पटना: बिहार में नीतीश कुमार ने अपनी सियासी राह तो बदल ली लेकिन रास्ते में कई कांटे हैं. नीतीश सरकार और तेजस्वी सरकार के लिए चुनौतियों का अंबार है. पांच बड़ी चुनौतियां तो तुरंत समझ में आती हैं.


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सबसे पहली तो यही है कि जो आसमानी वायदे किए हैं, उन्हें पूरा कैसे करेंगे? जब बिहार में कथित डबल इंजन की सरकार थी तो जो काम नहीं हुआ वो एक विरोधी पार्टी के केंद्र में रहते कैसे करेंगे? तेजस्वी ने सरकार में आने से पहले 10 लाख नौकरियां देने का वादा किया था. उसे पूरा करने का क्या प्लान है? 


सरकार बनने के बाद भी उन्होंने (तेजस्वी) एक महीने में ही बंपर नौकरियां देने का वादा कर दिया. लेकिन ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं, जिसे घुमाते ही नौकरियां टपकने लगेंगी. इसके लिए प्लानिंग चाहिए, जमीन पर काम चाहिए. उद्योग चाहिए, निजी क्षेत्र का निवेश चाहिए और समय चाहिए. 2025 यूं आ जाएगा. वक्त नहीं है. कोई प्लान है? है तो पहले वो दिखाइए, तब यकीन होगा. जीएसटी के बाद कौड़ी-कौड़ी को तरस रहे राज्यों के बूते की बात नहीं कि सरकारी विभागों में इतनी भर्तियां कर लें और सैलरी भी वक्त पर दे दें.


दूसरी चुनौती...नीतीश और तेजस्वी दोनों बिहार में नई-नई इंडस्ट्री लाने का वादा कर चुके हैं. जब तेजस्वी विपक्ष में थे तो तब के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन और सीएम नीतीश कुमार पर आरोप लगाते रहे कि उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं हो रहा. अब कमान खुद उनके पास है, तो डिलिवर करना होगा. नहीं तो वही बेरोजगार जो तेजस्वी की रैलियों नारे फेंकते थे, सवालों की बौछार करेंगे.


तीसरी चुनौती...2017 में नीतीश ने महागठबंधन का साथ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर छोड़ा था. वो मुद्दा अब भी मौजूद है. ऊपर से बीजेपी के नेता अभी से चेताने लगे हैं. सुशील मोदी ने तो प्रेस कॉन्फ्रेंस में कह दिया है कि तेजस्वी जेल जा सकते हैं. संकेत साफ हैं. ऐसी कोई स्थिति आई तो नीतीश क्या करेंगे? 


जिस तरह से विपक्ष आरोप लगा रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों को डबल स्पीड से विपक्षी नेताओं के खिलाफ लगा दिया गया है, वैसा ही कुछ बिहार के गैर बीजेपी नेताओं के साथ हो तो ताज्जुब नहीं. वैसी स्थिति में नीतीश क्या करेंगे? 


चौथी चुनौती-सरकार कितनी चलेगी और कैसी चलेगी ये इस पर निर्भर करता है कि सरकार में शामिल पार्टियों की सियासत कैसी चलेगी. जब भी आरजेडी सत्ता में होती है तो नॉन यादव ओबीसी वोटर शंका में पड़ जाता है. सर्वण चिंता में पड़ जाते हैं. नीतीश इस शंका का निवारण कैसे करेंगे? गैर यादव ओबीसी चिढ़ा तो नीतीश के सिर पर शिकन आएगी और उसका असर आरजेडी से उनके संबंधों पर पड़ेगा.


पांचवीं चुनौती-बीजेपी से खुद को बचाने के लिए उससे अलग तो हो गए लेकिन सात पार्टियों से तालमेल बिठाना आसान काम नहीं. खासकर जब विवाद के मुद्दों की भरमार हो. चुनाव लड़े अलग मैनिफेस्टो पर, अब कॉमन मिनिमम एजेंडा बनाना होगा और उसपर सबको सहमत होना होगा और आखिर में पब्लिक शिकायत न करे, इसके लिए उस एजेंडे को लागू करना होगा. 


जाहिर है इतनी चुनौतियों को पार करना बहुत मुश्किल काम है. नीतीश कुमार जोश और तेजस्वी जश्न से लबरेज दिख रहे हैं. लेकिन कांटों से भरे रास्ते पर चलते हुए सात पहियों की गाड़ी को मंजिल तक पहुंचाने के लिए जोश के साथ होश और हुनर की भी जरूरत है. नई सरकार को बेस्ट ऑफ लक.


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