Bihar Congress: हाल ही में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने एक बार फिर से उसी तरह का प्रदर्शन किया, जिस तरह की उससे उम्मीद की जा रही थी. कांग्रेस की अंदरूनी कलह ने एक बार फिर से पार्टी की लुटिया डुबो दी. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव, मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह, राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच मचे घमासान ने हाथ में आती सत्ता गंवा दी. इससे पहले पंजाब, यूपी, उत्तराखंड और गोवा के चुनावों में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था. कुल मिलाकर अगर ये कहें कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गुजरात से लेकर बंगाल तक हर राज्य में कांग्रेस कई खेमों में बंटी हुई है, तो कुछ भी गलत नहीं होगा. 


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आने वाले 6 महीनों में लोकसभा चुनाव हैं और देश में कई ऐसे राज्य हैं, जहां पार्टी की प्रदेश कमेटी का गठन तक नहीं हो सका है. इन्हीं राज्यों में बिहार भी शामिल है. पार्टी आलाकमान ने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्त एक साल पहले की थी. 5 दिसंबर 2022 से 6 दिसंबर 2023 आ गया, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की नई कमिटी आज तक गठित नहीं की गई. ऐसे में लगता है कि बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह बिना सिपाहियों के लोकसभा की जंग में उतरेंगे. 


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अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद तुरंत बाद ही अखिलेश सिंह ने कांग्रेस की खोई जमीन वापस हासिल करने का दावा किया था. उन्होंने इसके लिए जल्द ही प्रदेश समिति बनाने का भी दावा किया था, लेकिन अभी तक वो इस काम को अंजाम तक नहीं पहुंचा सके हैं. माना जाता है कि पार्टी में मतभेद के कारण समिति का गठन नहीं कर पा रहे हैं. कहा जा रहा है कि अगर जल्द समिति का गठन नहीं किया गया तो फिर लोकसभा चुनाव के बाद ही समिति का गठन संभव होगा. 


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अखिलेश प्रसाद सिंह ऐसे पहले प्रदेश अध्यक्ष नहीं हैं, जिनके पास अपनी टीम नहीं है. इससे पहले डॉ. मदन मोहन झा और कौकब कादरी भी अपनी टीम का गठन नहीं कर सके थे. नतीजा ये हुआ कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का झंडा लेकर चलने वालों की कमी बढ़ती गई. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि आखिर कौन सी ऐसी बड़ी बाधा है जिस वजह से अखिलेश सिंह प्रदेश कमेटी नहीं बना पा रहे हैं? क्या प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह की चल नहीं पा रही या फिर कमेटी बनाना नहीं चाहते हैं?