रांची: झारखंड हाईकोर्ट में एक फरियादी ने अपने मुकदमे में खुद हिंदी में बहस करने की इजाजत मांगी तो कोर्ट ने इसे न सिर्फ स्वीकार किया, बल्कि पूरे मुकदमे की सुनवाई हिंदी में हुई. यहां तक कि अदालत ने अपना आदेश भी हिंदी में जारी किया. 


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आमतौर पर अंग्रेजी में होती है सुनवाई
झारखंड हाईकोर्ट में इसे अपनी तरह का पहला उदाहरण बताया जा रहा है. आमतौर पर शीर्ष अदालतों में अंग्रेजी में ही सुनवाई की परंपरा रही है. यह मुकदमा जमीन विवाद से संबंधित था. जस्टिस केपी देव की अदालत में इसकी सुनवाई हुई. 


बिना वकील के कोर्ट पहुंचा फरियादी
विगत 6 जुलाई को मामले की सुनवाई की पहली तारीख मुकर्रर हुई तो याचिका दायर करने वाले नारायण गिरि ने जस्टिस से आग्रह किया कि वे अपनी ओर से कोई वकील रखने की बजाय अपना पक्ष खुद रखना चाहते हैं. 


कोर्ट ने हिंदी में बहस करने की दी इजाजत
उन्होंने कहा कि वह हिंदी में बहस करना चाहते हैं. जस्टिस देव ने इसकी इजाजत दे दी. याचिकाकर्ता ने पूरी बात हिंदी में ही रखी. हालांकि याचिकाकर्ता अदालत में मुकदमा हार गया. अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना आदेश भी हिंदी में जारी किया. 


अदालत ने दिया ये आदेश
जिस जमीन पर याचिकाकर्ता नारायण देव ने अपना दावा जताया था, उसे अदालत ने खारिज कर दिया. जस्टिस ने अपने आदेश में लिखा है कि दस्तावेजों के अवलोकन से अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि जिस जमीन पर नारायण गिरि ने दावा किया है, उसपर बिहार सरकार ने उनके या उनके पूर्वजों का अधिकार कभी स्वीकार नहीं किया है. 


सक्षम न्यायालय में जाने का मौका
अदालत ने उनकी याचिका खारिज करते हुए लिखा है कि वे इस संबंध में सक्षम न्यायालय में जा सकते हैं.


(आईएएनएस)