Lohardaga Lok Sabha Seat Profile: झारखंड के लोहरदगा जिले का इतिहास मौर्य काल से है. लोगों का मानना है की प्रचीन काल में यहां पर सभी प्रकार के लोहे के हथियार बनाए जाते थे, इस कारण इस जिले का नाम लोहरदगा रखा गया था. जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान महावीर ने लोहरदगा की यात्रा की थी. यहां जिस स्थान पर भगवान महावीर रुके थे, उसे 'लोर-ए-यादगा' के नाम से जाना जाता है. सम्राट अकबर पर लिखी पुस्तक 'आयने अकबरी' में भी 'किस्मत-ए-लोहरदगा' का उल्लेख है.


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लोहरदगा संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए आरक्षित है. इस सीट के दायरे में झारखंड के तीन जिले लोहरदगा, रांची और गुमला आते हैं. विधानसभाओं की बात करें तो इस संसदीय क्षेत्र के अंदर लोहरदगा (एसटी), गुमला (एसटी), बिशुनपुर (एसटी), सिसई (एसटी) और मंदार (एसटी) विधानसभा सीटें आती हैं. खास बात ये है कि एक भी सीट पर बीजेपी का कब्जा नहीं है. हालांकि लोकसभा सीट पर मुख्य लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही देखने को मिलती है. 


1957 में इस सीट पर पहली बार वोट डाले गए और झारखंड पार्टी के इग्नेस बेक को पहला सांसद बनने का खिताब मिला. 1962 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के डेविड मुंजनी सांसद चुने गए. 1967 और 1971 में कांग्रेस से कार्तिक उरांव ने जीत दर्ज की. 1977 में भारतीय लोक दल के लालू उरांव ने बाजी मारी. 1980 में कांग्रेस के कार्तिक उरांव ने फिर वापसी की. 1984 और 1989 में उनकी पत्नी सुमति उरांव सांसद बनीं. 


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1991 में कांग्रेस के विजय रथ को बीजेपी के ललित उरांव ने रोका था. 1996 में भी वही चुने गए. 1998 में कांग्रेस के इंद्रनाथ भगत ने बीजेपी से सीट छीनी, तो 1999 में बीजेपी के दुखा भगत ने फिर कमल खिलाया. 2004 में कांग्रेस से रामेश्वर उरांव जीते थे. इसके बाद बीजेपी के सुदर्शन भगत ने इतिहास रच दिया. वह पहले ऐसे नेता हैं जिसने इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई है. 2009, 2014 और 2019 में उन्होंने जीत हासिल की थी.