कहते हैं एक तस्वीर हजार से ज्यादा शब्द बयां कर देती है. इसमें कोई अतिश्योक्ति भी नहीं है. अब ऊपर की तस्वीर को ही देख लीजिए, इसमें 2025 के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) को लेकर एक इशारा साफ तौर पर जाहिर हो रहा है. तस्वीर तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav Aabhar Yatra) के आभार यात्रा के दौरान मुजफ्फरपुर की है. तेजस्वी यादव के ठीक बगल में मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla) बैठे हैं. वहीं मुन्ना शुक्ला, जिन्हें वैशाली से लोकसभा चुनाव में राजद ने उतारकर भूमिहार कार्ड खेला था, लेकिन राजद का वह कार्ड फेल हो गया था. फिर भी राजद ने भूमिहारों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश में कोई कमी नहीं की है. 


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मुन्ना शुक्ला को पार्टी में पूरी तवज्जो दी गई है. राजद ने मुन्ना शुक्ला को पटना का संगठन प्रभारी भी बनाया था. अब चर्चा हो रही है कि राजद अगले विधानसभा चुनाव में मुन्ना शुक्ला को महती जिम्मेदारी देते हुए 20 से 25 भूमिहारों को टिकट दे सकता है. अगर अकेले राजद इतने भूमिहारों को प्रत्याशी नहीं बना पाया तो पूरे महागठबंधन की ओर से ऐसा कर भूमिहारों को राजद के पक्ष में लामबंद करने की कोशिश हो सकती है. राजद ऐसा करके राजद की ओर से सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की जा सकती है.


हालांकि लोकसभा चुनाव को देखें तो भूमिहारों ने राजद को बुरी तरह नकार दिया था. मुन्ना शुक्ला को राजद की ओर से टिकट दिए जाने के बाद भी भूमिहारों का एकमुश्त वोट लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की प्रत्याशी वीणा देवी के पक्ष में गया था. राजद को उम्मीद थी कि मुन्ना शुक्ला को प्रत्याशी बनाने से भूमिहार वोट बंट जाएगा और इसका सीधा फायदा राजद को होगा, लेकिन भूमिहार वोट राजद के पक्ष में नहीं, लोजपा आर के पक्ष में गया और मुन्ना शुक्ला को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था.


राजद के कर्ताधर्ताओं को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में मुन्ना शुक्ला के चलते भले ही पार्टी को फायदा नहीं मिल पाया, लेकिन लोकसभा चुनाव में मुन्ना शुक्ला के होने का जरूर फायदा मिलने वाला है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस मुद्दे पर एक बहस भी चल रही है, जिसमें भूमिहार यूजरों का कहना है कि राजद कभी भूमिहारों का हो ही नहीं सकता, इसलिए वो कुछ भी कर ले, हम उन्हें वोट नहीं देंगे. 


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कुछ यूजरों का तो यह भी कहना है कि हो सकता है कि वर्तमान सरकार से कुछ नाराजगी हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि राजद को वोट दिया जाए. भले ही उम्मीदवार मुन्ना शुक्ला ही क्यों न हों. एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि जातीय जनगणना के नाम पर अगड़ा राजद से जीत सकता है तो पिछड़ा भी कमल निशान से लड़कर विधायक और सांसद बन सकता है. 


कुछ राजद समर्थक यूजरों ने तर्क दिया है कि पार्टी भूमिहारों के लिए कुछ भी कर ले, लेकिन भूमिहार राजद को वोट देने से रहा. इनका कहना है कि वैशाली में भूमिहारों ने मुन्ना शुक्ला को इसलिए वोट नहीं दिया, क्योंकि उनका चुनाव निशान लालटेन था.


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