बिहार में होली के बाद एक खास परंपरा है, जिसे बुढ़वा होली कहा जाता है. यह होली के एक दिन बाद मनाई जाती है. इस दिन भी लोग होली के मौसम में अपने घर जाकर फगुआ गाते हैं और मजे करते हैं.

PUSHPENDER KUMAR
Mar 18, 2024

बिहार में बुढ़वा होली का बहुत ही विशेष महत्व है, खासकर मगध प्रमंडल में. औरंगाबाद, गया, नवादा, अरवल और जहानाबाद, जिलों जैसे कई स्थानों में इस पुरानी परंपरा को बुढ़वा होली मनाने की विशेष प्राथा है.

बुढ़वा होली की परंपरा की शुरुआत का कोई निश्चित प्रमाण नहीं है, लेकिन मान्यता है कि यह होली के दिन घरों में भगवान (कुलदेवता) की पूजा के बाद आरंभ हुई. इस कारण से लोगों ने इसे महत्व दिया. इस दिन भी सभी अबीर-गुलाल में रंगते हैं.

बुढ़वा होली के दिन गांव में खास उत्सव होता है. यहां पर स्त्रियों का झुमटा निकलता है, जबकि पुरुषों की टोली अलग होती है. सभी गांव फाग के रंग में रंग जाते हैं. इस दिन होली की शुरुआत गांव के एक धार्मिक स्थल से होती है.

होली के पर्व के दिन लोग दोपहर के बाद धार्मिक स्थल पर इकट्ठा होते हैं और फिर फिर से होली का धमाल शुरू हो जाता है. उन्हें वहां से टोली के रूप में घर-घर जाना होता है और मीठे पकवानों और ठंडाई से टोली का स्वागत किया जाता है. इस दौरान ढोल-मंजीरे बजते रहते हैं और फगुआ गूंजता रहता है.

बिहार के लोगों का कहना है कि मगध के लगभग सभी गांवों और शहरों में बुढ़वा होली मनाई जाती है, लेकिन गया में इस होली की अपनी खासियत है. यहां कुछ लोग मानते हैं कि इस होली में कुछ गलत परंपराओं का भी पालन हो रहा है. बुढ़वा होली के साथ ही होली पर्व का समापन हो जाता है.

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