बिहार और झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी होली का असली मजा फगुआ गाने के साथ ही आता है.
उत्तर भारत के कई राज्यों में वसंत पंचमी के बाद से ही होली के गीत गाए जाने का सिलसिला शुरू हाता है जो होली तक जारी रहता है.
होली के गीतों को कई लोग फाग कई लोग फगुआ भी कहते हैं. कई लोकगायकों और गीतकारों ने फगुआ को एक परंपरा के रूप में विकसित किया है.
बिहार में सुबह के समय रंग और शाम को अबीर गुलाल से होली खेलते हैं इसी समय दरवाजे पर घूम- घूमके फगुआ गाने की परंपरा भी है.
गांवों में हर घर के दरवाजे पर फगुआ लोकगीत गाए जाने की परंपर है, जिसे फाग भी कहते हैं.
फगुआ में गानों के माध्यम से होली के रंगों, प्रकृतिक खूबसूरती, भगवान कृष्ण और राधा की लीलाओं और पवित्र प्रेम समाहित होता है.
बिहार के कई क्षेत्रों में लोग होली के दिन धूल-मिटटी से भी होली खेलने की भी परंपरा है, जिसे धुड़खेल कहा जाता है.