Bhagalpur Lok Sabha Seat Profile: बिहार की राजधानी पटना से करीब 250 किमी दूर बसे भागलपुर को बिहार की रेशम नगरी भी कहते हैं. भागलपुर की गिनती बिहार के सबसे ऐतिहासिक और प्राचीन शहर में की जाती है. पुराणों में और महाभारत में इस क्षेत्र को अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है. भागलपुर के निकट स्थित चम्पानगर शूरवीर कर्ण की राजधानी मानी जाती रही है. हिंदू धर्म ग्रंथों में समुद्र मंथन के लिए जिस मंदार पर्वत का इस्तेमाल किया गया था, वह यहीं स्थित माना जाता है. 


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गंगा किनारे बसा यह क्षेत्र हमेशा से अध्यात्म और शिक्षा का केंद्र रहा है. पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 9वीं इस्वी के करीब यहां विक्रमशीला विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई थी. इस विश्व विध्यालय में देश-विदेश से छात्र पढ़ने आते थे. सनकी बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया था. मुगलकालीन इतिहास में भी इस स्थल का जिक्र मिलता है. अफगानी विद्रोह को कुचलने हेतु  मुगल सेनापति मानसिंह ने यहीं पर अपनी अस्थाई सैनिक छावनी बनाई थी.


इस सीट का चुनावी इतिहास


1952 के लोकसभा चुनाव में भागलपुर, पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र में आता था. बाद में परिसीमन में दोनों इलाके अलग हो गए. 1957 में इस सीट पर पहली बार चुनाव हुए थे. इस क्षेत्र की जनता की खासियत ये है कि वो जिसे भी चुनती है, उसे कई बार मौका देती है. 1977 को छोड़ दें तो 1957 से लेकर 1984 तक इस सीट पर कांग्रेस का राज रहा और पूर्व सीएम भागवत झा 5 बार लोकसभा पहुंचे. 1977 में जनता पार्टी के रामजी सिंह ने उन्हें हराया था. 1989 में हुए भागलपुर दंगे के बाद से कांग्रेस बैकफुट पर चली गई और इसके बाद एक भी चुनाव कांग्रेस नहीं जीत पाई.


अजय मंडल ने रिकॉर्ड जीत हासिल की


1989-1996 तक इस सीट पर जनता दल के चुनचुन प्रसाद यादव सांसद रहे. 1998 में बीजेपी के प्रभाष चंद्र तिवारी ने पहली बार कमल खिलाया. 1999 में कम्युनिस्ट नेता सुबोध राय ने कब्जा कर लिया. लेकिन 2004 में बीजेपी के सुशील कुमार मोदी ने वापस सीट छीन ली. लगातार दो बार बीजेपी के शहनवाज हुसैन भी दिल्ली पहुंच चुके हैं. 2014 में उन्हें आरजेडी के शैलेश कुमार मंडल ने हराया था. 2019 में बीजेपी गठबंधन में यह सीट जेडीयू के खाते में गई और जेडीयू के अजय मंडल ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी. 


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इस सीट के सामाजिक समीकरण


इस सीट पर समाजिक समीकरण बड़ी भूमिका अदा करते हैं. राजनीतिक दलों से मिले आंकड़ों के अनुसार यहां मुस्लिम करीब साढ़े तीन लाख, यादव तीन लाख हैं. वहीं गंगौता दो लाख, वैश्य डेढ़ लाख, सवर्ण ढाई लाख, कुशवाहा और कुर्मी डेढ़ लाख के करीब हैं. अति पिछड़ा और महादलित मतदाताओं की संख्या भी करीब तीन लाख है. यादव-मुस्लिम गठजोड़ के बाद आरजेडी को सिर्फ एक बार ही जीत हासिल हुई है.