Bihar News: बिहार की राजनीति में जाति कार्ड, संजय झा ने नीतीश को बताया सबसे विश्वसनीय ओबीसी चेहरा
Bihar News: बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद से अब जब जितनी जिसकी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी वाली बात आम होने लगी तो राजनीतिक दलों की तरफ से जाति कार्ड खेला जा रहा है.
पटना: Bihar News: बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद से अब जब जितनी जिसकी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी वाली बात आम होने लगी तो राजनीतिक दलों की तरफ से जाति कार्ड खेला जा रहा है. ऐसे में बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने कहा कि सीएम नीतीश कुमार राजनीति में सबसे विश्वसनीय ओबीसी चेहरा हैं. उन्होंने कहा कि वह बिहार की राजनीति के प्रमुख ध्रुव बने रहेंगे और कभी भी किसी के लिए दोयम दर्जे की भूमिका नहीं निभाएंगे.
कुछ भाजपा नेताओं की हालिया मांग को खारिज करते हुए कि नीतीश ने जन्म नियंत्रण पर अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के मद्देनजर राजनीति से संन्यास ले लिया है, झा ने कहा कि नीतीश कुमार न केवल बिहार में एक कद्दावर नेता हैं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी एजेंडा तय कर रहे हैं. उन्होंने पंचायतों और स्थानीय निकायों में ईबीसी और महिलाओं के लिए आरक्षण की शुरुआत की और उसके बाद अब ओबीसी, ईबीसी, एससी और एसटी समूहों के लिए कोटा बढ़ाकर 65% कर दिया है और नए अधिनियमित कानून को लागू करने की मांग के साथ केंद्र को मुश्किल में डाल दिया है.
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नीतीश के विश्वासपात्र संजय झा ने लिखा कि नीतीश कुमार कभी भी किसी भी राजनीतिक समूह की 'बी-टीम' नहीं हो सकते, चाहे वह महागठबंधन की कोई पार्टी हो या एनडीए या कोई अन्य गठबंधन. नीतीश हमेशा उस गठबंधन का चेहरा होंगे जिसका वह हिस्सा बनना चाहेंगे.
उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता और नवंबर 2005 में राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. इसी तरह, 2014 के लोकसभा चुनाव में, नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही जेडीयू का लगभग सफाया हो गया. पार्टी ने बिहार की 40 में से केवल दो लोकसभा सीटें जीतीं. लेकिन फिर, नवंबर 2015 में, नीतीश एक फीनिक्स की तरह उभरे और बिहार चुनाव में तत्कालीन पीएम नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोक दिया.
वहीं वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने संजय झा के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि जब हम अतिपिछड़ों की बात करते हैं तब उन्हें अलग करके देखने और आकार देने का काम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया. ऐसे में उन्हें अतिपिछड़ों का चेहरा कहना सही है. उन्होंने कहा कि सरकारी सेवाओं और शिक्षण संस्थान में जो आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई है इसमें बीजेपी का रुख दुविधापूर्ण है.
नीतीश कुमार ने जब लोगों को हक दिया तब बीजेपी के नेता कह रहे थे कि चुनौती दी जाएगी और पटना उच्च न्यायालय में अब मामला ले जाना कहीं न कहीं आपस में जुड़ा है. बिहार सरकार ने मंत्री परिषद में निर्णय लेकर केंद्र को निवेदन किया कि नौवीं अनुसूची में इसे शामिल करें. इसको लेकर उदाहरण भी दिया गया, लेकिन बीजेपी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.
उन्होंने कहा कि दलित और पिछड़े को हक दिलाने वाले मामले को लेकर नीतीश कुमार काम कर रहे हैं. ऐसे में आखिर क्या है जो बीजेपी 9 वीं अनुसूची के समर्थन में कुछ नहीं बोल रही है.