पटना: बिहार में उपचुनाव तो सिर्फ दो सीट पर हैं. गोपालगंज और मोकामा. लग सकता है कि ये उतने अहम नहीं हैं. इनके नतीजे चाहें कुछ भी हों, बिहार में सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन हकीकत ये है कि इन दोनों सीटों पर कौन जीतता है ये महागठबंधन से लेकर बीजेपी तक की राजनीति पर असर डालेगा. ये पूरे बिहार की राजनीति पर असर डालेगा...इस वीडियो में हम आपको मोकामा उपचुनाव की अहमियत, वहां क्या दांव पर लगा है, ये बताएंगे..बताएंगे मोकामा में जारी रहेगी अनंत कथा या फिर बीजेपी लिखेगी नई गाथा? 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मोकामा के वोटर
मोकामा में करीब पौने तीन लाख वोटर हैं. जिसमें से करीब डेढ़ लाख पुरुष और सवा लाख महिला वोटर हैं. इस सीट पर हमेशा से भूमिहारों का दबदबा रहा है. वो जिधर गए, उधर जीत गई. भूमिहारों के बाद यहां ब्राह्मण, कुर्मी, यादव और पासवान वोटरों का नंबर आता है. 1990 तक यहां कांग्रेस जीतती रही, फिर यहां जनता दल का दबदबा रहा.1990 से 2000 तक जेडीयू जीती और 2000 के बाद अनंत छाए रहे. 


मोकामा में बाहुबली नेता अनंत सिंह
पिछले चार बार से मोकामा से बाहुबली नेता अनंत सिंह जीतते आए हैं. वो किसी पार्टी से लड़ें, निर्दलीय खड़े हो जाएं, जीते वही. 2020 में जेल से लड़े, फिर भी जीते. इस बार वो नहीं लड़ रहे. हथियारों के मामले में कोर्ट से सजा मिलने के बाद वो लड़ नहीं सकते. सजा के बाद विधायकी रद्द हुई इसीलिए उपचुनाव हो रहे हैं. लेकिन मैदान में अनंत की पत्नी नीलम देवी हैं. महागठबंधन से उम्मीदवार हैं. तो बड़ा सवाल यही है कि क्या मोकामा में अनंत कथा जारी रहेगी, क्या यहां अनंत सिंह यानी यहां के लोगों के लिए 'छोटे सरकार' की सरकार बरकरार रहेगी? 


दो बाहुबलियों में मुकाबला
दूसरी तरफ हैं एक दूसरे बाहुबली ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी. तो इस तरह से यहां एक बार फिर दो बाहुबलियों में मुकाबला है. 27 साल बाद यहां बीजेपी सीधे उम्मीदवार उतार रही है. सोनम देवी के लिए बीजेपी ने अपनी चुनावी महामशीन लगा रखी है. बीजेपी ने 20 विधायकों की तैनाती कर दी है. और हर विधायक को उसकी जाति बहुल वाली तीन पंचायतों के सभी बूथों का जिम्मा सौंपा गया है, हिदायत है कि वोटर को बूथ तक लेकर आएं. 


बीजेपी ने की तैनाती
इतना ही नहीं इससे इतर अन्य नामचीन नेता भी हैं जो जाति विशेष वोट को बीजेपी के पक्ष में करने के लिए या तो आ चुके हैं या फिर आने वाले हैं. इनमें गिरिराज सिंह, सांसद विवेक ठाकुर, राकेश कुमार सिन्हा, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, सांसद रामकृपाल यादव, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल, विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी, पूर्व उप मुख्यमंत्री रेणु देवी शामिल  हैं. चर्चा है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी प्रचार के लिए आएंगे. अटपटी है, लेकिन ये भी खबर है कि चिराग पासवान भी मोकामा में बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांग रहे हैं. दूसरी तरफ पेट में चोट लगने की वजह से नीतीश कुमार आरजेडी प्रत्याशी के लिए प्रचार नहीं कर पाएंगे. 


बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का विषय
बीजेपी ने इस सीट को प्रतिष्ठा का विषय इसलिए भी बनाया है क्योंकि ये नीतीश से अलग होने के बाद पहला चुनाव है. इस चुनाव में महागठबंधन जीता तो एक संदेश जाएगा कि वोटर नीतीश से नाराज नहीं है, उसे नीतीश-तेजस्वी का तालमेल कबूल है. अगर बीजेपी जीती तो वो जरूर कहेगी कि देखो वोटर ने धोखे की सजा दी. बोचहां उपचुनाव के बाद अगर इस उपचुनाव में भी  बीजेपी को हार मिली तो 2024 के लिहाज से उसके लिए सही संदेश नहीं निकलेगा. बोचहां के चुनाव प्रचार में बीजेपी ने करीब 24 मंत्री, सांसदों, विधायकों की फौज उतारी थी. बीजेपी ने अपने नेताओं को पंचायत स्तर तक प्रचार में उतारा था. पैटर्न रहा है कि जो पार्टी सत्ता में होती है, उपचुनाव जीतती है, लेकिन सत्ता में रहते हुए भी बीजेपी हार गई. 


मोकामा में बीजेपी को उम्मीद
मोकामा में बीजेपी उम्मीद कर रही है कि उसे विपक्ष में होने का फायदा मिल सकता है..लेकिन इसमें ज्यादा दम नजर नहीं आता क्योंकि अभी नई सरकार को आए कम समय हुआ है. यहां भूमिहार जीतते आए हैं, जिस समुदाय को बीजेपी के ज्यादा निकट माना जाता है लेकिन चूंकि दोनों उम्मीदवार भूमिहार ही हैं, लिहाजा ये सिक्का भी चलेगा, कुछ कह नहीं सकते.
मोकामा वो सीट है जो बिहार की नब्ज बताती है. याद कीजिए सन शड़षठ का चुनाव. कांग्रेस की मोकामा में हार हुई और फिर वहां से पूरे बिहार में उसके लिए हवा बदलने लगी.