पटना: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly election) के पहले चरण में 71 सीटों पर चुनाव के लिए मंच सज गया है. सभी दल और प्रत्याशी आज से चुनाव प्रचार बंद कर देंगे. अब प्रत्याशियों के तकदीर की चाभी जनता के हाथों में है. 28 अक्टूबर को ईवीएम के जरिए वोटिंग होगी. कोरोना काल में होने वाले इस चुनाव में काफी गहमागहमी भी देखने को मिली. कुछ बड़े नेता पार्टी से टूटकर बागी भी हो गए हैं. 


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बिहार के सबसे बागी- राजेंद्र सिंह
बिहार में बीजेपी के एक ऐसे ही नेता हैं जो सबसे बड़े बागी बन कर उभरे हैं. नाम है राजेंद्र सिंह (Rajendra Singh). वहीं राजेंद्र सिंह जो 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सबसे बड़े नेता बन कर उभरे थे. सियासी गलियारे में तो इस बात की चर्चा थी कि राजेंद्र सिंह बीजेपी के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं. 


किसने सोचा था कि खेल इतनी जल्दी बदल जाएगा. बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की वजह से बीजेपी के इस बड़े नेता को अपनी सीट गंवानी पड़ेगी. और किसने सोचा था कि पार्टी से खफा होने के बाद राजेंद्र सिंह एलजेपी के हो जाएंगे और दिनारा से चिराग के बैनर तले एनडीए के खिलाफ ही मोर्चा खोल देंगे? अब जरा दिनारा विधानसभा सीट के समीकरण को इत्मीनान से समझिए.


2015 में कड़े मुकाबले में जीते JDU प्रत्याशी
दिनारा विधानसभा सीट पर 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की तरफ से जेडीयू के उम्मीदवार जय कुमार सिंह (Jai Kumar Singh) ने बीजेपी प्रत्याशी राजेंद्र सिंह को 2681 के बड़े नजदीकी अंतर से हराया था. इसके बाद से ही जय कुमार सिंह, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के करीबी बनते गए और उन्हें बिहार सरकार में मंत्री बनने का सौभाग्य भी मिला. हालांकि, तब से अब तक में तस्वीर बदल गई है. 


2020 के विधानसभा चुनाव में वैसे तो दिनारा विधानसभा सीट पर लड़ाई त्रिकोणीय मानी जा रही है, लेकिन राजनीतिक पंडितों की मानें तो लड़ाई महागठबंधन और एलजेपी के बीच की है. एलजेपी प्रत्याशी राजेंद्र सिंह और महागठबंधन के प्रत्याशी विजय मंडल के बीच एक कड़ी प्रतिस्पर्धा की गुंजाइश बढ़ने लगी है. सिटिंग एमएलए और बिहार सरकार में निवर्तमान मंत्री जय कुमार सिंह इस दौड़ में काफी पिछड़ गए हैं. 


राजेंद्र सिंह ने कहा- कार्यकर्ताओं के अनुरोध पर उतरे चुनावी मैदान में
बीजेपी से अलग होने के बाद राजेंद्र सिंह ने कई बार मीडिया को यह खुल कर बताया कि उन्होंने सिर्फ पार्टी छोड़ी है. पार्टी की विचारधारा नहीं. राजेंद्र सिंह ने पिछली हार के बारे में बताते हुए कहा कि वे तब नए थे. उन्हें पार्टी ने झारखंड से आने के बाद दिनारा के लिए चुनाव में उतार दिया था. फिर भी वे बमुश्किल 2681 वोटों से पीछे रह गए थे. इस बार उनका दावा है कि उन्हें दिनारा के हर एक परिवार के बारे में जानकारी है, उन्होंने इन 5 सालों में वहां काम किया है और लोगों के साथ रहे हैं. 


राजेंद्र सिंह ने दावा किया कि जनता और कार्यकर्ताओं के आदेश और अनुरोध पर ही उन्होंने दिनारा से चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है. दिलचस्प बात यह है कि संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले राजेंद्र सिंह का दावा यह भी है कि उन्हें संगठन के स्तर पर मदद मिल रही है. बीजेपी में सीट शेयरिंग को लेकर आपसी मनमुटाव के कारण उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी लेकिन जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता को लेकर जरूरी सांगठनिक मदद भी मिल रही है.


दिनारा विधानसभा सीट का सियासी इतिहास
1990 के पहले तक दिनारा विधानसभा सीट कांग्रेस के हिस्से रही थी. लेकिन 90 के बाद से वहां समीकरण बदलने लगा. 90 और 95 के विधासनभा चुनाव में रामधनी सिंह ने पहले जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते. फिर जेडीयू के टिकट पर 2000 और 2005 के विधानसभा चुनाव में जनता दल युनाइटेड के टिकट पर विधायक चुन कर आए. हालांकि, 2005 के दोबारा हुए चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.


जब पहली बार जय कुमार सिंह MLA बनकर पहुंचे विधानसभा
दिनारा विधानसभा सीट जेडीयू का गढ़ रहा है. 2010 के विधानसभा चुनाव में जय कुमार सिंह ने आरजेडी की प्रत्याशी सीता सुंदरी देवी को 16 हजार से अधिक के अंतर से हराया और पहली बार जय कुमार सिंह विधायक बन कर विधानसभा में पहुंचे. इसके बाद 2015 में भी यह सीट जेडीयू के पाले में गिरी और पार्टी ने जय कुमार सिंह पर दोबारा भरोसा जताया. वे फिर से जीत लेकिन कड़े मुकाबले में. 


अब 2020 का समीकरण कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहा है. ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि एनडीए के बागी इस चुनाव में बाजी मारते हैं या एनडीए जिस जय कुमार सिंह के लिए राजी हुई, वे तीसरी बार इस सीट को जीत पाने में कामयाब होते हैं. या फिर महागठबंधन के उम्मीदवार दोनों को चौंका कर दिनारा से विधायक बन कर विधानसभा का रास्ता तय कर पाते हैं.