बांग्लादेशियों की घुसपैठ की जानकारी है या नहीं आपको? हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब
झारखंड के पांच जिलों में बांग्लादेशियों की घुसपैठ के मुद्दे पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. इस बार यह मामला एक जनहित याचिका के जरिए झारखंड के हाईकोर्ट में है. हाईकोर्ट ने बुधवार को इसपर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य की सरकारों से जवाब मांगा है.
रांची: झारखंड के पांच जिलों में बांग्लादेशियों की घुसपैठ के मुद्दे पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. इस बार यह मामला एक जनहित याचिका के जरिए झारखंड के हाईकोर्ट में है. हाईकोर्ट ने बुधवार को इसपर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य की सरकारों से जवाब मांगा है. दोनों सरकारों से कोर्ट ने पूछा है कि बांग्लादेशियों की घुसपैठ के बारे में उन्हें जानकारी है या नहीं?. अगर जानकारी है तो इसे रोकने के लिए क्या कार्रवाई की गई है.
दरअसल, यह मुद्दा काफी पहले से उठता रहा है. इसे लेकर सियासी आरोप-प्रत्यारोप भी होते रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसी साल बीते 7 जनवरी को झारखंड के चाईबासा और इसके बाद 4 फरवरी को चाईबासा में रैली थी और इस दौरान उन्होंने राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ का मसला प्रमुखता से उठाते हुए इसके लिए राज्य की मौजूदा हेमंत सोरेन सरकार को जिम्मेदार ठहराया था. उन्होंने हेमंत सोरेन को आदिवासियों का विरोधी बताते हुए कहा था कि वोट बैंक के लालच में वे यहां की जनसांख्यिकी बदल रहे हैं. यहां घुसपैठियों की संख्या बढ़ रही है. आदिवासियों और पिछड़े वर्ग की जनसंख्या कम हो रही है. घुसपैठिए आदिवासियों की जमीन हड़प रहे हैं. वे यहां की बहू-बेटियों पर अत्याचार कर रहे हैं. साहेबगंज, दुमका, गोड्डा, पाकुड़, जामताड़ा में खुलेआम घुसपैठ हो रहा है और हेमंत सोरेन इसपर रोक लगाने के बजाय सब कुछ मुस्कुरा कर देख रहे हैं.
इस मुद्दे पर भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने भी पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इसमें बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करने, उन्हें डिटेन करने और वापस बांग्लादेश भेजने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग की गई थी. इस पीआईएल पर अदालत से नोटिस मिलने के बाद राज्य सरकार ने पिछले साल मई में 15 पन्नों वाले हलफनामे के साथ अपना जवाब दाखिल किया था. झारखंड की सरकार ने अपने जवाब में कहा था कि यह पीआईएल में हालात को अलामिर्ंग बताया गया है, लेकिन यह गलत धारणाओं और अनुमानों पर आधारित है.
झारखंड पुलिस की विशेष शाखा के आईजी प्रशांत कुमार की ओर से दाखिल जवाब में यह भी कहा गया था कि अवैध अप्रवासियों या विदेशी नागरिकों को प्रतिबंधित करने के लिए विभिन्न राज्यों में डिटेंशन सेंटर, होल्डिंग सेंटर और शिविर स्थापित करने के लिए पहले से ही एक तंत्र है. झारखंड सरकार ने हजारीबाग में इसके लिए एक मॉडल डिटेंशन सेंटर भी बनाया है. सरकार और उसके तंत्र की आंतरिक रिपोर्टें ही बताती हैं कि बांग्लादेश की सीमा से करीब स्थित झारखंड के पांच जिलों की डेमोग्राफी तेजी से बदली है. पिछले तीन दशकों में बांग्लादेश से लाखों की तादाद में घुसपैठिए साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, गोड्डा और जामताड़ा जिलों के अलग-अलग इलाकों में आकर बस गये हैं.
इन इलाकों में हो रहे जनसांख्यिकीय बदलाव को लेकर सरकारी विभागों ने केंद्र और राज्य सरकारों को समय-समय पर कई बार रिपोर्ट मिली है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर 1994 में साहिबगंज जिले में 17 हजार से अधिक बांग्लादेशियों की पहचान हुई थी. इन बांग्लादेशियों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए थे, मगर इन्हें वापस नहीं भेजा जा सका. वर्ष 2018 में झारखंड की पूर्ववर्ती रघुवर दास सरकार के कार्यकाल में गृह विभाग ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से इलाके की बदली हुई डेमोग्राफी के मद्देनजर पूरे राज्य में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप) लागू कराने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था. इसपर केंद्र की ओर से कोई निर्णय नहीं हो पाया था.
विधानसभा के बीते बजट सत्र के दौरान राजमहल विधायक अनंत ओझा ने कार्यस्थगन सूचना के जरिए संथाल परगना के जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला उठाया था. उन्होंने अपनी सूचना में कहा था कि साहिबगंज जिलों पिछले कुछ वर्षों से बांग्लादेशी घुसपैठ से जनसंख्या संतुलन बिगड़ गया है. घुसपैठिये फर्जी नाम और कई प्रमाण पत्र बना कर भारत के नागरिक बन बैठे हैं. सरकारी जमीन का अतिक्रमण कर रहे हैं. यहां के सरकारी संसाधनों का फायदा ले रहा हैं.
बांग्लादेशियों के बढ़ते प्रभाव पर गृह विभाग को भी झारखंड से रिपोर्ट भेजी गयी थी. रिपोर्ट में जिक्र था कि बांग्लादेशी बिहार और बंगाल के रास्ते झारखंड आ रहे. इसमें अवैध प्रवासियों को चिन्हित करने के लिए टास्क फोर्स गठित करने की सिफारिश की गई थी. आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि बांग्लादेश के करीब स्थित झारखंड के जिलों में मुस्लिम आबादी अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है. मसलन, पाकुड़ में 2001 में मुस्लिम आबादी 33.11 प्रतिशत थी जो 2011 में 35.87 प्रतिशत हो गई.
झारखंड में बांग्लादेशी नागरिकों के पकड़े जाने, गलत तरीके से यहां की मतदाता सूची में नाम दर्ज करवा लेने, बांग्लादेशी नागरिक को भारतीय पासपोर्ट जारी कर दिये जाने जैसे छिटपुट मामले हर महीने-दो महीने पर आते रहते हैं. खुफिया एजेंसियों ने भी समय-समय पर सरकारों को ऐसी रिपोर्ट भेजी है, जिनमें बांग्लादेशियों के घुसपैठ के तौर-तरीकों के बारे में विस्तृत ब्योरा दर्ज है. गृह विभाग को भेजी ऐसी ही एक रिपोर्ट में बताया गया है कि संथाल परगना के साहिबगंज व पाकुड़ में चिह्न्ति अवैध प्रवासियों ने वोटर आईडी, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस तक बनवाए हैं. इन इलाकों में जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश व पापुलर फ्रंट आफ इंडिया और अंसार उल बांग्ला जैसे प्रतिबंधित संगठनों की पकड़ बढ़ रही है. ऐसे कई उदाहरण हैं कि बांग्लादेश से आये लोगों ने स्थानीय महिलाओं से शादी कर ली और यहीं बस गये.
इनपुट- आईएएनएस
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