पटना:Chhath Puja 2023: पूरे बिहार-झारखंड के साथ-साथ पूरे देश में लोकास्था के महापर्व छठ पूजा की धूम देखने को मिल रही है. 17 नवंबर को नहाय खाय के शुरू होने वाला ये पर्व 20 नवंबर को खत्म होने वाला है. 17 तारीख को नहाय खाय के बाद 18 नवंबर को खरना पूजा होने वाला है. वहीं 19 नवमबर को पहला अर्घ्य दिया जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खरना पूजा के साथ घर में छठी मइया का आगमन हो जाता है. छठ को लेकर गांब से लेकर शहर तक पूजा का बाजार सज गया है, हर तरफ बांस से बने सामान दउरा, सूप, टोकरी, डगरा, कोनी देखने को मिल रहा है.


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शास्त्रों में छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाले बांस से बने सूप का अपना ही महत्व है. बांस को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना गया है. दरअसल, धरती पर पाई जाने वाली बांस एकमात्र ऐसी घास है, जो सबसे तेज से बढ़ती है. बांस को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, ऐसे में इस लेख के माध्यम से हम आपको छठ पूजा में बांस से बने सूप का महत्व के बारे में बताते हैं.


चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व में बांस से बने सूप का विशेष महत्व है, इसके बिना छठी मइया की पूजा अधूरी मानी जाती है. सूप और दउरा का इस्तेमाल भगवान सूर्यदेव को अर्घ्य देने के लिए किया जाता है. इसमें कई तरह के फल और प्रसाद को सजाकर छठ घाट ले जाया जाता है और इससे भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ पूजा के दिन बांस के बने सूप से अर्घ्य देने से भगवान सूर्यदेव और भास्कर ब्रती के परिवार की रक्षा करते हैं व वंश में भी वृद्धि होती है. ऐसी मान्यता है कि जिस तरह से बांस बिना किसी रुकावट के तेजी से बढ़ता है उसी प्रकार वंश में भी तेजी से वृद्धि होती है.


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