IAS G Krishnaiah Murder: डीएम जी. कृष्णैया हत्याकांड एक बार फिर से चर्चा में आ गया है. दप्पा पार्टी की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी ने इस मामले में सीएम नीतीश कुमार पर दोषियों को बचाने का आरोप लगाया है. अपने एक ट्वीट में मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए पुष्पम प्रिया चौधरी ने लिखा, 'चोरी-छुपे नियम बदल दिया गया. ऐसा किसी सभ्य समाज के इतिहास में हुआ है? न्याय का इससे बड़ा अपमान क्या होगा? बिहार की मीडिया में भी यह खबर लुप्त है. क्या यही लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है? क्या हमारी भी आत्मा मर चुकी है?'


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सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि 29 साल पहले हुई इस दुर्दांत हत्या पर अब राजनीति शुरू हो चुकी है. दरअसल, नीतीश सरकार ने बिहार कारा हस्तक 2012 में कुछ नियमों में संशोधन किया है. इसमें कहा गया है कि काम पर तैनात सरकारी कर्मचारी की हत्या को विलोपित किया जाएगा. इसी कारण से पुष्पम प्रिया ने नीतीश सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं. बता दें कि इस हत्या में बाहुबली नेता आनंद मोहन को दोषी ठहराया गया था. 


 



इस हत्याकांड की दुर्दांत कहानी


इस घटना को याद करके भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ये खौफनाक वाकया बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का है और तारीख है 5 दिसंबर 1994. उस दिन नामी गैंगस्टर छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई थी, इससे लोगों में काफी गुस्सा था. इसी दौरान गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया एक बैठक में शामिल होने के बाद लौट रहे थे. वह अपनी लालबत्ती वाली गाड़ी में बड़े आराम से जा रहे थे, तभी हाईवे पर भीड़ ने उनकी गाड़ी पर पथराव कर दिया.


लालू यादव थे बिहार के सीएम


भीड़ ने उन्हें गाड़ी से खींच कर बाहर निकाला और पीट-पीटकर हत्या कर दी. इस दौरान वह चीखते रहे, चिल्लाते रहे, पर किसी को रहम नहीं आई. उनके सुरक्षाकर्मियों ने भी बचाने की काफी कोशिश की, लेकिन असफल रहे. भीड़ को ये भी बताया गया कि ये मुजफ्फरपुर के नहीं बल्कि गोपालगंज के डीएम हैं, लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ. दिनदहाड़े हुए एक पद पर तैनात डीएम की हत्या ने पूरे देश में सनसनी फैला दी. बता दें बिहार में उस वक्त लालू यादव की सरकार थी.


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बाहुबली आनंद मोहन को हुई सजा


इस हत्याकांड में 2007 में बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन, बिहार सरकार में पूर्व मंत्री अखलाक अहमद और अरुण कुमार को फांसी की सजा सुनाई गई. हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को आजीवान कारावास में बदल दिया. सजा के खिलाफ आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन उसे वहां से भी राहत नहीं मिली थी. वहीं आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद, छोटन शुक्ला के भाई मुन्ना शुक्ला और 2 अन्य को भी उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन साल 2008 में साक्ष्यों के अभाव में इन्हें बरी कर दिया गया था.