Emergency Special: 25 जून 1975, आधी रात का समय, पूरा देश जब सो रहा था तो देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दिलो-दिमाग में एक अजीब से खलबली मची हुई थी. कुर्सी के मोह में इंदिरा ने आधी रात को ऐसा फैसला लिया जिसने भारतीय लोकतंत्र के माथे पर हमेशा के लिए कालिख लगा दी. 26 जून 1975 की सुबह जब देश नींद से जागा तो आपातकाल लागू हो चुकी थी. अगले 21 महीने नागरिक अधिकार छीन लिए गए, सत्‍ता के खिलाफ बोलना अपराध हो गया, विरोधी जेलों में ठूंस दिए गए.


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प्रेस की आजादी पर पाबंदी लग गई. एकाएक विपक्षी दलों के नेताओं को जेलों में ठूसा जाने लगा. सरकार के खिलाफ बोलने वालों से देश की जेलें भरने लगीं. कुल मिलाकर इमरजेंसी के दौरान ऐसा अत्याचार किया गया, जिसने देशवासियों को एक बार फिर से अंग्रेजों का शासन याद दिला दी थी. देश ने उन दिनों जबरन नसबंदी का भयावह दौर भी देखा. इमरजेंसी का ही एक किस्सा है जब महज डाइनिंग टेबल में हेड की कुर्सी को लेकर संजय गांधी ने नेवी चीफ की बेइज्जती करवाई थी. 


इस घटना को वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब ‘द जजमेंट: इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी’ में विस्तार में लिखा है. 11 जनवरी 1976 का दिन था, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी तत्कालीन रक्षामंत्री बंसीलाल के साथ नौसेना के एक कायर्क्रम में शामिल होने के लिए बॉम्बे (मुंबई) गए हुए थे. नौसेना प्रमुख एसएन कोहली ने संजय और बंसीलाल को ठहराने के लिए एक सुइट और एक डबल रूम वाले बंगले का इंतजाम किया. 


तत्कालीन रक्षामंत्री बंसीलाल ने इस पर नौसेना चीफ एसएन कोहली से नाराजगी जताई. कोई अन्य व्यवस्था नहीं हो पाने के चलते बंसीलाल ने सुइट संजय को दे दिया और खुद डबल रूम ले लिया. असली बखेड़ा रात को डिनर की टेबल पर खड़ा हुआ. नौसेना एसएन कोहली अब भी संजय गांधी का रुतबा समझ नहीं सके और फिर गलती कर बैठे. डिनर की टेबल पर उन्होंने संजय को काफी नीचे नौसेना के अधिकारियों के साथ वाली कुर्सी ऑफर की. 


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संजय को हेड की कुर्सी पर नहीं बिठाए जाने पर बंसीलाल फिर से भड़क गए और गाली-गलौज करने लगे. नौसेना के अधिकारियों के सामने ही वह नौसेना प्रमुख को गालियां देने लगे. जूनियर अधिकारियों के सामने कोहली अपना अपमान बर्दाश्त नहीं कर सके और तुरंत अपना इस्तीफा देने की पेशकश कर दी. बंसी लाल ने ऐसा होने की उम्मीद नहीं की थी. कोहली के इस्तीफा सौंपने से बंसीलाल ने अपने अपने सुर बदल लिए और संजय को अपनी पत्नी की कुर्सी पर बिठाया.