Bihar Politics: जानें बिहार की राजनीति से कैसे साइड लाइन कर दिए गए ब्राह्मण नेता?
Bihar Politics: बिहार में कई ब्राह्मण नेताओं ने बतौर मुख्यमंत्री और मंत्री रहकर लंबे समय तक राज किया है. महागठबंधन की नई कैबिनेट में ब्राह्मण साइडलाइन हो गए है.
पटनाः बिहार चाणक्य की कर्मभूमि है. राजनीति में चाणक्य को एक प्रतीक मानकर बार-बार ब्राह्मणों को श्रेष्ठ रणनीतिकार बताया जाता रहा है. इसके बावजूद आज बिहार की राजनीति में ब्राह्मणों को एक सिरे से बाहर कर देने का टीस है.
अगड़ी जाति में सबसे बड़ी आबादी
बिहार में सवर्ण जातियों में आबादी के आधार पर सबसे बड़ी जाति ब्राह्मणों की है. बिहार में कई ब्राह्मण नेताओं ने बतौर मुख्यमंत्री और मंत्री रहकर लंबे समय तक राज किया है. महागठबंधन की नई कैबिनेट में ब्राह्मण साइडलाइन हो गए है. नीतीश-तेजस्वी सहित कुल 33 मंत्रियों के मंत्रिमंडल में मात्र एक ब्राह्मण नेता संजय कुमार झा हैं. संजय कुमार झा को जेडीयू के कोटे से जल संसाधन मंत्रालय का पदभार मिला है.
1960 से लेकर 1990 तक रहा वर्चस्व
बिहार में करीब 6 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं. करीब 20 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण वोटर्स हार जीत तय करते हैं. एक समय बिहार की राजनीति में ब्राह्मण की तूती बोलती थी. आजादी के बाद बिहार में ब्राह्मण नेता मुख्य रणनीतिकार के तौर पर उभरे. 1960 से लेकर 1990 तक बिहार में ब्राह्मण नेताओं का वर्चस्व किसी से छिपा नहीं है.
हाशिये पर हैं ब्राह्मण नेता?
बिहार में ब्राह्मण सियासत का केंद्र मिथिलांचल रहा है. मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी, झंझारपुर, सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर के अलावा सुपौल, सहरसा और चंपारण में ब्राह्मण मतदाता निर्णायक होते हैं. एक दौर ऐसा भी था, जब मैथिल ब्राह्मणों की सियासत बुलंद हुआ करती थी. चाहे ललित नारायण मिश्र हों, जगन्नाथ मिश्र या फिर भागवत झा आजाद हो. दौर बदला और अब ब्राह्मण नेता हाशिये पर हैं.
वो ब्राह्मण नेता जिन्होंने संभाली बिहार की बागडोर
बिहार में साल 1961 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह की मृत्यु हो जाती है. फरवरी 1961 में पहली बार पंडित बिनोदानंद झा बतौर ब्राह्मण नेता के तौर पर मुख्यमंत्री बनते हैं. अक्टूबर 1963 तक पंडित बिनोदानंद झा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हैं. मार्च 1972 से जनवरी 1973 तक केदार पांडेय मुख्यमंत्री रहे. अप्रैल 1975 में डॉ जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बनते हैं. जगन्नाथ मिश्र ने बिहार की राजनीति में ब्राह्मणों को अलग पहचान दिलाई और वो बिहार में 3 बार मुख्यमंत्री बने. मार्च 1985 में बिंदेश्वरी दुबे और फरवरी 1988 में भागवत झा आजाद मुख्यमंत्री बनते हैं.
मंडल कमीशन लागू होने के बाद बदली राजनीति
1990 के बाद बिहार की सियासत में लालू और नीतीश कुमार की एंट्री होती है. मंडल कमीशन लागू होने के बाद बिहार की राजनीति पूरी तरह से बदल जाती है. 1990 के बाद बिहार की राजनीति में ब्राह्मण नेताओं का वर्चस्व कभी नहीं लौटा. आज भी स्थिति नहीं बदली है.
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