Bihar Special Status: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विशेष राज्य के मुद्दे को दिल से लगाया और बहुत समय तक उस पर राजनीति करते रहे. यहां तक कि 2014 का लोकसभा चुनाव भी नीतीश कुमार ने अकेले दम पर इसी मुद्दे पर लड़ा, लेकिन वे मात खा गए और केवल 2 सांसद ही जीतकर लोकसभा पहुंचे. उससे पहले जब तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब नीतीश कुमार ने जमकर विशेष राज्य के मसले को उठाया था. यहां तक कि नीतीश कुमार ने कहा था कि प्रधानमंत्री जी के पास बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर बात करने के लिए वक्त ही नहीं है. नीतीश कुमार ने डॉ. मनमोहन सिंह पर यह भी आरोप लगाया था कि इस मुद्दे पर बात करने के लिए हमने वक्त मांगा था पर वह वक्त आज तक मिला ही नहीं.


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12 साल पहले 2012 की बात है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के लिए विशेष राज्य के मुद्दे को केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया था. उस समय लालू प्रसाद यादव इस मांग को शिगूफा बताते रहे थे. जेडीयू ने इस मांग के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चलाया और सवा करोड़ लोगों के हस्ताक्षर वाला मेमोरेंडम केंद्र सरकार को भेजा गया. उस समय विरोधी दल के रूप में राजद और कांग्रेस नेता यह कहकर मजाक उड़ाते थे कि जब बिहार इतनी तेजी से विकसित हो रहा है तो स्पशल स्टेटस क्यों चाहिए. तब नीतीश की पार्टी के नेता जवाब में कहते थे, अब तक हम अपने दम पर यहां तक पहुंचे हैं. अब और आगे जाने के लिए विशेष राज्य का दर्जा जरूरी है. 


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नीतीश कुमार का तब कहना था, मौजूदा विकास दर बनी रही तो हम अगले 25 साल में राष्ट्रीय औसत तक पहुंचेंगे. वहीं विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर हम तेजी से यह दर छू पाएंगे. तब मनमोहन सिंह की सरकार ने बिहार सरकार की मांग पर एक अंतर मंत्रालयी समूह बनाया, लेकिन बहुत लोग इसे खानापूरी बताते रहे और बाद में इसका कोई हल निकलकर नहीं आया. अंतर मंत्रालयी समूह ने नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी मांग को खारिज कर दिया. तब नीतीश कुमार ने कहा था कि विशेष राज्य के दर्जे के लिए तय पैमाने में फेरबदल की जरूरत है. इस बीच 12 मई 2012 को मनमोहन सिंह की तत्कालीन सरकार के संसदीय कार्य मंत्री पटना पहुंचकर बोले, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा. पटना पहुंचकर कोई केंद्रीय मंत्री यह ऐलान करे, नीतीश कुमार यह कैसे बर्दाश्त करते?


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16 जून 2012 को ही नीतीश कुमार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर यह जाहिर किया कि बिहार को क्यों स्पेशल स्टेटस की जरूरत है. 19 सितंबर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के स्पेशल स्टेटस के लिए अधिकार यात्रा शुरू की थी. अधिकांश जिलों में उनकी यात्राएं हुईं. इसके बाद 4 नवंबर 2012 को पटना के गांधी मैदार में अधिकार रैली बुलाई गई और उसमें नीतीश कुमार ने ऐलान किया कि हमारी मांगों पर विचार नहीं किया गया तो हम अगले साल मार्च में दिल्ली के रामलीला मैदान को भर देंगे. नीतीश कुमार ने तब आरोप लगाया था कि केंद्र बिहार की हकमारी कर रहा है और हम इसे बर्दाश्त करने वाले नहीं हैं.



सवाल यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मसले को जमकर उठाया पर उसके बाद इसको लेकर मुख्यमंत्री की मुखरता काफी कम होती चली गई. दरअसल, तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह और पीएम मोदी में काफी अंतर रहा. पीएम मोदी बहुमत दल वाले प्रधानमंत्री हैं तो डॉ. मनमोहन सिंह के पास जुगाड़ वाला बहुमत था. इसके अलावा पीएम मोदी ने पहले दिन से ही साफ कर दिया था कि केंद्रीय स्तर पर अब देश में दबाव वाली राजनीति नहीं चलेगी. साथ ही पीएम मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले नीतीश कुमार ने उनके रिश्ते बहुत ही तल्ख हो चुके थे. 


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सबसे पहले तो नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में भाजपा से नाता तोड़ लिया था. उसके बाद कोसी की विपदा में गुजरात सरकार की मदद को भी नीतीश कुमार ने ठुकरा दिया था और यहां तक कि पहले से दी गई मदद को वापस भी कर दिया था. नरेंद्र मोदी के बहाने नीतीश कुमार ने पटना में भाजपा के शीर्ष नेताओं के लिए पहले से तय डिनर को कैंसिल कर दिया था. एक तो नरेंद्र मोदी से तल्ख रिश्ते और दूसरी ओर भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत, नीतीश कुमार शायद इन्हीं कारणों से 2014 के बाद विशेष राज्य के दर्जे पर उतने मुखर नहीं हो पाए और 20 साल बाद में यह मुद्दा जिंदा है. पता नहीं और कितने दिनों तक यह मसला जिंदा रहेगा और इस पर राजनीति होती रहेगी.