कर्नाटक में विधानसभा चुनाव (Karnataka Election 2024) बुरी तरह हारने के बाद कुछ राजनीतिक विश्लेषक मोदी सरकार (Modi Govt) को लेकर तरह-तरह की बातें कर रहे हैं. कई लोगों का कहना है कि पीएम मोदी (PM Modi) का जादू अब अपने ढलान पर है तो कुछ का कहना है कि केवल हिंदुत्व के बल पर अब भाजपा अब चुनाव में कमाल नहीं दिखा पाएगी. कुछ लोग कर्नाटक के मूड को देश का मूड बता रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) से पहले ऐसा तुरूप का इक्का फेंकने वाली है, जिससे विरोधी चित हो सकते हैं. यह इक्का ऐसा ही है जैसे लोकसभा चुनाव 2019 से पहले बीजेपी की मोदी सरकर ने सवर्ण आरक्षण (EWS Reservation) का इक्का फेंका था और दलित उत्पीड़न एक्ट में संशोधन से सवर्णों की नाराजगी को भी पार्टी ने दूर कर लिया था. अब आइए जानते हैं कि वो कौन सा तुरूप का इक्का है, जो बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले इस्तेमाल कर सकती है.


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जुलाई के अंत में आएगी रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट


वो तुरूप का इक्का कुछ और नहीं, बल्कि रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट है.  रोहिणी कमीशन ने अब तक की अपनी फाइडिंग्स में पाया है कि ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग में से केवल 10 जातियां 25 प्रतिशत आरक्षण का लाभ ले रही हैं. यानी 25 प्रतिशत ओबीसी जातियां 97 प्रतिशत जातियों का हक मार रही हैं. रिपोर्ट का यह भी कहना है कि 37 प्रतिशत ओबीसी जातियों को आज तक आरक्षण का कोई लाभ मिला ही नहीं है. इसका मतलब यह हुआ कि आरक्षण का लाभ बैकवर्ड में फाॅरवर्ड वाले ही उठा रहे हैं. जिस दिन 983 जातियां अपने आरक्षण के हक के लिए खड़ी हो गईं, उस दिन से बैकवर्ड में फाॅरवर्ड 10 जातियों की दिक्कतें बढ़ना शुरू हो जाएंगी.


क्या है रोहिणी कमीशन और क्या है उसकी जिम्मेदारी? 


केंद्रीय सूची में अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर उप वर्गीकरण के लिए 2 अक्टूबर 2017 को रोहिणी कमीशन का गठन किया गया था. आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर उप वर्गीकरण के लिए साइंटिफिक तरीके से एक पैरामीटर तैयार करे. आरक्षण के असमान वितरण भी रोहिणी आयोग को रिपोर्ट देने को कहा गया था. यह कवायद इसलिए की गई थी कि आरक्षण का फायदा सभी जातियों को मिले. इस तरह से रोहिणी आयोग की जिम्मेदारी है कि वह केंद्रीय सूची से संबंधित वर्गों, समुदायों, उपजातियों की पहचान करे और उन्हें संबंधित उपश्रेणियों में कैटेगराइज करे. आयोग की अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी. रोहिणी दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर से सेवानिवृत हो चुकी हैं. वह ओबीसी समुदाय से आती हैं. आयोग में जो तीन अन्य सदस्य हैं, उनमें सेंटर फाॅर पाॅलिसी स्टडीज नई दिल्ली के निदेशक डा. जेके बजाज, भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण कोलकाता के निदेशक पदेन सदस्य के रूप में आयोग में हैं. इनके अलावा भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त भी पदेन सदस्य के रूप में आयोग में सहयोग दे रहे हैं. राष्ट्रपति भवन से 25 जनवरी को जारी अधिसूचना में कहा गया कि 31 जुलाई 2023 तक आयोग अपनी फाइनल रिपोर्ट दे देगा. 


रिसर्च में रोहिणी आयोग ने क्या पाया? 


भाजपा के प्रवक्ता डा. अजय आलोक ने एक चैनल से बातचीत में कहा है कि मोदी सरकार रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को अक्षरश: लागू करने वाली है. अगर ऐसा होता है कि ओबीसी में मलाई खाने वाली जातियों और उनकी राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों की परेशानी बढ़ सकती है. रोहिणी आयोग ने 2018 में ओबीसी कोटा के तहत केंद्र सरकार की एक लाख 30 हजार नौकरियों और आईआईएम, आईआईटी जैसे संस्थानों में एडमिशन के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसके चैंकाने वाले ये आंकड़े सामने आए-  


  • सेंट्रल गवर्नमेंट की 97 प्रतिशत नौकरियों और एडमिशन में ओबीसी की 25 प्रतिशत उपजातियां हावी हैं. 

  • 24.95 सीटों पर केवल 10 ओबीसी जातियों का कब्जा है. आयोग ने अभी उन जातियों का नाम सार्वजनिक नहीं किया है. 

  • 983 जातियों यानी 37 फीसदी ओबीसी आबादी को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए आरक्षण का लाभ नहीं मिला. 

  • रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का कहना है कि 994 उप जातियों का सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का प्रतिनिधित्व केवल 2.68 प्रतिशत है.


सियासत में भूचाल ला देगा रोहिणी आयोग की रिपोर्ट 


कर्नाटक चुनाव तो हो गया लेकिन अभी इस साल मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में चुनाव होने हैं. इन चुनावों से लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर जनता के मूड का पता चलेगा, ऐसा जानकारों का मानना है. हालांकि हर चुनाव का अपना अलग मिजाज होता है. फिर भी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट आने के बाद देश की सियासत में भूचाल आ जाएगा. ऐसा भी नहीं है कि यह रिपोर्ट मोदी सरकार के लिए संजीवनी बन सकती है. यह गले की फांस भी बन सकती है. ऐसे में मोदी सरकार चुनाव की तराजू पर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को जरूर तौलेगी. देश में पिछले कुछ महीनों से 90 और 10 की राजनीति की जा रही है, ताकि जाति कार्ड के बहाने बीजेपी के हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण रोका जा सके.