क्या होता है विशेष राज्य का दर्जा, क्यों बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए अभी की जा रही ऐसी मांग?
त्रिशंकु लोकसभा होते ही बिहार और आंध्र प्रदेश की हसरतें फिर से जाग गई हैं. इन दोनों राज्यों के नेताओं ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को हवा देना शुरू कर दिया है. देखना यह है कि मोदी सरकार 3.0 में उनकी यह पुरानी मांग पूरी होती है या नहीं.
भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 में जैसे ही बहुमत से दूर हुई, तमाम गड़े मुर्दे अब सामने आकर उसे चुनौती दे रहे हैं. इन्हीं में से एक है- विशेष राज्य का दर्जा. विशेष राज्य का दर्जा बिहार के अलावा आंध्र प्रदेश की वर्षों पुरानी मांग है, जिसे अनसुना कर दिया गया था. अब जबकि केंद्र में गठबंधन की सरकार का राज कायम होने जा रहा है, बिहार और आंध्र प्रदेश की ओर से एक बार फिर से ऐसी मांगें उठाई जा रही हैं. कांग्रेस की अलग अलग सरकारों ने 11 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया था, जिनमें जम्मू कश्मीर, असम, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तराखंड आदि शामिल हैं. बिहार से अलग होकर झारखंड के बनने के बाद से ही विशेष राज्य की मांग की जा रही थी. इसी तरह आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के अलग होने के बाद से ही वहां भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग हो रही थी.
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क्या होता है विशेष राज्य का दर्जा
विशेष राज्य के दर्जे से मतलब यह होता है कि बाकी राज्यों की तुलना में संबंधित राज्य को ज्यादा तरजीह देना. चाहे किसी योजना में या फिर फंड के अलॉटमेंट में या फिर खर्च के नियमों में उस राज्य को बाकी राज्यों की तुलना में तरजीह दी जाती है, यही विशेष राज्य का मतलब होता है. अगर केंद्र सरकार किसी राज्य को विशेष राज्य घोषित कर देती है तो वह राज्य बाकी राज्यों की तुलना में अधिक फंड पा सकता है, फंड चुकाने में अधिक समय ले सकता है, फंड खर्च करने के नियमों में भी राहत पा सकता है और अगर वित्त वर्ष खत्म होने पर भी फंड बच गया तो वह इन फंड्स को खर्च कर सकता है. बिहार और आंध्र प्रदेश केंद्र सरकार से कुछ ऐसी ही रियायत चाह रहे हैं.
क्यों मांग रहे विशेष राज्य का दर्जा
सन् 2000 ई. में बिहार का विभाजन कर केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने झारखंड राज्य की स्थापना की थी. एकीकृत बिहार में जो संसाधन थे, वे झारखंड में ही थे. उत्तर बिहार और मध्य बिहार में कोई प्राकृति संसाधन नहीं था और न ही अभी है. इसलिए बिहार की सरकारों ने अलग अलग समय पर झारखंड के अलग होने के बाद मुआवजे के रूप में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करनी शुरू कर दी थी. बिहार की सरकारों की मांग थी कि या तो बिहार को स्पेशल पैकेज दिया जाए या फिर स्पेशल स्टेटस दिया जाए. इसी तरह जब 2014 में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश से अलग हुआ तो यही तर्क आंध्र प्रदेश के लिए दिया गया और विशेष राज्य के दर्जे की मांग की जाने लगी थी.
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विशेष राज्य का दर्जा मिलने से फायदा क्या
विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद केंद्रीय योजनाओं में हिस्सेदारी ज्यादा मिलने लगती है. केंद्र से अतिरिक्त वित्तीय मदद मिलती है और उद्योग धंधों में रियायत दी जाती है. इसके अलावा उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और कॉरपोरेट टैक्स में भी संबंधित टैक्स को फायदा दिया जाता है.
विशेष राज्य के दर्जे को लेकर क्या कहता है संविधान
भारतीय संविधान में विशेष राज्य के दर्जे के लिए कोई प्रावधान नहीं है. 1969 में पांचवें वित्त आयोग ने कुछ पिछड़े राज्यों के लिए विशेष राज्य के दर्जे की सिफारिश की थी. पांचवें वित्त आयोग की सिफारिशों को मानकर गाडगिल फॉर्मूला बनाया गया और कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया. विशेष राज्य का दर्जा देते समय कई फैक्टर्स का ख्याल रखा जाता था. जैसे आधारभूत संरचना, जनसंख्या घनत्व, पड़ोसी देशों से लगने वाली सीमावर्ती राज्य की स्थिति आदि.
दूसरी ओर, 14वें वित्त आयोग ने विशेष राज्य के फॉर्मूले को हटाने की सिफारिश की थी. आयोग ने राज्यों में अंतर कम करने की पैरवी की और टैक्स ट्रांसफर या डिवॉल्यूशन को 32 से बढ़ाकर 42 फीसद राज्यों को बांटने पर बल दिया था. इसका मतलब यह कि जरूरतमंद राज्यों को टैक्स का 32 से 42 प्रतिशत हिस्सा दिया जाएगा.
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हर पांव में एक नंबर का जूता नहीं, नीतीश का बयान वायरल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब विशेष राज्य की मांग उठाते थे तो उसके खिलाफ में कई तरह के तर्क दिए जाते थे. इस पर नीतीश कुमार ने कहा था, हर पांव में एक ही नंबर का जूता नहीं होता. दरअसल, योजना आयोग की तत्कालीन सदस्य सुधा पिल्लई की अध्यक्षता वाली कमेटी ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को खारिज कर दिया था और कहा था कि यह देखा जाना चाहिए कि कौन सा राज्य समृद्धि के मामले में राष्ट्रीय औसत से कितना दूर है.
फिर से क्यों उठ रही विशेष राज्य के दर्जे की मांग
लोकसभा चुनाव 2024 में किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. भाजपा को सबसे अधिक 240 सीटें हासिल हुई हैं और वह अपने बूते सरकार नहीं बना सकती है. यानी एक बार फिर देश में गठबंधन की सरकार का जमाना शुरू हो गया है. गठबंधन की सरकारों में छोटे या क्षेत्रीय दलों के सामने अपना राजनीतिक वजूद बचाने की चुनौती होती है, लिहाजा स्थानीय राज्य सरकारें विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करती हैं. बिहार और आंध्र प्रदेश में एक बार फिर यह मांग तेज हो चली है और बहुत संभव है कि इन दोनों राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिल भी जाए.