Bihar Politics: हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के अध्यक्ष और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के बेटे संतोष मांझी ने नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा देकर बिहार के राजनीतिक पारे को बढ़ा दिया. मांझी के बेटे ने ऐसे वक्त में इस्तीफा दिया है जब सीएम नीतीश कुमार विपक्ष की बैठक की तैयारियों में बिजी थे. संतोष मांझी ने इस्तीफा देने के बाद मीडिया को बताया कि सीएम नीतीश कुमार उनकी पार्टी का जेडीयू में विलय कराना चाहता थे. उन्होंने कहा कि सम्मान के खोकर उन्हें सत्ता नहीं चाहिए, इसलिए मैंने इस्तीफा दे दिया. हालांकि, ये सभी को पता है कि इसके पीछे असली वजह क्या है. दरअसल, जीतन राम मांझी ने महागठबंधन में 5 सीटों की डिमांड की थी. उन्होंने साफ कहा था कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वो अपनी कसम तोड़ भी सकते हैं.

 

 


 

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि संतोष ने ये फैसला अपने पिता जीतन राम मांझी के कहने पर लिया है. मांझी जानते थे कि महागठबंधन की भीड़ में उनकी ख्वाहिशें पूरी नहीं हो सकती, इसलिए वह पहले से ही बीजेपी से नजदीकी बनाने लगे थे. वह जब दिल्ली में केंद्रीय मंत्री अमित शाह से जाकर मिले थे, तभी क्लियर हो गया था कि वह एनडीए में वापसी करने वाले हैं. मांझी ने जो डिमांड नीतीश के सामने रखी थी, उसे तो बीजेपी भी पूरा नहीं कर पाएगी. दरअसल, बिहार में बीजेपी के साथ अभी पशुपति पारस हैं. वहीं जीतन राम मांझी की तरह उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी और चिराग पासवान भी एनडीए में वापसी का इंतजार कर रहे हैं. 

 


 

यदि ये सभी नेता एनडीए का हिस्सा बन जाते हैं तो एनडीए में बीजेपी के अलावा 5 और दल हो जाएंगे. बीजेपी की रणनीति है कि 40 सीटों में से वो खुद 30 सीटों पर लड़े और बाकी बची 10 सीटों पर सहयोगी. 2019 में लोजपा 6 सीटों पर लड़ी थी, लिहाजा पशुपति पारस कम से कम इतनी सीटों की डिमांड करेंगे. 2014 में बीजेपी के साथ उपेंद्र कुशवाहा ने 3 सीटें जीती थीं, वो भी अपनी पुरानी सीटें मांग सकते हैं. चिराग पहले से ही अपनी सीट जमुई और अपने पिता की सीट हाजीपुर पर दावा ठोंक चुके हैं. वहीं जीतन राम मांझी को अपने और बेटे के लिए कम से कम 2 सीटें तो चाहिए ही. इस लिहाज से उनकी 5 सीटों की डिमांड यहां भी पूरी होती दिखाई नहीं दे रही है. तो सवाल ये उठता है कि आखिर मांझी क्यों बीजेपी के साथ आना चाहते हैं और दिल्ली में उनकी अमित शाह से क्या डील हुई थी? 

 


 

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी की तरफ से अमित शाह की ओर से मांझी को राज्यपाल बनाने का आश्वासन मिला है, जबकि लोकसभा में उनके बेटे के लिए एक सीट भी दी जाएगी. वैसे भी मांझी अब सक्रिय राजनीति से रिटायर होने की सोच रहे हैं. इसीलिए उन्होंने पार्टी की जिम्मेदारी भी अपने बेटे को सौंप दी है. वह अब सिर्फ पार्टी के संरक्षक की भूमिका निभाएंगे. गवर्नर बनकर रिटायरमेंट लेने से बेहतर दूसरा कोई प्लान नहीं हो सकता. महागठबंधन में रहते हुए उन्हें महामहिम बनने का सुख नहीं मिल सकता था.