एक तरफ पटना में विपक्षी दलों की ऑल पार्टी मीटिंग (All Opposition Meeting) बुलाने के लिए जेडीयू-राजद (JDU-RJD) बेचैन दिख रही हैं, वहीं कर्नाटक में मिली भारी जीत के चलते इस बैठक में रोड़े आ गए हैं. बताया जा रहा है कि बैठक तभी होगी, जब कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री का शपथग्रहण (Karnataka CM Oath Ceremony) हो जाएगा. वहीं मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में आपसी खींचतान चल रही है. एक तरफ सिद्धारमैया (Siddharamaiyah) मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं और उनके पास 90 विधायकों के समर्थन की बात कही जा रही है तो प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार (DK Shiv Kumar) भी मुख्यमंत्री का पद आसानी से अपने प्रतिद्वंद्वी के पास जाते नहीं देखना चाहते. विधायक दल की बैठक के बाद मामला आलाकमान के पास पहुंच गया है और मंथन का दौर जारी है. कर्नाटक के दोनों बड़े नेताओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया है. माना जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान डीके शिवकुमार को मनाने की कवायद में जुटा है और एक या दो दिन में किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है. लेकिन एक बात तय है कि जब तक कर्नाटक का मसला नहीं सुलझेगा, तब तक पटना में विपक्षी दलों की आॅल पार्टी मीटिंग नहीं होने वाली. 


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दरअसल, बिहार के सीएम और विपक्षी एकता का झंडा लेकर राज्य दर राज्य दौरा कर रहे नीतीश कुमार जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिलने कोलकाता पहुंचे तो उन्होंने न केवल सकारात्मक रुख दिखाया, बल्कि यह भी सलाह दे डाली कि नीतीश कुमार पटना में विपक्षी दलों की आॅल पार्टी मीटिंग बुलाएं. अपनी बात के समर्थन में ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि पटना से ही जेपी का आंदोलन शुरू हुआ था और मोदी सरकार के खिलाफ होने वाली एकता का सूत्र भी पटना से ही निकलना चाहिए. ममता बनर्जी की बात को सीएम नीतीश कुमार ने गंभीरता से लिया और विपक्षी दलों की आॅल पार्टी मीटिंग बुलाने में जुट गए. 


सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की पार्टियों के हवाले से कहा गया कि कर्नाटक के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद विपक्षी दलों की बैठक बुलाई जाएगी. कर्नाटक चुनाव का परिणाम तो 13 मई को ही आ गया, लेकिन विपक्षी दलों की बैठक तो छोड़िए, बैठक की तैयारियों के लिए होने वाली बैठक को भी मुल्तवी कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि जब तक कांग्रेस कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर रस्साकशी दूर नहीं कर लेती, तैयारियों को लेकर भी कोई बैठक नहीं होने वाली. 


इसमें भी एक बड़ा पेंच दिख रहा है. दरअसल, कांग्रेस चाह रही है कि विपक्षी दलों की पटना में होने वाली बैठक से पहले कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के शपथग्रहण समारोह में विपक्षी एकता की एक झलक दिखाई जाए. याद कीजिए, कुछ ऐसी ही झलक 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद बेंगलुरू में देखी गई थी. अब कांग्रेस कुछ वैसी ही झलक दिखाना चाहती है और विपक्षी दलों के नेतृत्व के मसले पर खुद को फ्रंटफुट पर रखना चाहती है. इसलिए वह पटना में होने वाली बैठक को हरी झंडी नहीं दे रही है. जाहिर सी बात है कर्नाटक में सीएम के शपथ ग्रहण समारोह के बाद ही पटना में होने वाली बैठक को हरी झंडी दी जाएगी. कांग्रेस की कोशिश है कि पहले बेंगलुरू में वह फ्रंटफुट पर सामने आए और उसके बाद विपक्षी दलों की बैठक हो, ताकि नेतृत्व के मसले पर कांग्रेस का वजन बाकी अन्य दलों की अपेक्षा कही ज्यादा रहे.