Bihar Politics: नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की सरकार के आज एक साल हो गए. अरे रे रे रे रे रे, एक साल नहीं, यह सरकार का पांचवां साल है. दोनों बातें सही हैं. अब आप चक्कर खा गए होंगे. अरे चक्कर खाने की जरूरत नहीं है. रुकिए और गिनती कीजिए. 2020 के आखिर में विधानसभा चुनाव हुए और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने. भाजपा (BJP) के साथ उन्होंने 21 महीने की सरकार चलाई और उसके बाद राजद (RJD) के साथ महागठबंधन (Mahagathbandhan) की सरकार चलाने लगे. नीतीश कुमार ने महागठबंधन की सरकार पूरे 18 महीने तक चलाई और मन फिर उब गया और पिछले साल यानी 2024 के जनवरी महीने की 28 तारीख को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के साथ एनडीए के बैनर तले आकर फिर से सरकार बनाई. इस तरह से पिछले साल बनी सरकार का एक साल पूरा हो गया और वैसे देखें तो यह नीतीश सरकार का पांचवां साल है, तभी तो इस साल के आखिर में चुनाव है.


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सन् 2020 के आखिर में बिहार में चुनाव हुए और एनडीए को बहुमत मिला. नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी और पहली बार सुशील कुमार मोदी के बदले भाजपा ने 2 डिप्टी सीएम तैनात कर दिए. एक थे तारकिशोर प्रसाद और दूसरी थीं रेणु देवी. सरकार बनने के बाद से ही दोनों डिप्टी सीएम ने नीतीश कुमार पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमलावर होना शुरू हो गए थे. मोदी सरकार 2.0 में नीतीश कुमार ने तत्कालीन जेडीयू अध्यक्ष आरसीपी सिंह को मंत्री बनवा दिया था और जेडीयू की बागडोर राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के हाथों में आ गई थी. नीतीश कुमार चाहते थे कि सुशील कुमार मोदी ही डिप्टी सीएम बनें पर भाजपा नेतृत्व को यह मंजूर नहीं था. सुशील कुमार मोदी को तब भाजपा ने राज्यसभा भेज दिया था.


नीतीश कुमार लगातार सुशील कुमार मोदी के लिए खालीपन महसूस करते थे और यदा कदा वे इसका जिक्र भी करते थे. तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के अलावा 2022 आते आते भाजपा के अन्य नेताओं के अलावा तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल भी हमलावर होने लगे थे और अपनी ही सरकार पर सवाल उठाने लगे थे. एक समय बिहार की राजनीति में यह चर्चा शुरू हो गई थी कि आरसीपी सिंह के बहाने भाजपा जेडीयू को तोड़ने में लगी हुई है. इस बात को राजद ने जोर शोर से उठाया. इस बीच जेडीयू के तत्कालीन अध्यक्ष ललन सिंह और लालू परिवार के बीच सेटिंग हो गई और 2022 के जुलाई अगस्त में नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़कर महागठबंधन के मुख्यमंत्री के रूप में फिर से शपथ ले ली थी. 


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नीतीश कुमार के एक ही कार्यकाल में दो बार शपथ लेने के बाद सब कुुछ बदल चुका था. भाजपा विपक्ष में थी और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम की भूमिका में. राजद के विधायकों की हैसियत सत्ताधारी दल के विधायक की हो गई थी. मतलब भाजपा की भूमिका में राजद थी और राजद की भूमिका में भाजपा. जेडीयू तो पिछले 20 साल से सत्ताधारी दल ही बनी हुई है. जो आरोप कल त​क तेजस्वी यादव सरकार पर लगाते थे, वहीं आरोप भाजपा नेता लगाने लगे और भाजपा जिन ​मुद्दों को लेकर नीतीश कुमार की सरकार का बचाव करती थी, वह काम तेजस्वी यादव एंड टीम करने लगी थी. उसके बाद भाजपा आलाकमान की ओर से यह कहा जाने लगा कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं. 


एक साल बीता, उसके बाद थोड़ी सी सुगबुगाहट शुरू हुई. राजद के कुछ विधायक तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते थे और इस बाबत खुलकर बयान देने लगे थे. इसे लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार असहज हो रहे थे. फिर यह बात सामने आई कि राजद और जेडीयू के बीच इस बात पर समझौता हुआ है कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करेंगे और तेजस्वी यादव के हिस्से में बिहार आएगा. राजद इसके लिए दबाव बनाने लगा था. फिर नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन को एक मेज पर लाने का काम सौंपा गया. नीतीश कुमार को लगा कि वे पूरे विपक्ष के नेता बन सकते हैं तो यह काम उन्होंने जोशोखरोश से किया पर इंडिया ब्लॉक की दिल्ली में हुई चौथी बैठक ने नीतीश कुमार की आखिरी उम्मीद तोड़ दी थी. 


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फौरन 29 दिसंबर, 2023 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेडीयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुला ली. दिल्ली में हुई राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश कुमार ने ललन सिंह के बदले खुद ही अध्यक्षी धारण कर ली. उसके बाद उम्मीद जताई जाने लगी कि राज्य में बड़ा बदलाव हो सकता है. आखिर, 28 जनवरी, 2025 की वो घड़ी भी आ गई, जब नीतीश कुमार ने एक ही कार्यकाल में तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. अब गश खाने की बारी राजद की थी और मलाई चाटने वाला काम भाजपा के जिम्मे आ गया था. भूमिकाएं एक बार फिर बदल गई थीं. भाजपा ने तेजस्वी यादव को एक बार फिर जता दिया कि वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है. अब उस सरकार को भी एक साल हो चुके हैं और लगता है कि यही सरकार अब चुनाव में एक साथ जाएगी और जनता से अपने किए के लिए वोट मांगेगी.


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