CM नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) दिल्ली दौरे पर हैं तो वहां से जनता दल यूनाइटेड (JDU) के लिए बड़ी खबर आ रही है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस (Congress) नीतीश कुमार को यूपीए का संयोजक (UPA Convenor) बना सकती है. अगर ऐसा होता है तो नीतीश कुमार एंटी मोदी पाॅलिटिक्स (Anti Modi Politics) के धुरी बन सकते हैं और दिल्ली की राजनीति के लिए उनका रास्ता आसान हो सकता है. वह सफल होंगे या असफल, यह तो वक्त बताएगा पर एक बात तय हो गई है कि नीतीश कुमार का जो सपना था मोदी बनाम नीतीश (PM Modi Vs Nitish Kumar) वाली फाइट का, हो सकता है वो पूरा हो जाए. अब सवाल यह है कि अगर नीतीश कुमार दिल्ली की राजनीति करने चले गए तो बिहार में क्या होगा?


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राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर नीतीश कुमार दिल्ली की राजनीति करते हैं तो उन्हें पटना से अपना फोकस हटाकर दिल्ली और देश के दूसरे महत्वपूर्ण हिस्सों में शिफ्ट करना होगा. ऐसे में बिहार की सरकार का नेतृत्व बदलना होगा. हो सकता है कि नीतीश कुमार अगले कुछ महीनों में बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दें और पीएम मोदी के खिलाफ लाॅबी मजबूत करने के लिए देश भ्रमण पर निकलें, क्योंकि अगर वे यूपीए संयोजक बनते हैं तो देश भर में बड़े छोटे दलों के नेताओं से उनको बात करनी होगी, जिसके लिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय चाहिए होगा. ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए नीतीश कुमार शायद ही इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा पाएं. 


इसलिए हो सकता है कि नीतीश कुमार अगले कुछ महीनों में राष्ट्रीय राजनीति में अपना सिक्का जमाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दें. ऐसे में राजद नेता तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह डिप्टी सीएम बन सकते हैं. बता दें कि इस बार का राजद और जदयू का गठबंधन भी इसी आधार पर हुआ है कि नीतीश कुमार दिल्ली की राजनीति करेंगे तो तेजस्वी यादव प्रदेश की. अगर कांग्रेस नीतीश कुमार को यूपीए संयोजक का पद थमा देती है तो राजद की ओर से नीतीश कुमार पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने का दबाव बनाएगी. ऐसे में नीतीश कुमार के लिए मुख्यमंत्री बने रहना बेहद मुश्किल होगा. 


एक सवाल यह उठता है कि अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए यूपीए को बहुमत मिलने का इंतजार करें तो क्या होगा. तो राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजद और जदयू के बीच जो समझौता हुआ है, उसका आधार यूपीए को बहुमत मिलना नहीं है. बल्कि समझौता इस आधार पर हुआ है कि नीतीश कुमार दिल्ली की राजनीति करेंगे और तेजस्वी यादव बिहार की. वैसे भी अगर नीतीश कुमार को यूपीए का संयोजक बना दिया जाता है तो राजद को इस बात का पूरा अधिकार होगा कि वह जदयू पर दबाव बनाए कि उसने अपना वादा पूरा कर दिखाया और अब नीतीश कुमार को अपना वादा निभाना है. 


अगर नीतीश कुमार अपना वादा नहीं निभाते हैं तो फिर महागठबंधन में रार बढ़ेगी. राजद के विधायक और मंत्री और ज्यादा मुखर होते जाएंगे, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हो सकता है. ऐसे में नीतीश कुमार यह कदापि नहीं चाहेंगे कि उनके चलते महागठबंधन और एंटी बीजेपी लाॅबी कमजोर हो और उन्हें न चाहते हुए भी अपना पद छोड़ना पड़ सकता है.