Ghatshila: इस गांव में आजादी के 75 सालों में भी नहीं बना पुल, गुहार लगाते बूढ़ी हुईं पीढ़ियां
Bridge not built in Jay River: चट्टानी पानी, जैसा नाम है, गांव के लोगों की तरबियत इस गांव के नाम को सच साबित करती है क्योंकि इन लोगों का हौसला चट्टना जैसा ही दृढ़ है. हर साल पेड़ों से लकड़ी काटकर लाना और बारिश-मानसून के मौसम से ठीक पहले नदी पर पुल बांध लेना, यहां के लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा है.
रांची/घाटशिला: Bridge not built in Jay River:आने वाली अगस्त की 15वीं तारीख को देश अपनी आजादी के 75 साल पूरे कर लेगा. स्वतंत्रता के शतक में केवल 25 साल ही रह गए हैं. बात झारखंड की करें तो इस राज्य के निर्माण को भी 22 साल हो चुके हैं, इस राज्य में एक गांव है चट्टानी पानी. झारखंड के अंतिम छोर पर बसा, ओडिशा राज्य से सटा ये गांव घाटशिला के डुमरिया प्रखंड में है, जो कि एक आदिवासी बहुल इलाका है. विडंबना है कि विकास के तमाम दावों और इन्फ्रास्ट्रक्चर के सलोने सपनों के बीच इस गांव में नदी पार करने के लिए आज तक पुल नहीं बन सका है.
झारखंड में है चट्टानी पानी गांव
चट्टानी पानी, जैसा नाम है, गांव के लोगों की तरबियत इस गांव के नाम को सच साबित करती है क्योंकि इन लोगों का हौसला चट्टना जैसा ही दृढ़ है. हर साल पेड़ों से लकड़ी काटकर लाना और बारिश-मानसून के मौसम से ठीक पहले नदी पर पुल बांध लेना, यहां के लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा है. डुमरिया प्रखंड के चट्टानी पानी गाँव के ग्रामीण अपने गाँव के बीच से बहने वाली इस पहाड़ी जय नदी पर पुल बनाते हैं. हालांकि इससे पहले वह कई दिनों तक सरकारी दफ्तरों और मुलाजिमों के चक्कर काटते रहते हैं और गुहार लगाते रहते हैं. पुल बनाने की मांग को लेकर जनप्रतिनिधियों तक दौड़-भाग करते हैं. लेकिन इनकी नहीं सुनी जाती है. फिर आसमान बादल छाने लगते हैं तो सभी ग्रामीण दौड़ पड़ते हैं जंगलों की ओर, क्योंकि वक्त रहते पुल नहीं बन सका तो फिर इनका दूसरे गांवों से संपर्क कट जाएगा. गांव वाले कहते हैं, आपन मरे सुरग नाह भेंटाई, यानी बिना खुद के मरे स्वर्ग नहीं देखा जा सकता है. इसीलिए वह हर साल खुद ही पुल बना लेने में देर नहीं करते हैं.
गुहार लगाते बीती पीढ़ियां
ग्रामीणों ने कहा कि यहां पुल बनाने की मांग करते हुए पीढ़ियां बीत चुकी हैं. बारिश के समय जय नदी के कारण हमारा गाँव दो टुकड़ों में बंट जाता है. पुल की मांग को लेकर विधायक, सांसद से लेकर जिला प्रशासन तक आवाज उठायी है लेकिन कुछ नहीं हुआ. कई बार चुनाव में ग्रामीणों ने पुल नहीं तो वोट नहीं का नारा भी बुलंद किया, लेकिन किसी ने इनके इस दर्द को न तो आज तक सुना और न ही समझने का प्रयास किया है. डुमरिया प्रखंड के चट्टानीपानी गांव के ग्रामीण आजादी के समय से ही जय नदी पर लकड़ी के पुल पर से आना-जाना करते है. ग्रामीणों को सबसे अधिक समस्या बरसात के समय में होती है जब यह पहाड़ी नदी उफान मारने लगती है ,और इनके द्वारा बनाया गया यह पुल भी डूब जाता है.
बरसात में टापू बन जाता है गांव
बरसात में यह गांव पूरी तरह से टापू बन जाता है. जय नदी में पानी भर जाने से गांव के ग्रामीणों को तीन माह तक सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन दिनों गांव का स्कूल भी बंद हो जाता है. डुमरिया प्रखंड के इस गांव में लगभग 800 से अधिक वोटर हैं. इस गाँव की कुल जनसंख्या तकरीबन ढाई हजार के आसपास है. इस गाँव से होकर गुजरने वाली सड़क मुख्य रूप से झारखंड और ओडिशा को जोड़ती है. गांव के ग्रमीणों ने कहा कि पुल को लेकर प्रखंड से जिला तक ज्ञापन दे चुके हैं.
पुल बना तो दस गांवो को फायदा पहुंचेगा
चट्टानीपानी गांव की जय नदी पर पुल बनने से तकरीबन दस गांवो को फायदा पहुंचेगा. झारखंड के चट्टानीपानी, जोजोगोडा, सुनूडोर, दामडीडीह, गुरूटोला और ओडिसा के काहुतुका, डाहपानी,जा रही और कुसमघाटी गांव के ग्रामीण जो साप्ताहिक हाट करने के लिये चट्टानी पानी के जोजोगोडा आते हैं, लेकिन पुल नहीं बनने से इन गांवो के ग्रामीणों को बरसात के समय में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बरसात के समय जय नदी में पानी भर जाने से इन गांवों का संपर्क भी कट जाता है.
नेताओं ने दिया आश्वासन
बीते कुछ महीने पहले पोटका से झामुमो विधयाक संजीब सरदार चट्टानीपानी गाँव पहुंचकर ग्रामीणों के साथ इस पुल का निरीक्षण किया था और ग्रामीणों को पुलिया जल्द बनवाने का आश्वासन दिया था, लेकिन अभी तक उनका आश्वासन महज कही गई बात भर है. लिहाजा ग्रामीणों ने इस बार भी जय नदी पर श्रमदान कर लकड़ी का पुल बना लिया है. विधायक-सांसद और पदाधिकारियों के आश्वसन से ग्रामीणों में कुछ आस जगी थी लेकिन समय बीतने के साथ इनकी यह उम्मीद धरी की धरी रह गयी है.
खुद पुल बनाते हैं ग्रामीण
व्यवस्था से नाराज ग्रामीणों ने कहा की आदिवासीयों के उत्थान और विकास के लिए संयुक्त बिहार से झारखण्ड अलग राज्य बना और आज राज्य में आदिवासी मुखिया,आदिवासी विधायक,आदिवासी मंत्री और आदिवासी मुख्य मंत्री है फिर भी हमलोग आजादी के समय से ही हमलोग जद्दोजहद की जिन्दगी जीने को मजबूर हैं. इस समय अगर हमारी समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है तो हमलोग अब क्या उम्मीद कर सकते हैं. ग्रामीणों ने बताया की इस पुल की मांग करते-करते हमारे बूढ़े परलोक सिधार गए, हम खुद बूढ़े हो गए और न जाने आगे की कौन सी पीढ़ी में पुल बनेगा.
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