पांच का `पंच` नहीं सजने दे रहा विपक्षी एकता का मंच, नीतीश के सामने परेशानी ही परेशानी!
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार विपक्षी की एकता का केंद्र बन गया है. आपको बता दें कि बिहार में ही 12 जून को विपक्षी दलों की एक बैठक होना तय हुआ है जिसमें आगे लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों की क्या रणनीति होगी इस पर विचार किया जाएगा.
Opposition Unity Failed: 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार विपक्षी की एकता का केंद्र बन गया है. आपको बता दें कि बिहार में ही 12 जून को विपक्षी दलों की एक बैठक होना तय हुआ है जिसमें आगे लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों की क्या रणनीति होगी इस पर विचार किया जाएगा. इस बैठक की अगुवाई नीतीश कुमार करनेवाले हैं लेकिन आपको बता दें कि इसके पहले ही विपक्षी एकता में खलल पड़ती नजर आ रही है. एक तरफ बिहार में महागठबंधन के घटक दलों में से एक हम के नेता जीतन राम मांझी अपनी पार्टी के लिए सीटों के डिमांड को लेकर मुखर हो गए हैं तो वहीं इस बैठक से पहले कांग्रेस ने भी नीतीश कुमार की इस पहल को जोर का झटका धीरे से दिया है.
भाजपा विपक्ष के इस बढ़ते कदम से परेशान तो है लेकिन वह निश्चिंत इस बात को लेकर है कि 2018 में भी इसी तरह से सभी विपक्षी दलों के नेता एक साथ एक मंच पर हाथ मिलाकर खड़े दिखे थे लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के आते-आते उनकी एकता की जड़ में मठ्ठा पड़ गया था. ऐसे में भाजपा ने नीतीश कुमार को ही निपटाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. वैसे भी जिन दलों के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों ने मोर्चा खोल रखा है वही दल इस विपक्षी एकता के मंच पर साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं.
ये भी पढ़ें- चमकाना चाहते हैं अपनी किस्मत तो करें काली हल्दी के ये उपाय, दूर होगी सारी परेशानियां
अब आप विपक्षी एकता के मंच पर पहुंचने वाली पार्टियों को देखें तो कांग्रेस से लेकर राजद, टीएमसी से लेकर आम आदमी पार्ट, जेएमएम और उद्धव वाली शिवसेना, वाईएसआर कांग्रेस हो या एनसीपी सभी के किसी ना किसी नेता पर केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच चल रही है. इस सब के बाद भी विपक्षी एकता की राह में कई रोड़े हैं जिनमें से 5 ऐसी वजहें हैं जिसने नीतीश की इस मुहिम में उनकी परेशानी और बढ़ा दी है.
पहले तो पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की बात करते हैं. वामदलों को सत्ता से बेदखल कर अपनी पार्टी के लिए बंगाल में जमीन तैयार कर चुकी ममता कभी भी कांग्रेस और वामदलों को यहां जमीन तैयार करने नहीं देना चाहेंगी. तभी तो ममता ने वह फॉर्मूला सुझाया था जिसमें जो दल जहां मजबूत है वहां की सीटों पर उसी पार्टी को चुनाव लड़ने की बात कही थी. ममता ने तो कांग्रेस के जीते एक मात्र विधायक को भी अपने साथ मिला लिया. तब भी नीतीश विपक्षी एकता की मुहिम मार्च में लगे थे.
वहीं अगर बात यूपी की जमीन पर कांग्रेस और सपा के बीच समझौते की करें तो अखिलेश यादव एक बार कांग्रेस और एक बार बसपा के साथ मिलकर चुनाव में अपनी स्थिति देख चुके हैं. यूपी में बसपा, सपा और कांग्रेस के बीच छत्तीस का आंकड़ा है ऐसे में सपा सीटें छोड़कर कांग्रेस को लड़ने के लिए आमंत्रित करेगी ऐसा संभव ही नहीं लगता है. हाला में विधानपरिषद की दो सीटों पर उपचुनाव में यह नजारा दिखा भी सपा के पक्ष में कांग्रेस और बसपा विधायकों का वोट नहीं करना और भाजपा का दोनों सीटों पर जीत जाना इसका उदाहरण है.
आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का रिश्ता तो जगजाहिर है. केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं. कांग्रेस से मिलने का वक्त मांगा तो उन्होंने सीधे तौर पर इससे इनकार कर दिया. राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे अरविंद केजरीवाल की केंद्र के खिलाफ एकता की मुहिम को अनसुना कर चुके हैं. खरगे ने तो साफ कह भी दिया कि विधेयक पर पार्टी आप का साथ नहीं देनेवाली है. मतलब साफ है कि विपक्षी एकता केवल दिखावे के लिए है.
नीतीश कुमार जिसके दम पर विपक्षी एकता की मशाल लेकर निकले थे उसी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने उनकी मशाल में फूंक मार दी है. कांग्रेस की तरफ से विपक्षी एकता की बैठक में ना तो राहुल गांधी आ रहे हैं और ना ही मल्लिकार्जुन खड़गे इसकी घोषणा कांग्रेस की तरफ से कर दी गई है. मतलब साफ है कि कर्नाटक चुनाव के नतीजे से उत्साहित कांग्रेस अब किसी के दबाव में रहने को तैयार नहीं है.
विपक्षी एकता को 5वां झटका तो उन विपक्षी दलों ने दिया है जो पहले ही इससे किनारा कर चुके हैं. बसपा सुप्रीमो पहले से ही इससे दूरी बना चुकी हैं. केसी आर ने इस बैठक में आने की बात से इंकार कर दिया है. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तो सबसे पहले नीतीश को यह कहकर झटका दे चुके हैं कि किसी तीसरे मोर्चे की जरूरत नहीं है. जगन मोहन रेड्डी भी इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं. वहीं जेडीएस भी इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. दूसरी तरफ बिहार में ही महागठबंधन के दल हम ने जो आंख दिखाना शुरू किया है वह तो अलग है.