Vijendra Saini: 26 जुलाई, 2024 दिन शुक्रवार को जिस उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन में विजेंद्र सैनी की सफ़र के दौरान मौत हो गई थी. उसी उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन में 72 घंटे बाद एक एक्स्ट्रा कोच जोड़कर शव को उसके पैतृक निवास स्थल उत्तर प्रदेश के मथुरा ले जाया गया. विजेंद्र सैनी के शव को ट्रेन से मथुरा ले जाने में पीड़ित परिवार की स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस की टीम ने मदद की. पीड़ित परिवार को चक्रधरपुर में रहने और भोजन पानी की मदद दी गई. शव मथुरा ले जाने के लिए विजेंद्र के छोटे भाई सत्यम कुमार और उनके बहनोई चक्रधरपुर पहुंचे थे.  


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दरअसल, विजेंद्र सैनी का परिवार आरएसएस से जुड़ा हुआ है. जब विजेंद्र की मौत की खबर उसके घरवालों को मिली तो उन्होंने इसकी जानकारी आरएसएस के वरीय पदाधिकारियों को दी. जिसके बाद आरएसएस की टीम ने पूरी से लेकर चक्रधरपुर के आरएसएस टीम और रेलवे के साथ तक संपर्क बनाया और विजेंद्र के शव को चक्रधरपुर से मथुरा लाने की व्यवस्था की. जिसके तहत पूरी से ऋषिकेश तक चलने वाली उत्कल एक्सप्रेस में एक एक्स्ट्रा कोच लगाया गया.


इधर, चक्रधरपुर आरएसएस शाखा के कार्यकर्ताओं ने पीड़ित परिवार को मदद करते हुए शव को चक्रधरपुर रेलवे अस्पताल के शव गृह से निकालकर एम्बुलेंस के माध्यम से चक्रधरपुर स्टेशन पहुंचाया. चक्रधरपुर स्टेशन में उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन के पहुंचने पर शव को ट्रेन के सबसे पीछे लगे कोच के लगेज कम्पार्टमेंट में रखकर सील कर दिया गया. इसके बाद आरएसएस की टीम के द्वारा पीड़ित परिवार को आर्थिक मदद भी की गई ताकि उन्हें खर्च की कोई दिक्कत ना हो. ट्रेन मथुरा की ओर रवाना हो गई. विजेंद्र की पत्नी, विजेंद्र के छोटे भाई और उनके बहनोई काफी भावुक मन के साथ विजेंद्र का शव लेकर मथुरा के लिए रवाना हुए.



मालूम हो कि मजदूरी करने वाली जोबा सैनी बीते 26 जुलाई को पति विजेंद्र के साथ उत्कल एक्सप्रेस के जनरल कोच में सवार होकर मथुरा जा रही थी, लेकिन ढाई घंटे के सफ़र में उसके पति विजेंद्र की ट्रेने मौत हो गई थी. जिसके बाद विजेंद्र के शव को चक्रधरपुर में उतारा गया था. एक अनजान शहर चक्रधरपुर में मृतक विजेंद्र के परिवार को मदद करने वालों में चक्रधरपुर आरएसएस कार्यकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता मनोज भगेरिया, राकेश श्रीवास्तव, सतीश अग्रवाल, मनोज जिंदल, माधव झुनझुनवाला, मुरारी गाडोडिया, कृष्णा मुखी, त्रिलोचन महतो आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.


बीमारी की वजह से नहीं, जनरल कोच के भीड़ की वजह से गई विजेंद्र की जान
इस पूरे घटनाक्रम में अब विजेंद्र सैनी की ट्रेन में हुई मौत को लेकर भी रेलवे की व्यवस्था पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं. पीड़ित परिवार के लोगों का कहना है कि ट्रेन में विजेंद्र की मौत उसकी बीमारी की वजह से नहीं हुई, बल्कि ट्रेन में इतनी भीड़ थी की विजेंद्र की हालत ख़राब हो गई थी. ट्रेन में खड़े होने तक की जगह नहीं थी. बड़ी मुश्किल से विजेंद्र और उसकी पत्नी जोबा सैनी भीड़ के बीच सफ़र कर रहे थे. यही वजह रही की विजेंद्र की ढाई घंटे के सफ़र में ही मौत हो गई. विजेंद्र के छोटे भाई ने बताया कि ट्रेन में भीड़ की वजह से विजेंद्र की जान चली गई. ट्रेन में भीड़ नहीं होती तो विजेंद्र सही सलामत ट्रेन से मथुरा पहुंचता, लेकिन विडम्बना देखिए उसी ट्रेन में 72 घंटे बाद उसका शव मथुरा ले जाया गया.



दरअसल, इन दिनों ट्रेनों में वेटिंग और जनरल टिकट वालों को स्लीपर और एसी कोच में प्रवेश करने पर सख्ती बरतते हुए रोक लगा दी गई है. वेटिंग और जनरल टिकट वालों को जनरल कोच में ही सफ़र करना पड़ रहा है. रेलवे के इस कड़े कदम से सिमित संख्या में ट्रेनों में मौजूद जनरल कोच पर अत्यधिक यात्रियों का भार अचानक से बढ़ गया है. अब जनरल कोच में दोगुना से ज्यादा यात्री बड़ी मुश्किल से सफ़र कर रहे हैं. ऐसी ही भीड़ का शिकार विजेंद्र हुआ और उसकी मौत ट्रेन में सफ़र के दौरान हो गई.