Shikaripara Assembly Seat Profile:  झारखंड की शिकारीपाड़ा विधानसभा सीट पर 20 नवंबर को वोटिंग होनी है. पश्चिम बंगाल की सीमाओं को छूता दुमका जिले का शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र कई मायने में अहम है. उद्योग-धंधों से महरूम शिकारीपाड़ा क्षेत्र की पहचान ऐतिहासिक मंदिरों का गांव मलूटी से होती है. कोयला जैसी अकूत खनिज संपदा वाली यह सीट जेएमएम का अभेद किला मानी जाती है. जेएमएम नेता नलिन सोरेन का इस विधानसभा पर बीते लगातार 35 सालों से एकछत्र राज कायम है. वह यहां से लगातार 7 बार विधायक के रहे हैं. हालांकि, अब वह लोकसभा पहुंच चुके हैं. नलिन के दिल्ली जाने पर सीएम हेमंत सोरेन ने उनके बेटे आलोक सोरेन को टिकट दिया है. वहीं बीजेपी ने एक बार फिर परितोष सोरेन को मैदान में उतारा है.


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देश की आजादी के बाद अब तक हुए चुनावों में जेएमएम ने सर्वाधिक 10 बार जीत हासिल की है, जिसमें लगातार सात बार जीतने का रिकॉर्ड नलिन सोरेन के नाम पर दर्ज है. आलोक सोरेन क्या अपने पिता की राजनीतिक धरोहर को बचाकर रख पाते हैं, ये देखने वाली बात होगी. 2019 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस सीट से 13 उमीदवार खड़े हुए थे. जिसमें 3 प्रत्याशी निर्दलीय के रूप में खड़े थे. इसके बाद भी किसी में नलिन सोरेन के विजयरथ को रोकने की काबिलियत नहीं थी. नलिन सोरेन ने बीजेपी प्रत्याशी परितोष सोरेन को 29,147 मतों से हराया था. नलिन सोरेन को 78,994 वोट मिले थे, वहीं बीजेपी प्रत्याशी परितोष सोरेन को 49,847 मत प्राप्त हुए थे.


2019 के उम्मीदवार


1. नलिन सोरेन- झारखंड मुक्ति मोर्चा (तीर कमान),
2. परितोष सोरेन- भारतीय जनता पार्टी (कमल)
3. मुन्नी हांसदा- ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (पुष्प और तृण)
4. राजेश मुर्मू- झारखंड विकास मोर्चा (कंघा)
5. श्याम मरांडी- आजसू पार्टी (केला)
6. देबू देहरी- झारखंड की क्रांतिकारी पार्टी (हेलीकॉप्टर)
7. रेखा हेंब्रम-राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी (फूलगोभी)
8. शिवधन मुर्मू- लोक जनशक्ति पार्टी (बंगला)
9. सलखान मुर्मू- जनता दल (यू) (ट्रैक्टर चलाता किसान)
10. सुनील कुमार मरांडी-झारखंड पीपुल्स पार्टी (हांडी)
11. गणेश सोरेन-निर्दलीय (नारियल फार्म)
12. स्टेफन बेसरा-निर्दलीय (ऑटो रिक्शा)
13. हाबिल मुर्मू-निर्दलीय (गैस सिलेंडर)


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शिकारीपाड़ा विधानसभा चुनाव में इस बार कई मुद्दे सामने आ सकते हैं. अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहने के कारण यहां नक्सलियों द्वारा कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया गया है. हालांकि, बीते कुछ वर्षों से नक्सल घटनाओं में कमी आई है. रोजगार के नाम पर यहां पत्थर खदान और क्रेसर स्थापित है. जिसके कारन पलायन यहां एक बड़ा मुद्दा है. स्वास्थ्य और शिक्षा के नाम पर भी इस क्षेत्र में कुछ नहीं है.


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