`सीएम नहीं दिख रहे, कुछ ज्यादा ही दिल्ली जा रहे`, कुमार विश्वास का हेमंत सोरेन पर तंज
डॉ. कुमार विश्वास ने कहा, `यहां मुझसे कुछ पत्रकारों ने पूछा कि क्या इस मंच से राजनीतिक पर टिप्पणी करेगें. तो मैंने कहा कि राजनीति पर टिप्पणी लायक हम ही नहीं बचे हैं. हम तो राजनीति में गए पर मेरे साथ ही राजनीति होगी.`
रांची: झारखंड विधानसभा की 22वीं वर्षगांठ पर बुधवार रात कवि सम्मेलन से विधानसभा परिसर कवियों के हास्य और व्यंग्य से गुलजार हो उठा. विधानसभा में आयोजित कवि सम्मेलन में कवि कुमार विश्वास, हास्य रस के कवि दिनेश बावरा, शंभू शिखर, प्रेम रस की कवयित्री शिखा दीप्ति, झारखंड के कवि नीलोत्पल मृणाल ने काव्य पाठ किया. इस दौरान डॉ. कुमार विश्वास ने अपने चुटीले व्यंग और पॉलिटिकल सटायर के जरिए राजनेताओं पर जमकर चुटकी ली और कवि सम्मेलन में समा बांधने का काम किया.
डॉ. कुमार विश्वास बोले- रांची बचाने के लिए जाना पड़ता है दिल्ली
डॉ. कुमार विश्वास ने कहा, 'यहां मुझसे कुछ पत्रकारों ने पूछा कि क्या इस मंच से राजनीतिक पर टिप्पणी करेगें. तो मैंने कहा कि राजनीति पर टिप्पणी लायक हम ही नहीं बचे हैं. हम तो राजनीति में गए पर मेरे साथ ही राजनीति होगी.' मंच पर पहुंचे ही कुमार विश्वास ने पूछा मुख्यमंत्री साहब नजर नहीं आ रहे हैं.' बीच में किसी ने कहा, दिल्ली गए हैं, तब तक कुमार विश्वास ने कहा, 'क्या बात है, इन दिनों ज्यादा जा रहे हैं', फिर आगे कहा, 'रांची बचाए रखने के लिए दिल्ली जाना पड़ता है.' इतना सुनते ही पूरा पंडाल ठहाकों से गूंज उठा.
वहीं, झारखंड के कृषि मंत्री बादल पत्रलेख पर चुटकी लेते हुए कुमार विश्वास ने कहा कि झारखंड का हंसता-फूलता कृषि मंत्री हैं. यहां की ऐसे ही फसलें हो. कुमार विश्वास ने कहा, 'रघुबर और सरयू को एक नहीं कर सकते, तो अयोध्या कैसे बनाओगे? उन्होंने आगे विधायक सरयू राय पर चुटकी लेते हुए कहा कि वो झारखंड की राजनीति के फिल्टर हैं कभी-कभी अपने घर में ही लग जाते हैं. पिछली बार तो अपने पाइप में ही अटक गए.
डॉ. कुमार विश्वास ने सांसद महुआ माजी पर व्यंग कसते हुए कहा कि इससे पता चलता है, सब हमारी तरह नहीं, लेखकों का भी कुछ हो सकता है. पीएम का एजेंडा है न खाऊंगा न खाने दूंगा, ये अलग बात है, कि कुछ लोग पैक करवा कर ले गए. एक समय टीवी वाले किम जॉन का एक-एक घंटे तक प्रोग्राम दिखा कर हमें डराते थे, हमारा वाला तो रात को सिर्फ इतना बोल दे भाइयों और बहनों, इसी में बत्ती बुझ जाती है.
(इनपुट- कुमार चंदन)
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