दिसंबर की सर्द रातों में राजनीतिक सरगर्मी का बढ़ जाना कोई नई बात नहीं है. एक साल पहले भी बिहार ऐसी सर्द रातों का गवाह रह चुका है. अब एक बार फिर दिसंबर बीत रहा है तो सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक पंडितों तक में एक बार फिर बिहार में पाला बदल की गुंजाइश की आहट महसूस की जाने लगी है. हालांकि पिछली बार की तरह इस बार भी संबंधित दलों की ओर से कोई ऐसी बात सामने नहीं आई है. फिर भी दो ऐसे घटनाक्रम हैं, जिनको लेकर कहा जा सकता है कि कुछ न कुछ नाराजगी जरूर है. इसमें पहला है राजद विधायक भाई वीरेंद्र की ओर से सीएम नीतीश कुमार को महागठबंधन में आने का ऑफर देना और दूसरा है डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा का यह कहना कि जब तक भाजपा का अपना सीएम नहीं होता, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं होगी.


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डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के बयान के बाद से सियासी पार चढ़ गया और राजद से लेकर कांग्रेस के अलावा जेडीयू के रिएक्शन भी आए. भाजपा ने नुकसान भरपाई और नीतीश कुमार के नाराज न होने के उपाय भी फौरी तौर पर शुरू कर दिए. इस बीच राजद विधायक भाई वीरेंद्र का यह कहना कि राजनीति में कुछ भी संभव है, सरगर्मी पैदा करता है. भाई वीरेंद्र का कहना है कि राजनीति में कोई हमेशा के लिए दोस्त और दुश्मन नहीं होता. राजनीति परिस्थितियों का खेल है. उन्होंने दावा ​करते हुए कहा कि संभव है कि बिहार में फिर से खेला हो जाए. अगर नीतीश कुमार सांप्रदायिक ताकतों को छोड़कर आएंगे तो हम उनका स्वागत करेंगे. हालांकि भाई वीरेंद्र का इस तरह का बयान पूर्व में भी आ चुका है.


इससे पहले राजद नेता तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमले की कड़ी को आगे बढ़ाते हुए कहा था, नीतीश कुमार को बीजेपी चला रही है. भाजपा के हाथ में मुख्यमंत्री कार्यालय का पूरा कंट्रोल चला गया है. दिल्ली में बैठे जेडीयू के कुछ नेता भाजपा के लिए काम कर रहे हैं और अब बिहार में सब कुछ अमित शाह देख रहे हैं. तेजस्वी यादव के ऐसे बयान राजनीतिक सरगर्मी और किसी भी बदलाव के विपरीत हैं. आम तौर पर नीतीश कुमार जिस दल से हाथ मिलाने जा रहे होते हैं, उस दल के नेताओं के बयान उनके प्रति माधुर्य से भरे होते हैं. याद कीजिए पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह पूरे साल नीतीश कुमार के लिए भाजपा के दरवाजे बंद होने की बात कहते रहे लेकिन 2024 के पहले महीने में ही नीतीश कुमार का पाला बदल और तेजस्वी यादव का तख्तापलट हो गया था. 


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सीधी सी बात है, अगर राजद और जेडीयू या फिर नीतीश और लालू के बीच किसी भी प्रकार की खिचड़ी पक रही होती तो लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, रोहिणी यादव आदि के बोल में शक्कर घुल जाते. जैसा कि पिछले साल दिसंबर से लेकर जनवरी तक भाजपा नेताओं के बोल में घुल गए थे. अगर आज भी तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार के खिलाफ व्यक्तिगत तौर पर हमले बोल रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि बाकी सब बातें कयासबाजी हैं. नीतीश कुमार के पास यह विकल्प हमेशा है और जब तक वे बिहार की राजनीति में सक्रिय रहेंगे, यह विकल्प उनके लिए खुला रहेगा. यह उनका अपना राजनीतिक चमत्कार है और यह चमत्कार किसी राजनीतिक जादूगर के हाथ में ही हो सकता है.


अब आते हैं 28 दिसंबर पर. पिछले साल नीतीश कुमार ने पूरे साल इंडिया ब्लॉक की स्थापना के लिए पटना से लेकर दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और बेंगलुरू सब एक कर दिया था. उनकी महत्वाकांक्षा इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व करने की थी लेकिन लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने इसमें लंगड़ी मार दी थी. नीतीश कुमार पीएम पद का उम्मीदवार तो छोड़िए, इंडिया ब्लॉक के संयोजक तक नहीं बन पाए थे. इसलिए नीतीश कुमार ने नाराज होकर 28 दिसंबर, 2023 को जेडीयू के राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाई थी. दिल्ली में हुई परिषद की बैठक में नीतीश कुमार ने खुद ही अध्यक्ष पद का ओहदा संभाला था. नीतीश कुमार से पहले ललन सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे और उनका कार्यकाल कुछ महीने पहले ही खत्म हो गया था. 


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नीतीश कुमार के अध्यक्ष बनने के बाद से संजय झा, अशोक चौधरी और ​विजय कुमार चौधरी सक्रिय हुए और भाजपा के साथ आने के लिए पार्टी आलाकमान से संपर्क साधा था. एक महीने में भाजपा और जेडीयू के नेताओं ने इस प्लान को मूर्त रूप दिया और जनवरी के आखिरी में नीतीश कुमार ने 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. अब चूंकि 28 दिसंबर को पूरे एक साल होने जा रहे हैं तो फिर से पाला बदल की आहट की बात कही जा रही है. सवाल यह उठता है कि ऐसे में जब नीतीश कुमार पूरे साल लोगों के बीच यह कहते रहे कि अब उधर नहीं जाना है तो क्या वे राजद के साथ जाने को तैयार होंगे और उससे भी बड़ा सवाल यह कि क्या इंडिया ब्लॉक में हुई बेइज्जती को बिहार के मुख्यमंत्री भुला पाएंगे? ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. बाकी जो हो रहा है, वो बबल से ज्यादा कुछ नहीं लगता. 


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