Anand Mohan Release: बिहार की राजनीतिक इतिहास में आज यानी गुरुवार (27 अप्रैल) का दिन हमेशा के लिए दर्ज हो गया. आज नीतीश कुमार की कृपा से बाहुबली नेता आनंद मोहन हमेशा के लिए जेल से बाहर आ गए हैं. एक वो दिन था जब नीतीश ने प्रदेश में लालू के जंगलराज के खिलाफ हुंकार भरी थी और एक आज का दिन है जब वो बाहुबलियों के सामने दंडवत हो गए हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, बल्कि लालू के साथ आते ही सुशासन बाबू हमेशा अपने पथ से भटक जाते हैं. 


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साल 2016 याद करिए, नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे और तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री. बिहार सरकार में लालू की पार्टी वापस आई थी तो 11 साल बाद राजद नेता शहाबुद्दीन के लिए जेल के दरवाजे खुल गए थे. उनको तुरंत जमानत मिल गई थी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बिहार सरकार के वकील की ओर से जमानत का विरोध नहीं किया गया था. उनकी रिहाई को काफी सेलीब्रेट किया गया और पूरे लाव-लश्कर के साथ घर तक छोड़ा गया था. बता दें कि राजद नेता पर अपहरण और हत्या सहित 40 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे. इसमें कोई शक नहीं कि लालू के दबाव में नीतीश को यह फैसला लेना पड़ा था.


बाहुबलियों के सामने नीतीश का सरेंडर


इस घटना से सुशासन बाबू की छवि को बड़ा डेंट लगा था. नीतीश के दोबारा बीजेपी के साथ आने की यही सबसे बड़ी वजह बनी थी. एक बार फिर से प्रदेश में राजद-जदयू गठबंधन की सरकार है. फिर से नीतीश कुमार सीएम और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम हैं. एक बार फिर से बाहुबलियों के सामने नीतीश कुमार को सरेंडर करना पड़ा है. आनंद मोहन के साथ 27 अन्य कैदी भी रिहा किए गए हैं. इनमें से ज्यादातर राजद के नेता हैं. इनको जेल से बाहर निकालने के लिए नीतीश कुमार ने नियमों में ही बदलाव कर दिया. 


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रिहाई के फैसले का विरोध शुरू


बता दें कि आनंद मोहन को डीएम जी. कृष्णैया की हत्या के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, लेकिन ऊपरी अदालत ने इसे उम्रकैद में बदल दिया था. आनंद मोहन की रिहाई से पीड़ित परिवार को काफी दर्द हुआ है. IAS लॉबी भी नीतीश सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही है. मायावती और चिराग पासवान जैसे इसे दलित विरोधी फैसला बता रहे हैं.