Lok Sabha election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के पहले पूरे देश में जिस तरह का राजनीतिक शोर मचा है उसकी आवाज बिहार से ही उठी है. एक तरफ नीतीश कुमार बिहार से निकलकर विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बिहार की सभी 40 सीटों पर इस बार भाजपा का फोकस है. वह नीतीश की पार्टी जदयू को यहां से निपटाने की जुगत में लगी हुई है. दोनों ही तरफ से गठबंधन सहयोगियों को तोड़ने और जोड़ने का खेल चल रहा है. नीतीश जहां एक तरफ विपक्ष के एकजुट करने की कोशिश में अभी तक लगे हैं वहीं भाजपा के फायरब्रांड नेताओं का लगातार बिहार दौरा जारी है या कहें तो बिहार से लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा ने चुनावी तैयारी का बिगुल फूंक दिया है. भाजपा यहां की 40 में से 32 से 36 सीटों पर जीत का दावा कर रही है. बिहार में अभी भाजपा के सहयोगी की बात करें तो केवल और केवल लोजपा है जो पशुपति कुमार पारस के साथ वाली है. क्योंकि चिराग पासवान की लोजपा(रामविलास) अभी गठबंधन का हिस्सा नहीं है. इससे पहले अमित शाह बिहार में अकेले भाजपा के लोकसभा चुनाव लड़ने की भी बात कह चुके हैं. 


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ऐसे में लोजपा(रामविलास) के चिराग पासवान, नीतीश से अलग हुए उपेंद्र कुशवाहा, हम के जीतन राम मांझी और वीआईपी के मुकेश सहनी को भाजपा अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत लगा रही है. भाजपा की तरफ से चिराग, उपेंद्र से लेकर सहनी तक को जिस तरह से सुरक्षा घेरा दिया गया है उससे तो यही लगता है. ऐसे में भाजपा जो बिहार में 32 सीटों पर लड़ने का दावा कर रही है वह शेष बचे प्रदेश के 8 सीटों पर अपने सहयोगियों को कैसे सेट करेगी. क्योंकि जीतन राम मांझी जैसे नेता ने महागठबंधन में रहकर लोकसभा चुनाव से पहले जैसे नीतीश को आंख दिखाई है वह अगर भाजपा के साथ मिल गए तो इन 8 सीटों में सहयोगियों के लिए बाजपा कैसे समीकरण सेट कर पाएगी बड़ा सवाल यही है?


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 भाजपा ने बिहार में कम से कम 32 सीटों पर लड़ने का मन बनाया है. 2019 के लोकसभा चुनाव को याद करें तो बिहार में भाजपा के साथ जेडीयू, लोजपा दोनों थे ऐसे में वह 40 में से 39 सीट जीत पाई थी. किशनगंज की सीट जेडीयू हार गई थी और इस सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. वहीं 2014 की बात करें तो तब भाजपा 30 सीट पर यहां लोकसभा चुनाव लड़ी थी और 22 जीती थी.अब ऐसे में इस बार भाजपा ने जब 32 सीटों पर लड़ने का मन बनाया है तो वह अपने गठबंधन सहयोगियों को 8 सीटों से कैसे संतुष्ट कर पाएगी. 


वैसे इस बार भाजपा के खिलाफ बिहार में जदयू है जिसका बड़ा नुकसान भाजपा को दिख रहा है. उसके साथ ही राजद, कांग्रेस और लेफ्ट की पार्टियां भी उसके साथ है. ऐसे में एक तो वोट बैंक की मजबूरी और दूसरा इन दलों से लड़ने के लिए गठबंधन की ताकत भाजपा को यहां उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान, मुकेश सहनी और जीतन राम मांझी को साथ लाना होगा तभी कोई बात बनेगी. लेकिन इनको साथ लाएंगे तो सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला कैसे बनेगा. क्योंकि इनके लिए तो कुल जमा 8 सीटें हीं बचती हैं. 


बिहार भाजपा के नेताओं की मानें तो गठबंधन के सहयोगी नहीं माने तो भाजपा 2014 के सीटों के नंबर तक पहुंच सकती है जब वह 30 सीटों पर लड़ी थी और गठबंधन दलों के लिए 10 सीटें छोड़ी थी. मतलब इस बार फिर गठबंधन दलों को इसी में से अपना उम्मीदवार उतारना होगा. ऐसे में भाजपा किस फॉर्मूले पर काम करती है और क्या गठबंधन के सहयोगी दलों के नेताओं को वह अपने सिंबल पर भी लड़ने को कह सकती है. यह भी देखना होगा. इसके साथ ही पार्टी को यह भी देखना होगा कि ऐसा करने से स्थानीय कार्यकर्ताओं का असंतोष भी पार्टी को लेकर ना बढ़े. 


वैसे बिहार की इन 40 सीटों का पूरा गणित तो भाजपा के दिल्ली ऑफिस से ही तय होना है. ऐसे में गाहे-बगाहे भाजपा का सहयोगी दल बनने की चाह रखनेवाले नेता यहां अमित शाह और जेपी नड्डा से मिलते दिख रहे हैं. वैसे भाजपा के लिए चिराग और कुशवाहा परेशानी नहीं बनेंगे क्योंकि इनका यूपीए के साथ चुनाव लड़ना मुमकिन नहीं है. वहीं दूसरी तरफ ये अकेले चुनाव लड़े तो इन्हें अपना हश्र पता है. ऐसे में यह भाजपा के कहे पर तैयार तो हो सकते हैं लेकिन पेंच तो मुकेश सहनी और जीतन राम मांझी जैसे नेता फंसा सकते हैं. हालांकि इसमें भी मुकेश सहनी को पता है कि उन्हें भाजपा के साथ रहकर ही केवल जीत मिल पाई है. ऐसे में पार्टी शायद उनको भी साध ले लेकिन अगर जीतन राम मांझी अड़ गए तो भाजपा के लिए परेशानी बड़ी हो जाएगी.