बिहार सरकार केंद्र से क्यों लगा रही योजनाएं घटाने की गुहार, खजाने का मुंह खोलकर आखिर क्या चाहती है दिखाना?
2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड के गठन के बाद से ही बिहार सरकार के खजाने में सूखा पड़ा है. बिहार से रह-रहकर राज्य को स्पेशल पैकेज देने की मांग की जाती रही है. विशेष राज्य के दर्जे की मांग के साथ कई बार बिहार में सियासी समीकरण भी बने और बिगड़े हैं. इस बार तो हद ही हो गई है.
पटना : 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड के गठन के बाद से ही बिहार सरकार के खजाने में सूखा पड़ा है. बिहार से रह-रहकर राज्य को स्पेशल पैकेज देने की मांग की जाती रही है. विशेष राज्य के दर्जे की मांग के साथ कई बार बिहार में सियासी समीकरण भी बने और बिगड़े हैं. इस बार तो हद ही हो गई है. बिहार सरकार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी तो अब सरकार का खजाना खाली होने का दावा कर रहे हैं. वह केंद्र के सामने अपने खजाने का द्वार खोलकर दिखाने तक लगे हैं कि देखिए अब इसके भीतर कुछ नहीं बचा है.
बिहार सरकार जहां एक तरफ नई-नई योजनाओं को लागू करने की बात कर रही है. वहीं बिहार के वित्त मंत्री केंद्र से कई योजनाओं को घटाने या बंद करने की मांग कर रहे हैं. वह साफ तौर पर कह रहे हैं कि राज्य के खजाने में पैसा नहीं है ऐसे में वह योजनाओं को कार्यान्वित कैसे करें. बिहार सरकार केंद्र से कह रही है कि उनकी वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है. दूसरी तरफ केंद्र योजना पर योजना दिए जा रही है ऐसे में खाली खजाने से उस योजना को कैसे पूरा करें. खैर बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी की बात मान भी लें कि बिहार सरकार के खजाने में अब कुछ नहीं है तो सवाल यह भी उठेगा कि सरकार की तरफ से राज्य जातीय जनगणना को लेकर जो 500 करोड़ का बजट रखा गया है वहां कहां से आएगा.
वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी केंद्र से मांग करने के मुड में हैं कि केंद्र सरकार केंद्रीय योजनाओं की संख्या में कमी लाए ताकि राज्यों पर वित्तीय बोझ कम पड़े. वह कहते हैं कि केंद्र की योजनाओं में लगातार हो रही वृद्धि से राज्य की वित्तीय सेहत पर बुरा असर पड़ा है. वित्त मंत्री कह रहे हैं कि बिहार जैसे कमजोर और गरीब राज्य के लिए यह अतिरिक्त भार की तरह है. इसकी वजह से ऐसे राज्यों को नुकसान होता है. ऐसे में बिहार जैसे राज्यों के लिए केंद्र सरकार को चुनिंदा योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए कुछ सहायता की जाए और इस प्रक्रिया को लचीला बनाने के साथ इसके वितरण में सुधार लाया जाए.
उन्होंने आगे कहा कि वह इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार को पत्र भी लिखेंगे और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से बात करने के लिए मिलने का समय भी मांगेंगे. हालांकि वह केंद्र सरकार पर बरसने से नहीं चुके उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास दर की राष्ट्रीय औसत को देखें यह 7% है वहीं बिहार की आर्थिक विकास दर 10.98 प्रतिशत है जो बेहतर है. हालांकि उन्होंने आगे कहा कि बिहार देश के गरीब राज्यों में से एक है और उसे केंद्र सरकार से स्पेशल पैकेज की दरकार है. उन्होंने केंद्र पर भेदभाव करने और सीएसएस के लिए पर्याप्त धन जारी नहीं करने का आरोप भी लगाया. इसके साथ ही उन्होंने आगे कहा कि राज्य को केंद्रीय करों में जो हिस्सा मिलना चाहिए वह उच्त हिस्सा भी नहीं मिल रहा है.
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के इस रवैये की वजह से बिहार की आर्थिक हालत खराब हो रही है. उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार की योजनाओं के लिए भी राज्य को अपने खजाने से रकम खर्च करना पड़ रहा है. उन्होंने आगे कहा कि सीएसएस में केंद्र की हिस्सेदारी अब घटकर 50 प्रतिशत हो गई है जो पहले 75 प्रतिशत हुआ करती थी. मतलब केंद्र के हिस्से का एक बड़ा भाग अब राज्यों को देना पड़ता है.