्होंने कहा कि ये उन्हें नहीं, कई और दलों को तय करना है. 


पत्रकार जब बार-बार यही सवाल पूछने लगे तो नीतीश कुर्सी से उठ गए. केसीआर ने कहा भी कि बैठिए, उन्होंने नीतीश का कुर्ता भी खींचा लेकिन नीतीश नहीं बैठे. जाहिर सी बात है वो खुद केसीआर को मुश्किल में नहीं डालना चाहते थे. केसीआर भी जवाब देते तो क्या देते. न तो उनके पास जवाब था और न ही वो ये फैसला  कर सकते हैं.


इस बीच गुरुवार को जेडीयू के सहयोगी दल कांग्रेस के एमएलसी प्रेमचंद मिश्रा ने कहा है कि देश में मोदी का विकल्प कांग्रेस और राहुल गांधी ही हैं. 
ललन सिंह, केसीआर और प्रेमचंद जो बात कह रहे हैं उनमें कॉमन कड़ी क्या है? यही कि विपक्षी एकता बहुत टेढ़ी खीर है. ये बात सही है कि बिना कांग्रेस नेशनल लेवल पर बीजेपी को चुनौती देना प्रादेशिक दलों के लिए नामुमकिन है लेकिन जिस पार्टी को अपना नेता चुनने में ही दिक्कत हो रही है, और जहां खुद इस मुद्दे पर बगावतें हो रही हैं, उस पार्टी से किसी को एकजुट विपक्ष का नेता कैसे बनाया जाए. 


विपक्ष इतने खेमों में  और इतने मुद्दों पर बंटा हुआ है कि उसे एकजुट करना दस बारह बलून को दो हाथों में संभालने जैसा काम है. ऊपर से केंद्रीय एजेंसियों की अड़चन है. झारखंड में सियासी सरकस देख ही रहे हैं. ऐन जेडीयू कार्यकारिणी से पहले मणिपुर के पांच विधायकों का बीजेपी में चला जाना, अलग कहानी कह रहा है. जाहिर है विपक्षी एकता का नारा देना और बात है और उसे अमल में लाना दूसरी बात


चर्चा है कि जल्द ही नीतीश दिल्ली जाने वाले हैं और वहां विपक्षी नेताओं से उनकी बातचीत होगी. 2024 में कोई एकजुट विपक्ष होगा या नहीं और होगा तो उसका चेहरा कौन होगा? इसपर दिल्ली की बैठकों से कुछ निकलेगा या नहीं...इसपर नजर रखिए.


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