Bihar Politics: बिहार की राजनीति में अकसर उठापटक होता रहता है, लेकिन एक बार फिर यहां राजनीतिक तूफान आने का संकेत मिल रहा है. जब से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने जेडीयू राष्ट्रीय परिषद (JDU National Council) की बैठक बुलाई है, तब से बिहार की राजनीति में कयासों का बाजार गर्म है. यह सब हुआ है 19 दिसंबर को हुई इंडिया (I.N.D.I.A) ब्लॉक की दिल्ली में हुई चौथी बैठक के बाद. हो भी क्यों न, जिस नीतीश कुमार ने इंडिया ब्लॉक की नींव रखी, कोलकाता से लेकर मुंबई तक एक कर दिया, उन्हें क्या मिला? एक अदद संयोजक पद की ही तो इच्छा थी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी की, लेकिन कांग्रेस (Congress) उसे भी हड़पने या फिर बिना संयोजक के गठबंधन चलाने के मूड में दिख रही है. तो फिर इंडिया ब्लॉक से नीतीश कुमार को क्या मिला, क्यों उन्होंने इतनी मशक्कत की, क्यों कांग्रेस से रूठे दलों को मनाया और उन्हें एक मंच पर आने को राजी किया. जो भी हो, भले ही जेडीयू के नेता और खुद नीतीश कुमार इंडिया से नाराजगी न होने की दलील दे रहे हैं पर अब बात ललन सिंह (Lalan Singh) के इस्तीफे तक जा पहुंची है. तो क्या नीतीश कुमार फिर से कोई तहलका मचाने वाले हैं. ऐसा तहलका, जिससे विपक्ष की जमीन हिल जाएगी और लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) से ऐन पहले वह चारों खाने चित हो जाएगा. क्या नीतीश कुमार ने राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश (Harivansh Narayan Singh) वाला विंडो खोल दिया है.


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2021 में आरसीपी सिंह के पद खाली करने के बाद ललन सिंह को जेडीयू अध्यक्ष बनाया गया था. ललन सिंह ने अध्यक्ष बनने के बाद पहले आरसीपी सिंह को पैदल किया. उन्हें केंद्र में मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था और फिर पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. अभी वे भाजपा में हैं और सुबह शाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और ललन सिंह के लिए राजनीतिक फातिहा पढ़ते रहते हैं. आरसीपी सिंह के बाद ललन सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा को साइड लाइन किया और ऐसा माहौल बना दिया कि उन्हें भी पार्टी छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा. आज वे राष्ट्रीय लोक जनता दल नाम से अलग पार्टी बनाकर भाजपा के साथ एनडीए के बैनर तले लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं और वे भी आए दिन नीतीश कुमार और उनकी सरकार की नजर उतारते रहते हैं. इस तरह एक-एक करके ललन सिंह ने नीतीश कुमार के कई भरोसेमंद सिपहसालारों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. एक तरह से अध्यक्ष पद पर रहते उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ही यही है कि आज नीतीश कुमार के बाद नंबर 2 कहलाने वाले पार्टी में ललन सिंह को छोड़कर कोई नहीं है. जब कोई रहेगा, तब न नंबर 2 बनेगा.


यही नहीं, टीम ललन सिंह की ओर से राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश को भी नहीं बख्शा गया. याद करिए, राज्यसभा के उपसभापति की हैसियत से हरिवंश नई संसद के उद्घाटन के मौके पर मौजूद थे और उन्होंने उस समारोह में राष्ट्रपति के संदेश को पढ़ा था, तब पटना में बैठे जेडीयू के कुछ नेताओं ने हरिवंश को क्या कुछ नहीं कहा था. जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने तब एक प्रेस कांफ्रेंस करते हुए हरिवंश से पूछा था, जब राज्यसभा अध्यक्ष को आमंत्रित नही किया गया था, लेकिन आप कुर्सी पर बैठे हैं. क्या आपने कुर्सी के लिए अपनी जमीन बेच दी है. आने वाली पीढ़ी आपको कभी माफ नहीं करेगी. ऐसे में आपकी उपस्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है. यह हमारे लिए गहरी चिंता का विषय है. पार्टी ने बड़ी उम्मीद से आपको संसद के उच्च सदन में भेजा था पर आपने कुर्सी के लिए समझौता कर लिया. हालांकि नीतीश कुमार ने कभी भी हरिवंश को लेकर सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं कहा. 


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कहा जाता है कि यह हरिवंश ही थे, जिन्होंने 2017 में जेडीयू की एनडीए में वापसी करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. जेडीयू के कई वरिष्ठ नेताओं ने इस बारे में कई बार मीडिया में इस बात की जानकारी दी थी कि 2017 में नीतीश कुमार ने एनडीए में वापसी के लिए हरिवंश के माध्यम से बीजेपी के आला नेताओं तक पहुंच बनाई थी और एनडीए में आए भी. एक खास बात यह भी जान लीजिए कि जब नीतीश कुमार ने पाला बदलकर बिहार में राजद के साथ सरकार बनाई तब भी हरिवंश को न तो भाजपा ने राज्यसभा के उपसभापति पद से हटाने की जरूरत महसूस की और न ही नीतीश कुमार से इस बात की कभी कोई पहल की गई. हां, संसद के उद्घाटन और दिल्ली सरकार के अधिकारों को लेकर संसद में पेश किए गए बिल पर भी राज्यसभा के उपसभापति पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर न केवल आसन पर जमे रहे, बल्कि मतदान में हिस्सा भी नहीं लिया. उसके बाद जेडीयू यानी टीम ललन सिंह की ओर से तो इस पर आपत्ति जताई गई लेकिन नीतीश कुमार ने आधिकारिक रूप से फिर भी कुछ भी नहीं कहा.


प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार और इस समय नीतीश कुमार के धुर विरोधी उन पर यह आरोप लगाते हैं कि जब वे किसी के लिए दरवाजे खोलते हैं तो पीछे एक खिड़की भी खुली रखते हैं. नीतीश कुमार की राजनीति को जानने वाले लोग भी यही कहते हैं. तभी तो नीतीश कुमार पिछले 20 साल से बिहार की राजनीति में अबूझ पहेली बने हुए हैं और भाजपा के दिग्गज रणनीतिकार भी इसका तोड़ नहीं निकाल पा रहे हैं. प्रशांत किशोर जिस खिड़की यानी विंडो की बात कर रहे हैं, वो और कोई नहीं बल्कि हरिवंश ही हैं. नीतीश कुमार राजद से मिलकर सरकार चला रहे हैं लेकिन हरिवंश को सही टाइमिंग का इंतजार है. हो सकता है कि इंडिया ब्लॉक की चौथी बैठक के बाद नीतीश कुमार ने उस विंडो को खोल दिया है और हरिवंश वाली पॉलिटिक्स का समय आ गया है. जब से इंडिया ब्लॉक की चौथी बैठक हुई है, जेडीयू के कई वरिष्ठ नेताओं का मत भी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का है. देखना यह है कि नीतीश कुमार खुले दरवाजे वाले पॉलिटिक्स पर कायम रहते हैं या फिर विंडो पॉलिटिक्स करने का उनका समय आ गया है. आने वाले दिन बिहार की राजनीति पर फोकस वाले हो सकते हैं.