रांचीः Joshimath Land Subsidence: जोशीमठ में जमीन में दरार आ गई. उत्तराखंड के चमोली जिले का ये हिस्सा और तीर्थधामों का द्वार कहलाने वाला जोशीमठ क्या धरती में समा जाएगा? बीते चार दिन से ये चिंता पहाड़ से लेकर मैदान तक फैली हुई है. केंद्र सरकार भी इस पर एक्टिव है और हाई लेवल मीटिंग कर रही है. मगर बिहार-झारखंड की धरती पर गुजर-बसर कर रहे लोगों के लिए शायद ही यह बहुत बड़ी बात हो. वे इसे सुन रहे हैं, रूबरू हो रहे हैं और फिर न ज्यादा चर्चा न अधिक बात. उनका ये मौन कुछ कहता है. वह सरकारों और ऐसे मामलों में उनके रवैये के भुक्त भोगी हैं. क्या है उनकी चुप्पी का राज... कान लगाकर सुनेंगे तो इसका जवाब एक शब्द में सुनाई देगा.. झरिया. 


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यहां आम है जमीन दरकना
झरिया, वह जगह, जहां जमीन फटना, धंसना, दरकना आम है. सिर्फ यही क्यों, झारखंड के अधिकतर कोल वाले इलाकों में ये सामान्य सी बात है कि जमीन दरक जाती है और जीवित आदमी उसमें समा जाता है. धनबाद से ऐसी कितनी ही खबरें आती हैं. सिर्फ मीडिया रिपोर्ट पर ही नजर फेरें तो बीते ही साल ऐसे कई मामले सामने आए हैं. जहां धनबाद में जमीन दरकने से जान-माल की हानि हुई है. 



पहले झरिया की बात करते हैं. एक पुराना भोजपुरी गीत है. 'फेंक दिहले थरिया, बलम गईले झरिया, पहुंचलें कि ना... उठे जिया में लहरिया, पहुंचले की ना'. नायिका कहती है कि 'गुस्से में उसका पति थाली फेंक के झरिया चला गया है. मैं परेशान हूं कि वह वहां सही-सलामत पहुंचा कि नहीं'. बीती शताब्दियों से तो झरिया, लेबर क्लास के लिए कमाई का बड़ा साधन रहा है. वजह, यहां की जमीन से निकले वाला काला हीरा, कोयला. तब दूर-दूर से लोग यहां कोयला खदानों में काम करने आते थे. बीती एक शताब्दी से झरिया जमीन के भीतर धधकने वाली आग का शहर बन चुका है. इसके बुरे परिणाम, मिट्टी और पानी में होने वाले प्रदूषण से तो सामने आते ही हैं, कई दफा ऐसा हुआ है कि जमीन के अंदर उठ रही जहरीली गैस और धुआं, भूमि की परत फाड़कर बाहर निकलते हैं और हुजूम-बस्तियां सब कुछ उसके गाल में समा जाती हैं. 


अधिकांश जमीन बंजर, जीवन हलकान
झरिया में एक शताब्दी से भी अधिक समय से लगी जमीनी आग के कारण निकलने वाले धुआं, जहरीली गैस, यहां के कोलियरी और खुली परियोजनाओं से फैलने वाले प्रदूषण के कारण यहां की अधिकांश जमीन बंजर हो चुकी है. इस ओर केंद्र, राज्य सरकार, जिला प्रशासन, बीसीसीएल प्रबंधन कोई गंभीर नहीं है. इस कारण प्रदूषण का फैलना लगातार जारी है.



ये ठीक वैसे ही जैसे कि 50 से 60 साल पहले से जोशीमठ को लेकर चिंताएं जताई जा रही थीं, लेकिन पहाड़ पर कभी भारी निर्माण और भीड़ को नियंत्रित नहीं किया गया. बल्कि प्रकृति में मशीनी हस्तक्षेप बढ़ता ही गया.


धनबाद में भी आती रहती हैं दरारें
ये तो थी झरिया की बात, अब चलते हैं धनबाद की ओर. दोनों आस-पास ही हैं. बीते साल 18 अगस्त 2022 को धनबाद में चिरकुंडा के बीसीसीएल सीवी एरिया की दहीबाड़ी परियोजना के पास जोरदार आवाज के साथ जमीन का बड़ा हिस्सा धंस गया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अचानक हुए भू-धसान से बड़े भूभाग की मिट्टी कट गई. इस घटना में वहां खड़ी एक ड्रिल मशीन भी पूरी तरह जमीन में समा गई. बड़े भूभाग में दरार आने के साथ जमीन धसने से पूरा इलाका खोखला हो गया. मिट्टी धंसने की वजह से करीब 500 मीटर गहरी खाई बन गई और लोगों को हटाकर सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाया गया. 


जमीन धंसने से दहशत, जिंदगी का हिस्सा
बीते साल में 19 नवंबर 2022 की ही एक और खबर है, जिसमें धनबाद कोयलांचल में लगातार दूसरे दिन जमीन धंसने का मामला आया था. इस घटना का असर ये पड़ा की इलाके में दरार पड़ गई और यहां रहने वाले 20-25 परिवारों के सामने संकट की स्थिति खड़ी हो गई. घटना में एक मंदिर भी टेढ़ा हो गया और एक ओर से तीन फीट धंस गया.



धनबाद में भूमि धसान के इन मामलों में थोड़ा और पीछे जाएं तो दिसंबर 2020 का एक मामला दिल दहलाने वाला है. झरिया के बस्ताकोला में अचानक जमीन फट गई और राह चलती एक महिला उसमें समा गई. जमीन धंसने से जहरीली गैस का रिसाव हो गया, जिससे उसे बचाने गए कुछ और लोग भी प्रभावित हो गए.



अप्रैल 2022 में मोदीडीह इलाके में अचानक जमीन में फटी और एक परिवार की गृहस्थी ही उसमें समा गई. आसपास के 10 घरों तक भी दरारें आ गईं. ऐसी खबरें हर एक-दो महीने में सुर्खियां बनती रहती हैं. 


गिरिडीह में भी डर के हालात
झारखंड का एक और जिला है गिरीडीह, यहां से भी भूं धंसान और जमीन में दरारें पड़ने की खबर महीने-दो महीने में आती ही रहती हैं. बल्कि साल 2021 में जून की एक मीडिया रिपोर्ट में आशंका जताई गई थी कि गिरिडीड, दूसरा झरिया बन सकता है.  यहां कोयले के अवैध उत्खनन से सीसीएल इलाका धीरे-धीरे खोखला होता जा रहा है. जिसकी वजह से जगह- जगह पर लैंड स्लाइड हो रही है. दो दिन पहले ही बनियाडीह में जमीन धंस गई थी. इसके कारण हजारों की आबादी दहशत में आ गई थी. बारिश के कारण बनियाडीह में एक बड़े दायरे में जमीन 5 मीटर धंस गई थी. 


ऐसे में जोशीमठ में दरार आई है. अच्छा है कि सरकार इस पर सक्रिय है और सकारात्मक पहलू देखें तो हो सकता है कि समस्या का हल खोज लिया जाए, लेकिन शताब्दी से जिस तरीके झरिया (धनबाद), गिरिडीह की अनदेखी होती रही है, ऐसे में बहुत उम्मीद दिखती नहीं है. दूसरी ओर ये धंसान और दरार हमारे ही अतिक्रमण का नतीजा है जो हम प्रकृति के हिस्से में हमेशा करते आए हैं. सवाल ये भी है कि क्या हम इससे बाज आएंगे?


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