Ranchi: झारखंड में अगले वर्ष एयरोसोल प्रदूषण में पांच प्रतिशत वृद्धि हो सकती है जिससे दृश्यता स्तर में गिरावट आ सकती है तथा लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं. एक प्रतिष्ठित अनुसंधान संगठन के अध्ययन में यह बात कही गयी है. 


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बढ़ सकता है प्रदूषण


अध्ययन के अनुसार इस पूर्वी राज्य के ‘बहुत ही खतरा संभावित’ रेड जोन में ऐसा प्रदूषण बने रहने की संभावना है. उसमें पाया गया कि एयरोसोल की ऊंची मात्रा के लिए तापविद्युत संयंत्रों का उत्सर्जन मुख्य कारक है. एयरोसोल में पीएम 2.5 और पीएम 10 कण, समुद्री लवण, धूल, सल्फेट, काले एवं आर्गेनिक कार्बन शामिल हैं. 


कोलकाता के बोस इंस्टीट्यूट के एसोसिएट प्रोफेसर (पर्यावरण विज्ञान) डॉ. अभिजीत चटर्जी ने पीटीआई-भाषा से कहा, 'बढ़ते एयरोसोल प्रदूषण से अस्थमा, फेफड़े, हृदय के रोगों की स्थिति बिगड़ सकती है. बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं.'


उन्होंने यह भी कहा, 'एयरोसोल प्रदूषण में पांच प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है जिएसे एओडी स्तर 2023 में बहुत ही खतरा संभावित क्षेत्र में 0.6 के ऊपर जा सकता है.' एयरोसोल ओप्टिकल डेप्थ (एओडी) वायुमंडल में मौजूद एयरोसोल का मात्रात्मक अनुमान है और इसका पीएम 2.5 के छद्म मापन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. अध्ययन के अनुसार 0.3 से कम एओडी हरित क्षेत्र (ग्रीन जोन) में, 0.3 से 0.4 नीला क्षेत्र (कम खतरा संभावित), 0.4 से 0.5 नारंगी क्षेत्र (ओरेंज जोन एवं खतरा संभावित) तथा 0.5 से बहुत अधिक खतरा संभावित रेड जोन(लालक्षेत्र) में आता है. 


चटर्जी और इसी संस्थान की पीएचडी छात्रा मोनामी दत्ता ने भारत में राज्य स्तरीय एयरोसोल प्रदूषण की गहरी अंतर्दृष्टि नामक एक अध्ययन किया है. दत्ता ने कहा, 'एयरोसोल प्रदूषण में तापबिजली संयंत्र के उत्सर्जन का योगदान 2005 -2009 के 41 प्रतिशत से बढ़कर 2015-2019 में 49 प्रतिशत हो गया. 


(इनपुट: भाषा के साथ)