Jehanabad Lok Sabha Seat Profile: बिहार के जहानाबाद जिला का इतिहास काफी पुराना है. यहां 322-185 सदी की मौर्यकालीन गुफाएं हैं. मुगलकालीन इतिहास में भी इस क्षेत्र का जिक्र आता है. कहते हैं कि मुगलराज के दौरान यहां भीषण अकाल पड़ा था, जिससे कई लोगों की भूख से मौत हुई थी. कहते हैं कि औरंगजेब ने इस परिस्थिति से निपटने के लिए 'जहांआरा मंडी' की स्थापना की थी. जिसके कारण ही इसका नाम 'जहांआराबाद' पड़ा, जो बाद में जहानाबाद बन गया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


सोन, पुनपुन और फाल्गु नदी से सिंचित यह क्षेत्र कृषि के लिहाज से काफी उपयोगी है. इस क्षेत्र में गेंहू, धान और मक्का की अच्छी पैदावार होती है. इसी वजह से रोजगार के लिहाज से कृषि एक बड़ा साधन है. लाल मंदिर, गौरक्षणी देवी मंदिर, गायत्री शक्ति पीठ दुर्गा मंदिर, राम जानकी मंदिर और शिव-शक्ति मंदिर यहां आस्था के बड़े केंद्र और प्रसिद्ध जगहें हैं. 


पहले चुनाव में ही महिला बनी सांसद


इस सीट की जनता ने कम्युनिस्टों को मजबूत किया तो समाजवादियों को भी फलने-फूलने का मौका दिया. हालांकि, इसके बाद भी जातिवाद लोगों के सिर चढ़कर बोलता है. जातीय समीकरणों के कारण ही कोई भी दल इस सीट पर जीत हासिल करने का दाव नहीं कर सकता. इस सीट पर पहला लोकसभा चुनाव 1962 में हुआ था, जिसमें कांग्रेस की सत्यभामा देवी को जीत हासिल हुई थी. 


1998 से समाजवादी फल-फूल रहे


दूसरे ही चुनाव यानी 1967 में सीपीआई के चंद्रशेखर सिंह ने कब्जा कर लिया. 1996 तक कम्युनिस्टों का दबदबा देखने को मिला, तो 1998 से समाजवादी फलफूल रहे हैं. मौजूदा समय में भी इस समय पर समाजवादी परिवार से जन्मी जेडीयू का ही कब्जा और चंदेश्वर प्रसाद सांसद हैं. 2019 का चुनाव जेडीयू ने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था. वहीं 2014 में NDA में शामिल रालोसपा के अरुण कुमार को जीत मिली थी. 


ये भी पढ़ें- Poster Row: नीतीश की इफ्तार पार्टी पर BJP ने जारी किया पोस्टर, लिखा- मौलाना टोपी पहनकर PM का सपना...


इस सीट पर सामाजिक समीकरण


जहानाबाद संसदीय क्षेत्र में भूमिहार और यादव वोटरों का दबदबा है. यही कारण है कि हमेशा यादव और भूमिहार कैंडिडेट ही जीतकर आता है. कुशवाहा, कुर्मा और मुस्लिम वोटर यहां गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. इस सीट का एक और इतिहास है 1996 के बाद से यहां की जनता ने किसी को लगातार दूसरी बार लोकसभा नहीं भेजा.