Bihar Caste Census: जातीय जनगणना पर नीतीश सरकार की बड़ी कामयाबी, पटना हाईकोर्ट से मिली हरी झंडी
पटना हाईकोर्ट ने जातीय जनगणना को हरी झंडी दे दी है. इससे अब जातीय जनगणना कराने का रास्ता साफ हो गया है.
Bihar Caste Census: बिहार में जातीय जनगणना को लेकर पटना हाईकोर्ट से बिहार सरकार को बड़ी राहत मिली है. हाईकोर्ट ने जातीय जनगणना को हरी झंडी दे दी है. इससे अब जातीय जनगणना कराने का रास्ता साफ हो गया है. मंगलवार (01 अगस्त) को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने बिहार में सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण कराने को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. जातीय जनगणना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने लगातार 5 दिनों तक सुनवाई की. उच्च न्यायालय ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब 25 दिन बाद इस मामले में हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है.
जातीय जनगणना पर राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पीके शाही ने सुनवाई के अंतिम दिन कोर्ट को बताया कि यह सिर्फ एक सर्वेक्षण है. इसका मकसद आम नागरिकों के बारे में सामाजिक अध्ययन के लिए आंकड़े जुटाना है. इसका उपयोग आम लोगों के कल्याण और हितों के लिए किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के दौरान किसी को भी अनिवार्य रूप से कोई जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसा सर्वेक्षण राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है. इस सर्वेक्षण से किसी की निजता का उल्लंघन नहीं हो रहा है.
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मंगलवार को हाईकोर्ट ने करीब 100 पन्नों का आदेश जारी किया. मुख्य बात यह है कि कोर्ट ने उन सभी अर्जियों को खारिज कर दिया है, जिनमें यह दलील देते हुए रोक लगाने की मांग की गई थी कि जनगणना का काम सिर्फ केंद्र का है राज्य का नहीं. बता दें कि नीतीश सरकार ने पिछले साल बिहार में जातिगत गणना कराने का नोटिफिकेशन जारी किया था. जनवरी 2023 में इस पर काम शुरू हुआ था. जनवरी में पहला चरण बिना झंझट के पूरा हो गया था, लेकिन दूसरे चरण के दौरान पटना हाईकोर्ट ने जातिगत गणना पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी. जिससे बिहार में इस पर काम रुक गया था. कोर्ट के आदेश पर तब तक इकट्ठा किए गए आंकड़ों को संरक्षित रखा गया था.
जातीय गणना को लेकर पटना हाई कोर्ट में राज्य सरकार की तरफ से कहा गया था कि सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए सभी अपनी जाति बताने को आतुर रहते हैं. सरकार ने नगर निकायों एवं पंचायत चुनावों में पिछड़ी जातियों को कोई आरक्षण नहीं देने का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी को 20 प्रतिशत, एससी को 16 फीसदी और एसटी को एक फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. अभी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 50 फीसदी आरक्षण दिया जा सकता है.