झारखंड के इस `कुंवारों के गांव` की दिक्कत क्या है, क्यों कोई अपनी बेटी ब्याहना नहीं चाहता?
झारखंड के `कुंवारों का गांव (Kunwaron Ka gaon)` के बारे में आपने तो बहुत कुछ पढ़ा और सुना होगा लेकिन आज हम बताएंगे कि इस गांव की दिक्कत क्या है? क्यों कोई अपनी बेटी की शादी इस गांव के युवकों से नहीं करना चाहता?
Baradahar Village Problems: झारखंड के 'कुंवारों का गांव (Kunwaron Ka gaon)' के बारे में आपने तो बहुत कुछ पढ़ा और सुना होगा लेकिन आज हम बताएंगे कि इस गांव की दिक्कत क्या है? क्यों कोई अपनी बेटी की शादी इस गांव के युवकों से नहीं करना चाहता? दरअसल, ऐसे समय में जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तब भी इस गांव में सरकार की नजर नहीं पहुंची है. इस गांव में मूलभूत सुविधाओं की बहुत कमी है. सबसे बड़ी तो पानी की कमी है, जिससे लोगों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव के नौजवान दूसरे राज्यों में जाकर काम करते हैं. किसी की शादी होती है तो बारातियों को 2 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है, तब जाकर वो ससुराल पहुंच पाते हैं. इसी कारण गांव में अरसे से शहनाई नहीं बज पाई है. हम बात कर रहे हैं झारखंड के जमशेदपुर जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर बसे बहरागोड़ा प्रखंड के खंडामौदा पंचायत के बड़ाडहर गांव (Baradahar Village) की.
इस गांव के लोग सालों भर परेशानी में अपना जीवन जीते हैं. यहां करीब 20 परिवार रहते हैं, जिनके 215 सदस्य गांव में निवास करते हैं. गांव में पीने के पानी की बड़ी दिक्कत है. 4 साल पहले मुखिया निधि से सोलर जलमीनार गांव में बनाया गया था लेकिन अब उसका मोटर अंदर धंस गया है, जिससे पीने के पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है. गांव की महिलाएं और बच्चे पीने के पानी के लिए 500 मीटर दूर का चक्कर लगाते हैं. इस गांव में जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. न तो गांव में स्कूल है और ही अस्पताल. बुनियादी सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है. गांव में कोई बीमार हो जाता है तो उसे खाट पर लिटाकर एम्बुलेंस तक ले जाया जाता है. शौचालय न होने से लोग खुले में शौच करते हैं. बरसात में तो इस गांव का कनेक्शन पूरा देश से कट जाता है.
बड़ाडहर के ग्रामीणों का कहना है कि असुविधा के कारण हमारे यहां रिश्तेदार भी नहीं आना चाहते. किसी के घर कोई अनुष्ठान होता है तो रिश्तेदार आते हैं और उसी दिन निकल भी जाते हैं. गांव की केवल 3 महिलाओं को उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर मिला हुआ है. अन्य घरों में आज भी कच्चे चूल्हे पर खाना बनता है. ग्रामीणों का कहना है कि यहां आज तक न हो तो कोई अधिकारी आया और न ही कोई नेता. ज्यादा बारिश होने पर महिलाएं अपने बच्चों के साथ मायके चली जाती हैं. ग्रामीण दूसरे गांवों में अपनी साइकिल या बाइक रखकर आते हैं, क्योंकि गांव में आने के लिए कोई रास्ता ही नहीं होता. बरसात के लिए ग्रामीण पहले से राशन का जुगाड़ करके रखते हैं, ताकि उन्हें भूखा न रहना पड़े.